शिव शंभु को करने नमन ऋतु श्रावणी सजकर खड़ी।
लगता जटा से गंग की धारा घटा बनकर झड़ी॥
बम बोल बम कहते हुए सब काँवड़े लेकर चले।
आकर शिवा के धाम पर बहने लगी असुँअन लड़ी॥
हर बैर मन से भागता स्वीकार लो सच भाव से।
शिव की कृपा ही जोड़ती है प्रीत की टूटी कड़ी॥
झंझा नहीं मन भय भरे भोले सदा ही साथ हैं।
भटके नहीं पथ से कभी विपदा पड़े चाहें बड़ी॥
करना शिवा हम पर दया करते सदा हम वंदना।
कर शीश प्रभु अपना रखो कहती सुधी हठ पर अड़ी॥
©®अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
सुंदर सृजन । ॐ नमः शिवाय🙏
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया।
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (१०-०८ -२०२२ ) को 'हल्की-सी सीलन'( चर्चा अंक-४५१७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक आभार सखी।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteझंझा नहीं मन भय भरे भोले सदा ही साथ हैं।
ReplyDeleteभटके नहीं पथ से कभी विपदा पड़े चाहें बड़ी॥
बहुत ही सुंदर भाव ।
ऊं नमः शिवाय!
हार्दिक आभार जिज्ञासा जी
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