Tuesday, July 27, 2021

रावण के प्रश्न

 


क्यों वानर किसके दम तूने,आज उजाड़ी है लंका।

किसके बल पर कूँद-फाँद के,यहाँ बजाता तू डंका।


लगता आज मर्कट की मृत्यु ,खींच यहाँ पर लायी है।

मेरे योद्धा मार गिराए,करनी अब भरपायी है।


अक्ष कुमार गिराए भू पर,कैसा दुस्साहस तेरा।

एक चाल चलके क्या समझे,देश बिगाड़ेगा मेरा।


इंद्र काँपते मेरे भय से,देव सभी मेरी मुट्ठी।

नाग असुर किन्नर देवो को,रोज पिलाता भय घुट्टी।


मुझे बता किसके कहने पर,आज उजाड़ी है लंका।

उसका अंत अभी मैं कर दूँ,मिट जाए सारी शंका।


मेघनाद के पाश बँधा तू,मुझे दिखाता है आँखे।

 अंग भंग इसको कर भेजो,काटो भ्रम की सब पाँखें।


उत्पाद मचाकर वानर तूने, सुंदर वाटिका उजाड़ी,

उजड़ा उपवन ऐसा लगता, है कोई कंटीली झाड़ी।


वानर रूप रखा है तूने, किसके कहने से आया।

किस छलिए ने रूप बदलकर,अपना अंत बुलाया।

*अनुराधा चौहान'सुधी'*

Monday, July 26, 2021

सवैया छंद सरिता

*विज्ञ सवैया*

आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के मार्गदर्शन में नवीन छंद का प्राकट्य हुआ है - जिसे "विज्ञ सवैया" नाम दिया गया है।विज्ञ सवैया वर्णिक है।

*विज्ञ सवैया विधान:--* 

२३ वर्ण प्रति चरण होंगे।१२,११ वर्ण पर यति अनिवार्य है

४ चरण का एक सवैया होगा।चारों चरण समतुकांत हो।

मापनी:- सगण × ७ + गुरु + गुरु

सगण सगण सगण सगण,सगण सगण सगण गुरु गुरु

११२ ११२ ११२ ११२,११२ ११२ ११२ २ २          

1--मीत

चलते-चलते जब मीत मिले,सुख जीवन में बनते छाया।

सजते सपने फिर से नयनों,बँधते मन जीवन की माया। 

मचली लहरें सुख सागर सी,नव अंकुर रूप लिए आया।

मन से मन तार मिले सबके,तब जीवन में सुख है पाया।


*2--गुरुदेव कृपा*

गुरुदेव कृपा बरसे इतनी,हम जीवन में बढ़ते आगे।

रचना नित नूतनता भरती,रस भाव भरे मन के जागे।

चलते सबको गुरु साथ लिए,मन ज्ञान भरे बँधते धागे।

गुरु का सम्मान सदा करना,मन पाप मिटे दुविधा भागे।

*प्रज्ञा  सवैया*

शिल्प विधान 

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के मार्गदर्शन में  नवीन छंद का प्राकट्य हुआ है - जिसे "प्रज्ञा  सवैया" नाम दिया गया है।

मापनी-

222 212 212 211,212 212 211 22

( प्रज्ञा सवैया 23 वर्ण 12,11 पर यति)

*१--गोविंदा*

गोविंदा रासलीला रचाए जब,नाचता झूमता है जग सारा।

दीनो के नाथ हैं मोहिनी सूरत,नैन देखो बहाते जल धारा।

गोपी के संग झूमे कभी केशव,रूप देखो सजीला अरु न्यारा।

माला मोती लिए घूमती है वन,बाँधने गाँठ से मोहन प्यारा।

*२--लोरी*

लोरी माता सुनाती निशा में जब,लाल मेरा सलोना अब सोता।

लेटा है झूलता लालना सुंदर,पालना को हिलाए जब रोता।

चंदा के हाथ में थाल तारों भर,डोलता रात तारे नभ बोता।

सूनी सी रात में चाँदनी लेकर,नींद में डूबने का सुख खोता।

*राधेगोपाल सवैया*


आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के मार्गदर्शन में  नवीन छंद का प्राकट्य हुआ है - जिसे "राधेगोपाल सवैया" नाम दिया गया है।

221 121 121 12,1 121 121 121 122

*१-ओंकार*

ओंकार शिवाय सदैव जपो,भज लो मन से शिव नाम हमेशा।

शंभू करते दुख दूर सभी,अभयंकर देव दयालु महेशा।

कैलाश बसे प्रभु नाथ शिवा,हरते जनमानस घोर क्लेशा।

देवों पर देव महा शिव है,शिव शंकर के सुत बाल गणेशा।

*२-गोपाल*

गोपाल हरे जप नाम हरे,घन श्याम मनोहर रूप बिहारी।

आलोक भरा मुख मंडल है,जप नाम सभी मन में बनवारी।

बंशी मनमोहक छेड़ रहा,मन झूम रहा सुन तान मुरारी।

रक्षा करते गिरिराज खड़े,ब्रज में गिरि थाम लिए गिरधारी।

*कोविद सवैया छंद* 

 विधान:- 11,11 वर्ण के दो चरण, एक पंक्ति में कुल 22 वर्ण और 18,18 पर यति प्रति चरण पंक्ति में कुल 36 मात्राएं।

चारों समांत तुकांत वर्ण व्यवस्था और वाचिक मापनी 👇

211 222 21122, =11 वर्ण,18 मात्राएं

211 222 112 22 =11 वर्ण,18 मात्राएं

 *1--ग्वाला*

गोकुल का ग्वाला मोहन न्यारा,रास करे बंशीवट के नीचे।

गोप कुमारी झूमे तत थैया,रूप सजीला है नयना मींचे।

साँझ सबेरे जाए बरसाना,छेड़ रहे राधा सखियाँ खींचे।

तान सुरीली भागे सब पीछे,श्याम सलोना अंतस को सींचे।

*2--केवट*

केवट धोता है श्री चरणों को,कोमल काया कंचन हो जैसे।

नाविक में जो भोलापन देखा,उतराई दूँगा इसको कैसे,

देख रहा खेवैया दुविधा को,मोल मुझे देना प्रभु जी ऐसे।

पार उतारूँगा में तुमको जो,पार लगा देना मुझको वैसे।

विधा- सुधी सवैया 

शिल्प विधान 

अनुराधा चौहान सुधी 

आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के मार्गदर्शन में नवीन छंद का प्राकट्य हुआ है - जिसे "सुधी सवैया" नाम दिया गया है।23 वर्ण 12,11 पर यति 

मापनी

121 121 121 112,121 121 122 12 

*उदाहरण*

१-विचार

कभी मन क्रूर विकार उपजे,सचेत उसी क्षण होना खरा।

जमा फिर पाँव प्रयास करना,नहीं फिर आलस ओढ़ो जरा।

प्रयोग सदैव सटीक करना,खुशी मन रोज झरेगी धरा।

सदा मन से शुभ काम रचना,बिगाड़ सके न कोई करा।

२-पुरवा

सुनो पुरवा जब छूकर चली,सुवास सुगंधित फैली यहाँ।

उड़े मन संग पतंग बनके,उमंग हिलोर जगाती वहाँ। 

सुहावन सावन जोर करता,सभी मन झूम रहे थे जहाँ।

बढ़े जब ताप अपार धरती,सुगंध सुवासित होती कहाँ।

३--अनीति

विलास विकार तभी पनपते,प्रयोग विनाश कराते यहाँ।

अनीति अनेक प्रकार प्रगटे,सदैव प्रमाण मिलेंगे वहाँ।

सचेत विवेक बनाकर चलो,विकार मिठास बढ़ाते कहाँ। 

समीर सुवास वहाँ मन भरे,विकास अनेक करेंगे जहाँ।

४--चकोर

चकोर बना मन देख शशि को,समीर बने फिर छूने उड़ा।

बसा मन प्रेम अधीर करता,उड़ान भरे सब पीड़ा झड़ा।

छुपा बदली फिर चाँद हँसता,उजास दिखा सुख देने खड़ा।

लिए अतिरेक खुशी से चहका ,निहार रहा मुख आँखे गड़ा।

अनुराधा चौहान'सुधी'

*साँची सवैया*

23 वर्ण , 12,11 पर यति के साथ लिखा जाता है ।इसमें 4 पंक्ति 8 चरण रहते हैं। तुकांत सम चरण में मिलाया जाता है। चारों पंक्ति के तुकांत समान्त रहते हैं।वाचिक रूप मान्य रहता है।इसमें गण व्यवस्था और मापनी निम्न प्रकार से रहती है 

मापनी 

तगण तगण मगण सगण, तगण तगण तगण लगा

221 221 222 112, 221 221 22112

*महादेव*

धारा सदा शीश गंगा की बहती,पीड़ा महाकाल शंभू हरते।

चंदा सजे शीश हाथों में डमरू,माला गले नाग डाला करते।

गौरा बसी पास शोभा सुंदर सी,देवा गणेशा उजाला भरते,

बाबा महादेव कैलाशी शिव जी,तेरी कृपा रोग सारे मरते।

*आनंद*

थामों दया हाथ ऐसा ओ प्रभु जी,नैया लगे पार मेरी तन से।

संसार माया भरा बाँधे मुझको,आके बचालो उठो आसन से।

देना मुझे छाँव आशा की इतनी,बाँधे नहीं आज कोई मनसे।

वर्षा करो प्रेम की ऐसी मुझपे,आनंद ऐसा उठे आँगन से।

 *अर्णव सवैया*

आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के मार्गदर्शन में नवीन छंद का प्राकट्य हुआ है।जिसे 'अर्णव सवैया' नाम दिया गया है।अर्णव सवैया 23 वर्ण 12, 11 पर यति के साथ लिखा जाता है।इसमें 4 पंक्ति 8 चरण रहते हैं। तुकांत सम चरण में मिलाया जाता है। चारों पंक्ति के तुकांत समान्त रहते हैं ।इसमें गण व्यवस्था और मापनी निम्न प्रकार से रहती है।

मापनी

तगण राजभा × 5 तगण गुरु गुरु

221 212 212 212, 212 212 221 22

*१--गीता*

गीता कहे यही बाँटिए जो मिला,साथ तेरे नहीं जाए यहाँ से।

माया मिली धरा से सभी है तुझे,छोड़ जाना उठाया जो जहाँ से।

माया रचे यहाँ जाल कैसा सदा,फाँसता लोभ जाने जी कहाँ से।

जाना पड़े अकेला यही रीत है,सीख गीता लिखी सीखो वहाँ से।


*२--नाथ लीला करो*

तेरी दया मिले हाथ जोड़े खड़ा,डोलती नाव को देना सहारा।

फैला यहाँ अँधेरा महाजाल सा,प्राण मेरे टिके जैसे किनारा।

आतंक रोग का आज कैसे मिटे,नाथ लीला करो देके इशारा।

आरंभ हो नया वेदना भी मिटे,हो उमंगो भरा आकाश सारा।

विधा- *सपना सवैया*  

शिल्प विधान 

अनिता मंदिलवार सपना 

आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के मार्गदर्शन में नवीन छंद का प्राकट्य हुआ है - जिसे "सपना सवैया" नाम दिया गया है।सपना सवैया 24 वर्ण 12, 12 पर यति के साथ लिखा जाता है।इसमें 4 पंक्ति 8 चरण रहते हैं।तुकांत सम चरण में मिलाया जाता है। चारों पंक्ति के तुकांत समान्त रहते हैं। इसमें गण व्यवस्था और मापनी निम्न प्रकार से रहती है।

 *मापनी* 

222 122 122 122, 122 122 122 222

*१-नवेली*

बैठी है अँधेरे नवेली झरोखे,निहारें करे बात चंदा तारे से।

नैनों में निराली सजी हैं उमंगे,छुपाती भरे नीर नैना खारे से।

ढूँढें बैठ रंगी बिरंगी पहेली,कभी सोचती प्राण जैसे हारे से।

होनी आज पूरी अधूरी कहानी,वियोगी बनी रैन यादें मारे से।

*२-अँधेरा*

फैला जो अँधेरा मिटे आज कैसे,चलो राह कोई उजाले को बोना।

है संग्राम कैसा बना आज बाधा,मिली हार से भी उमंगे न खोना।

आशाएं अधूरी कभी तो सजेगी,अकेले हुए तो दुखों से न रोना।

संदेशा सुनाती सुहानी हवा तो,उजाले भुला के अँधेरे न सोना।

कुमकुम सवैया

आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के मार्गदर्शन में आविष्कृत-नवीन छंद को "कुमकुम सवैया" कहा गया है, यह वर्णिक सवैया है, चार चरण होंगे, चारों समतुकांत हों।

विधान:- सात सगण + लघु गुरु

२३ वर्ण, १२,११ पर यति हो

मापनी

११२ ११२ ११२ ११२,११२ ११२ ११२ १२

*१-वरदान

सबको सुख का वरदान मिले,अभिशाप मिटे दुख दूर हो।

सबके घर आँगन दीप जलें,सुख-साधन से सब चूर हो।

महके पुरवा कलियाँ किलकें,जननी न कभी मजबूर हो।

सच राह चले सब जो मिल के,सुख जीवन में भरपूर हो।

*२--मनमोहन

मनमोहन रास रचा फिर से,तम दूर हटा सुख दीजिए।

मुरली धुन छेड़ जरा प्रभु जी,विनती यह भी सुन लीजिए।

मन मंदिर मूरत मोहन की,मनमोहन आप विराजिए।

शुभ सुंदरता नित देख सभी,प्रभु आज कृपा यह कीजिए।

शिल्प विधान 

संजय कौशिक विज्ञात

*विज्ञात बेरी सवैया*

23 वर्ण 12,11 

मापनी 

221 122 211 211, 211 211 221 22


*१--सौगंध*

सौगंध धरा की लेकर के सब,वीर खड़े सहते धूप कैसे।

वो भारत माँ का प्रेम लिए मन,रोज बने रहते ढाल जैसे।

सौ वार सदा सीने पर लेकर,शेर समान चलें वीर वैसे।

रक्षा करते न्योछावर होकर,प्राण सदैव तजे वीर ऐसे।

*२--आतंक*

आतंक मचाए रोग खड़ा जग,जीवन मानव कैसे बचाता।

संग्राम छेड़ के मानव भी अब,कंटक जीवन सारे हटाता।

भोगी बनके सीखे लड़ना फिर,जीवन को फिर सादा बनाता।

संदेश नए देता सबको फिर,हो अनुशासन ऐसा सिखाता।

*तेजल सवैया* "

शिल्प विधान- बाबूलाल शर्मा,विज्ञ_

आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के मार्गदर्शन में आविष्कृत-नवीन छंद " तेजल सवैया" में चार चरण होते हैं,चारों चरण समतुकांत हों।

विधान:- तेजल सवैया १२/१२ वर्णों पर यति अनिवार्य

*मापनी:-*

११ ११२ ११२ ११२ १, १२ ११२ ११२ ११२ २ .

*१-नटवर नागर*

गिरधर नागर नंद किशोर,चलो यमुना तट गोप पुकारे।

नटवर नागर माखन चोर,कदंब तले धुन आज सुना रे। 

पग बजती छम पायल देख,सखी हँसती हँसते नभ तारे।

वन वन ढूँढ रहे चितचोर,छुपा छलिया अब रूप दिखा रे।

*२-दीनदयाल*

रघुवर दीनदयाल अधीर,सिया वन आज चली फिर जैसे। 

तिल-तिल पीर बड़े दिन रात,प्रिया वनवास रहे अब कैसे।

सुख तज के नयना भर नीर,चली वन व्याकुल होकर ऐसे।

जब चल दी वन वो सुख छोड़,रहे चुप क्यों प्रभु दे दुख वैसे।

. *शान्ता सवैया*

आ. *संजय कौशिक विज्ञात* जी के मार्गदर्शन में आविष्कृत-नवीन छंद को"शान्ता सवैया" नाम दिया गया है।यह वर्णिक सवैया है।चार चरण का छंद है, चारों चरण समतुकांत होने चाहिए।

विधान:--२२ + ( ७× सगण ) + २२

२५ वर्ण, १३,१२ वें वर्ण पर यति हो

मापनी :--

२२ ११२ ११२ ११२ ११,२ ११२ ११२ ११२ २२

*१-घनघोर घटा*

काली घनघोर घटा गरजें घन,पावन सावन मास सुहाना है।

भीगे चुनरी धरती महके फिर,प्रीत भरे फिर गीत सुनाना है।

बूँदे टपके टिप शोर करे जब,द्वेष सभी मन आज बहाना है।

झूमे तरु पुष्प खिले घर आँगन,सावन मास सुहावन गाना है।

*२-सींच रहा मन*

चंदा चमके नभ आँगन जब,बैठ चकोर निहार रहा डाली।

बोले सुन ले बढ़ती अब चाहत,खेत खड़ी बढ़के पकती बाली।

रातें चुपके ढलती नित ही जब,सींच रहा मन प्रेम बना माली।

रूठे चुप से चलते नभ आँगन,बीत रही यह रैन अभी काली।

*एकता सवैया*

आ. गुरुवर संजय कौशिक विज्ञात जी,के मार्गदर्शन में आविष्कृत-नवीन छंद-"एकता सवैया" में चार चरण होते हैं,चारों चरण समतुकांत होने चाहिए। 

विधान:- तगण +( ७ सगण)+ २

२५ वर्ण, १२,१३ वें वर्णो पर यति हो।

मापनी-

२२१ ११२ ११२ ११२,११२ ११२ ११२ ११२ २


*१-समशील*

आरंभ करना शुभ काम सदा,मन ज्ञान प्रकाश लिए चल आगे।

संवाद करना समशील बने,अनुराग सदैव रखो दुख भागे।

प्रारंभ करना उपहास नहीं,मन घात लगे चटके फिर धागे।

संदेह रखना सब आज परे,भयभीत सदा रजनी फिर जागे।

*२-जाले*

जाले झटक दे मन के सब ही,जब धूल हटे चमके मन कोना।

आले चमकते फिर से मन के,सुख आन खड़े उनको मत खोना।

संयोग बनते जब दोष भरे,चुप होकर आज नहीं फिर रोना।

संतोष छलके मन की बगिया,सुख बीज सही चुनके मन बोना।

*जय सवैया*  

आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के मार्गदर्शन में आविष्कृत-नवीन छंद को"जय सवैया" नाम दिया गया है।

विधान:-

23 वर्ण प्रति पंक्ति 11, 12 की यति अनिवार्य है।जय सवैया में 4 यति सहित कुल 8 चरण होंगे।सम चरणों के तुकांत समान्त होंगे।


मापनी ~ 

गुरु रगण रगण रगण रगण रगण रगण रगण गुरु

2 212 212 212 2, 12 212 212 212 2


*३-देवा गणेशा*

देवा गणेशा रहो साथ मेरे,तुम्हारी कृपा भी सदा साथ होगी।

माता सती हैं पिता शंभु बाबा,पुकारे तुम्हें ही खड़े आज भोगी।

माया समेटे चले आज कैसे,पिपासा बढ़ी तो बने आज रोगी‌।

दाता गजानंद बप्पा पधारे,सभी नाचते झूमते आज जोगी।

*४-शंभू महादेव*

शंभू महादेव बाबा शिवाला,जपो नाम शंभू हरे कष्ट काला।

डाला गले नाग काला कृपाला,पिया नीलकंठी भरा काल प्याला।

बाँधी जटा में बही जोर गंगा,बँधी देखती है गले नाग माला।

तेरी दया से सभी जीव जीते,सभी जीव को आपने नाथ पाला।


. *पूजा सवैया*

विधान-

गुरु+लघु+( ७× सगण )+ लघु +गुरु

२५ वर्ण, १२,१३, वें वर्ण पर यति

२१ ११२ ११२ ११२ १,१२ ११२ ११२ ११२ १२.

१२,१३वर्णो पर यति।

*१-सुकुमार*

रूप मनभावन हैं सुकुमार,सभी वन में वनवास बिता रहे।

राज सुख छोड़ सभी दिन रैन,लिए मुस्कान सभी विपदा सहे।

देख दमके उनके मुख तेज,खिले कलियाँ पुरवा बहकी बहे।

दानव हुए भयभीत समूल,मनोरथ मंगल देख दिशा गहे।

*२--सहयोग*

नूतन प्रसंग लिए मन आजसुगंधित सा सबका मन कीजिए।

नेक रखना मनके सब भाव।प्रवाहित ज्ञान सभी रस पीजिए।

रीत कपटी करनी अब दूर,यहाँ सहयोग सदा सब दीजिए।

दान मिलता जब ज्ञान सदैव,सभी बढ़के उसको अब लीजिए।

महेश सवैया

२२ ११२ ११२ ११२ ११,२ ११२ ११२ ११२ २.

विधान:--

२२ + ( ७ × सगण ) + २

२४ वर्ण, १३,११ वें वर्ण पर यति हो।

*१-टेर सुनो*

ढूँढे वन बालक सा मन लेकर,टेर सुनो अब रासबिहारी।

मीरा वन में भटके बन पागल,आज छुपे किस ठौर मुरारी।

मेरे दुख का बस केशव कारण,मीत वही कबसे गिरधारी।

पीड़ा सहती तुमको जप माधव,दीनदयाल तुम्हीं त्रिपुरारी।

*२-गगरी*

सूनी मनकी छलके जब गागर,भीग रहा मन का हर कोना।

बैठी पथ में मुरलीधर आकरश्याम बसे मन क्या सुख खोना।

टेढ़े जग की हर रीत बुरी जब,रोक रही मन का अब रोना।

कान्हा उर में बसना तुम आकर,प्रीत भरा मन अंकुर बोना।


*१-सुभाषिता सवैया*

विधान-

सुवासित सवैया में 24 वर्ण / 13,11 वर्ण में यति होगा। 

गुरु को गुरु ही लिखना है और लघु का स्थान सुनिश्चित है। 

212 112 122 121 1,212 122 11 211

देश प्रेम लिए चले वीर सैनिक,मात है धरा वीर कहे अब।

छेड़ना मत आन को बोलते यह, मान है तिरंगा कहते सब।

जीत हाथ सदा पताका लिए करवीर हैं हठीले लड़ते जब।

धूल में अरि को मिलाते चले यह,वीर की विदा नीर बहे तब।

*विज्ञात सवैया* 

२१२ २२१ २२१ २२२,२१२ २११ २२१ २२.

१२,११,वर्णों पर यति।

*१-ढूँढती आँखें*

ढूँढती आँखें तुम्हें बैठ के तीरे,पूछती हूँ चाँद कहाँ श्याम मेरा।

बाँध डोरी प्रेम की रूठ तू बैठा,तान बंशी डसती डाल डेरा।

रोकती आँसू बहे माने नहीं बातें,श्याम आ और बता ठौर तेरा।

भावनाएं मौन होती श्याम आजा,राधिका रोज करे मौत फेरा।


*२-द्वेष के ताले*

आज सारे तोड़ दो द्वेष के ताले,आ जलाएं जग के दीप सारे।

जो उजाले आस के प्रेम फैलाते,आ समेटे नभ के अंक तारे।

साथ संगी सीप सा सदा ले के ,सोच क्यों जीवन दूजे सहारे।

दूरियाँ ही ठीक आघात देते जो,मीत को ही मन देखो पुकारे।

*अनुराधा चौहान'सुधी'*


Thursday, July 22, 2021

विदुषी सवैया

विदुषी सवैया 
वर्णिक सवैया
22 वर्ण प्रति पंक्ति 
10, 12 की यति अनिवार्य है।
विदुषी सवैया में 4 यति सहित कुल 8 चरण होंगे।
सम चरणों के तुकांत समान्त होंगे।
वाचिक रूप भी मान्य होगा। 
मापनी ~ 
रगण रगण रगण रगण रगण रगण रगण गुरु
212 212 212 2,12 212 212 212 2

१-लालसाएं
लालसाएं बढ़ी आज कैसी,कहाँ प्रेम की धार खोती चली है।
भावनाएं रखी हैं किनारे,बिना तेल बाती कहाँ से जली है।
द्वेष के बीज रोपे सभी ने,सदा बेल देती विषैली फली है।
कालिमा आज डेरा जमाएं,वही आज कैसी सभी ने मली है।
२ज्ञान का दीप
ज्ञान का दीप ऐसा जलाना,अँधेरा मिटा के करे जो उजाला।
साँच की लौ बढ़े रोज ऊँची,जले मैल सारे मिटा काम काला।
गूँथलों प्रेम के फूल सच्चे, लिए प्रीत धागे बना आज माला।
भीत कैसी पड़ी आज सूनी,सजा आज खाली पड़े भाव आला।


अनुराधा चौहान'सुधी'
चित्र गूगल से साभार

वीर

 


वाम सवैया के मंजरी, माधवी या मकरन्द अन्य नाम हैं। यह 24 वर्णों का छन्द है, जो सात जगणों और एक यगण के योग से बनता है। मत्तगयन्द के आदि में लघु वर्ण जोड़ने से यह छन्द बन जाता है। केशव और दारा ने इसका प्रयोग किया है। केशव ने मकरन्द, देव ने माधवी, दास ने मंजरी और भानु ने वाम नाम दिया है।

121 121 121 121, 121 121 121 122

धरा पर सैनिक वीर महान,

प्रहार करें अरि मार गिराते।

सदा दिन रात करे वह काम,

उमंग भरे फिर गीत सुनाते।

विशाल पहाड़ बने यह आज,

सहें चुपचाप प्रमाण दिखाते।

झुकाकर शीश अनेक प्रणाम,

सदैव सुवास प्रदीप जलाते।

धरा पर लाल तजे फिर प्राण,

बचाकर मान सदा दिखलाते।

मनोरथ एक रहे फिर पास,

विनाशक रूप दिखा डरवाते।

रहे फिर काँप सभी अरि देख,

अचूक उपाय सदा अपनाते।

सचेत रहें सबसे बलवान,

बने सब वीर यही बतलाते।

*अनुराधा चौहान'सुधी'*

चित्र गूगल से साभार

Monday, July 19, 2021

रावण का अंहकार


 वनवासी की आस लिए क्यों,
अश्रु बहाती हो सीता।
आँख उठाकर देखो वैभव,
सब तेरा बन जा मीता।

सभी देव मुझसे डर भागे,
तीन लोक का मैं स्वामी।
सूर्य चंद्र सब झुकते आगे,
बनकर मेरे अनुगामी।

नयन उठाकर देखो सीते,
यह वैभव तेरा होगा।
अनदेखी कर पछताएगी,
आज नहीं यह सुख भोगा।

नव ग्रह सारे मेरी मुट्ठी,
डरते एक इशारे से।
मंदोदरी बने फिर दासी,
मत बहा अश्रु खारे से।

क्यों पत्थर से पटक रही सिर,
मोती माणिक सब तेरे।
कर इच्छा से स्वीकार मुझे,
यह चरण पकड़ ले मेरे।

भुजा हिलाऊँ धरती डोले,
काँप उठे अम्बर छाती।
तेरा राम तुच्छ वनवासी,
क्यों बातें समझ न आती।

तीन लोक में वैभव ऐसा,
अब तक किसी ने न देखा।
बँधी हुई थी जिस बंधन में,
काट फेंक दी वो रेखा।

सीता तेरी सुंदरता का,
मोल नहीं वनवासी को।
कण्टक पथ तुझको ले घूमे,
छोड़ दे उस विनाशी को।

रावण की माया यह भारी,
आज चरण है सब तेरे।
जीवन बगिया फूल उठेगी,
भोग महल के सुख मेरे।
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍
चित्र गूगल से साभार

Saturday, July 17, 2021

राधा की पुकार

 

श्याम राधा पुकारे चले आइए,देख काला अँधेरा डराता बड़ा।
भागती दौड़ती बाँसुरी जो सुनी,लाज आती मुरारी कहाँ है खड़ा।
छेड़तीं हैं सखी ढूँढती जो तुझे,माथ बेंदा गिरा खो गया वो पड़ा।
सूखती है कली भी अभी आस में,नाथ आओ बता बात क्यों तू अड़ा।

खोलती नैन में देखती हूँ तुम्हें,दूसरा श्याम जैसा सखा है कहाँ।
साँवरे गोपियों को करे बावरा,झूमती नाचती भाग आती यहाँ।
छेड़ दे तान मीठी लगे बाँसुरी,देख लो बैठती हैं सखी भी वहाँ।
मोहना रूप तेरा मुझे मोहता,ढूँढती हूँ वहाँ बैठता तू जहाँ।

गंगोदक सवैया
212 212 212 212, 212 212 212 212
*अनुराधा चौहान'सुधी'✍️*
चित्र गूगल से साभार


Friday, July 16, 2021

चन्द्रमणि छंद



*1.भूपति*
भूपति मन के बन सदा,
जीतो सबकी प्रीत को।
जीवन उसका ही भला,
समझे सच्ची रीत को।

*2.कलरव*
कलरव चिड़ियों का सुना,
मन बालक बन झाँकता।
कौतुक आँखों में भरा,
खोले मूँदे ढाँकता।

*3. आलस
आलस खुशियाँ छीनकर,
धूमिल करता आस है।
बहती नदिया देख कर
बुझती न कभी प्यास है।

*4. सदगुण*
ज्यादा की ले लालसा,
अवगुण मन बोना नहीं
बसना है सबके हृदय,
सदगुण को खोना नहीं।

*5. नूपुर*
छुप-छुप चलती गोपियाँ,
नूपुर खनके जोर से।
कान्हा मटकी फोड़ते,
सुन पायल के शोर से।

*6. संचय*
संचय सुंदर भावना,
सदगुण ही मन में रखो।
पूरन होती कामना,
सुख के सारे फल चखो।

*7. निर्मल*
सच्ची निर्मल भावना,
सबके ही मन में जगे।
जीवन फिर संगीत सा,
सबको ही प्यारा लगे।

*8. सेवक*
संकट में मानव घिरा,
केशव अब पीड़ा हरो।
सेवक अपना जान के,
प्राणों की रक्षा करो।

*9. इच्छा*
इच्छा मन की राह पर,
टेढ़ी-मेढ़ी भागती।
मिलती है खुशियाँ उसे,
जिस मन आशा जागती।

*10. सच्चाई*
सच्चाई की राह पर,
कंटक मिलते लाख हैं।
दृढ़ निश्चय करके चलो,
हो जाते फिर राख हैं।

*11.पगड़ी*
पगड़ी बाबुल की सदा,
होती कुल का मान है।
इसकी रक्षा सब करो,
जग बढ़ता सम्मान है।

*12.बाहर*
बाहर फैले रोग से,
मचता हाहाकार है।
थोड़ी सी भी चूक से,
करता यह संहार है।

*13.तंदुल*
मित्र हाथ तंदुल लिए,
अपने मुख कान्हा भरें।
मन में डरती रुक्मिणी,
लीला लीलाधर करें।

*14.पगली*
पगली पागल प्यार में,
पलकें पोंछे पोर से।
पिघली मन की पीर जब,
पल्लू पकड़े जोर से ।

*15.बीजक*
बीजक सद्गुण रोप लो,
अंकुर सच के फिर खिले।
सच के फल मीठे लगे,
जीवन में हर सुख मिले।

*16.. साधन*
साधन सुख के चाहिए,
करना होगा काम भी।
आलस चादर ओढ़ के,
बिगड़े हरदम नाम भी।

*17. साझा*
छोटी-छोटी बात पे,
अनबन कोई मत करो।
सुख-दुख साझा कर सदा,
रिश्तों में जीवन भरो।

*18. आशा*
संकट में सब ध्यान से,
नियमों का पालन करो।
मिट जाएगा रोग ये,
आशा यह मन में भरो।

*19. छतरी*
छतरी बन पालक सदा,
मुश्किल से रक्षा करें।
दुख की बारिश को बचा,
जीवन में खुशियाँ भरें।

*20. कीड़ा* 
लालच का कीड़ा बुरा,
अंतस दीमक सा लगे।
रिश्तों में कर दूरियाँ
शंका सबके मन जगे।

*21.विकसित*
सपने विकसित सोच से,
ऊँचे अम्बर को छुए।
यश वैभव फिर पास में,
दुख सारे ओझल हुए।

*22.सुविधा*
सुविधा पढ़ने की मिले,
सुंदर सपनों को गढ़ो।
उत्तम शिक्षा ज्ञान से,
जीवन में आगे बढ़ो।

*23.नामक*
लालच नामक रोग ने,
जीना मुश्किल कर दिया।
मानव का ही काल बन,
मानव ने व्यापार किया।

*24.पालन*
सुंदर जीवन चाहिए,
नियमों का पालन करो।
पीपल बरगद नीम से,
धरती का आँगन भरो। 

*25.अबला*
अबला नारी बन सदा
क्यों सहती हो क्लेश को।
सबला बन आगे बढ़ो,
त्यागो कटु आदेश को

*26.. शैली*
शब्दों के संसार को,
सुंदर शैली के रचें।
झगड़े रखकर दूर ही,
कटुता से हरदम बचें।

*27. शाखा*
अम्बर छाई लालिमा,
पुरवा बहती मंद है।
शाखा पुष्पों से सजी,
मन देती आनंद है,

*28. करतल*
बढ़ता मन फिर हौसला,
होती निश्चित जीत तब।
मिलती सच्ची फिर खुशी,
करतल की हो गूँज जब।

*29. निंदा*
करते जो निंदा सदा,
रहते उनसे दूर सब।
कितना भी फिर सच कहें,
झूठी लगती बात तब।

*30. धारा*
छोड़ो झूठी शान को,
सच की धारा में बहो।
धुल जाता है मैल सब,
बातें सबसे सच कहो।

*31.. सरसिज*
सरसिज सरसी में खिलें, 
मारुत महकी मंद है।
मधुकर मधु की प्रीत से,
अंदर होता बंद है।

*32. पंकज*
पुष्कर पंकज से सजा,
सौरभ मन मोहित करें।
झाँकी सुंदर सुमन की,
सबके मन खुशियाँ भरें।

*33. नीरज*
नीरज से खिलना सदा,
सच्ची मन आशा लिए।
जीवन अच्छे कर्म से,
उन्नति पथ जलते दिए।

*34. शतदल*
शतदल खिल सुंदर लगे,
वैसे हो मन भाव भी।
तुमसे ही हर रंग फिर,
मोहक ही स्वभाव भी।

*35. अंबुज*
अंबुज अंबा पर चढ़ा,
माता से विनती करें।
हरके सारे क्लेश को,
मन में फिर आशा भरें।

*36.सूचक*
छाया जब काली बढ़े,
सारे जग को क्लेश दे।
सौरभ सूचक बन बहे,
शुभता का संदेश दे।

*37. निशिचर*
निशिचर नीरव रात में,
मानव की खुशियाँ डसें।
होते काले कर्म फिर,
पीड़ा के बंधन कसें।

*38. दशरथ*
रघुवर जाते वन तभी,
दशरथ रोएं पीर से।
धूमिल नयनों से हुई,
प्रभु मूरत फिर नीर से।

*39. बरगद*
पालक बरगद से सदा,
देते छाया ज्ञान की।
बदले में उनको मिले,
खुशियाँ भी सम्मान की।

*40. अवसर*
अवसर मुश्किल से मिले,
जीवन में शुभ काम के।
खोना इनको मत कभी,
बदले में कुछ नाम के।

*41.. सहचर*
सहचर प्यारा मीत सा,
सुख-दुख सब मिलके सहे।
खुशियों की बारिश सदा,
गीतों की सरिता बहे।

*42. आसव*
आसव का प्रेमी बना,
मानव भूला प्रीत को।
झूठी बातें कर सदा,
भूला सच की रीत को।

*43. रंगत*
रंगत संगत हो भली,
ऐसी हर संगत करो।
सज्जन लोगों से सदा,
जीवन में रंगत भरो।

*44. लंबन*
लंबन कजरी तीज पर,
सखियाँ गाती गीत है।
पावन सुंदर पर्व यह,
पावन पवित्र रीत है।

*45. हिमपति*
ऋषि मुनियों के हृदय,
हिमपति का सम्मान है।
गौरव सदियों से बना,
भारत की यह शान है।

*46.. दोहा*
तेरह ग्यारह मापनी,
दोहा सुंदर छंद है।
चौकल से करके शुरू,
लघु पर होता बंद है।

*47. रोला*
ग्यारह तेरह मापनी,
उल्टा दोहा रूप है।
रोला की अनुपम विधा,
छंदों का ही रूप है

*48. कुंडल*
नववधु बैठी पालकी,
जाती साजन द्वार है।
कानन में कुंडल सजे,
कुंदन का गलहार है।

*49. मुक्तक*
मन के कोमल भाव से,
सुंदर मुक्तक बोलते।
भावों की पुरवा चले,
छंदो में फिर डोलते।

*50. चौपाई*
सोलह मात्रा रूप ले,
सुंदर चौपाई रचा।
हनुमत का फिर नाम ले,
मनको हर डर से बचा
©®अनुराधा चौहान'सुधी'✍️
चित्र गूगल से साभार

सुन्दरी सवैया

 

१--सच हुए सपने

सच आज हुए सपने मन के,दुख ढूँढ रहा छुपने अब कोना।

पल सुंदर हाथ लगे अपने,पकड़ो कसके इसको मत खोना।

चुनना सच की तुम राह अभी,दुखड़े पिछड़े मत लेकर रोना।

जब बोझ बने पिछली गलती,उसको मत जीवन में फिर ढोना।

२--घनघोर घटा

चपला चमके गरजे बरसे,मनभावन सावन है मतवाला।

उमड़े बदली घनघोर घटा,तरु पीकर झूम उठे अब हाला।

मनमोहक सुंदर देख छटा।कजरी सुन नाच रही फिर बाला।

सब शोर मचाकर नाच रहे,बरसे हर ओर यही सुख शाला।

मापनी ~

112 112 112 112, 112 112 112 112 2

सुन्दरी सवैया छन्द 25 वर्णों का है। इसमें आठ सगणों और गुरु का योग होता है। इसका दूसरा नाम माधवी है। केशव ने इसे 'सुन्दरी' और दास ने 'माधवी' नाम दिया है। केशव[1], तुलसी [2], अनूप[3], दिनकर[4] ने इस छन्द का प्रयोग किया है।

*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*


Wednesday, July 14, 2021

चुनौती

महाभुजंगप्रयात सवैया

122 122 122 122, 122 122 122 122

अँधेरा घना देख पीछे न जाना,मिटोगे सदा ही न ऊँचे उठोगे।
कभी जीत पाना न होगा तुम्ही से,बिना आस के काम कोई करोगे।
मिटाना सभी आज बाधा खड़ी है,डरे देख के जो चुनौती मिटोगे।
वही आज आगे खड़ा जो हठीला,यही बात मानों तभी तो बढ़ोगे।

हमेशा अपेक्षा किसी से रखो क्यों,दिया जो सदा ही वही लौट आता।
भलाई करो तो भलाई मिलेगी,बुराई करे जो सदा दु:ख पाता।
उपेक्षा अकेले सभी लोग भोगें,यही काल की चाल टेढ़ी दिखाता।
उजाले मिलेंगे करो काम अच्छे,विषैला धुआँ भी तभी दूर जाता।

©® अनुराधा चौहान'सुधी'✍️
चित्र गूगल से साभार

Monday, July 12, 2021

बजरंग बली


*१--हनुमान*
हे हनुमंत सुनो विनती अब,आज कृपा प्रभु जी कर दो ना ।
दीन सभी मनुहार करें यह,बोझ पड़े हमको दुख ढोना।
हे दुख भंजन दान दयाकर,सुंदर जीवन में सुख होना।
दो वरदान निहाल करो प्रभु,रात ढले सुख से अब सोना।

*२--बजरंगबली*
संकटमोचन मारुति नंदन,वंदन चंदन मारुति लाला।
है अभिनंदन आज करें सब,जीवन में कर भोर उजाला।
हे बजरंगबली अब आकर,दूर हटा सबसे तम काला।
हों खुशियाँ सबके फिर आँगन, और भरे घर का हर आला।

मत्तगयन्द सवैया 23 वर्णों का छन्द है, जिसमें सात भगण (ऽ।।) और दो गुरुओं का योग होता है। 
भगण ×7+2गुरु, 12-11 वर्ण पर यति चार चरण समतुकान्त।
211 211 211 211, 211 211 211 22

*अनुराधा चौहान'सुधी'✍️*
चित्र गूगल से साभार

Saturday, July 10, 2021

चकोर सवैया


 *१-विचार*
चाह सदा मन में सुख की रख,काम करो सब सोच विचार।
मान मिले सम्मान मिले तब,शीश चढ़े मिटते दुख भार।
आँच जहाँ मन झूठ लगी फिर,राख बने सपने मन मार।
पाँव बढ़ा सच के चलना पथ,लालच में गिरता मनु हार।

*२-सुख की चाह
प्रीत बढ़े मन भेद मिटे फिर,हो जग में फिर सुंदर राज।
वैभव की मन प्यास जगे फिर,काम शुरू करना कुछ आज।
धूप खिले मनभावन सी तब,जीवन में करते शुभ काज।
चाह सभी फिर पूरण हो मन,गूँज उठें फिर से सुख साज।

*परित्यक्त सीता की व्यथा*
*१*
नीर भरे नयना छलके जब,देख धरा उपजे मन क्रोध।
पीर छुपा रघुनाथ कहें तब,मौन बनी सहती अवरोध।
राघव देख रहे चुप होकर,क्यों सहती फिर घोर विरोध।
देख सिया वनवास चली फिर,अंतस कौंध रहे सब शोध।
*२*
राज लली वन घूम रही जब,भीग रही पलकें तब कोर।
कोमल रूप निहार रहे मुनि,क्यों तनया फिरती वन भोर।
तात छुपी तुमसे कब दारुण,आज व्यथा बनती सिरमोर।
गूँज रहा जनमानस का मन,घोर मचा अब अंतस शोर।

*चकोर सवैया*

भगण × 7 + गुरु + लघु

12,11 पर यति

211 211 211 211, 211 211 211 21

©® अनुराधा चौहान'सुधी'

चित्र गूगल से साभार

Wednesday, July 7, 2021

रासलीला


1
सुनी मुरली जग झूम उठा,
यदुनंदन छेड़ रहे फिर साज।
किलोल करें खगवृंद सभी,
प्रभु रास करें मन गोप विराज।
उजास खिली तम दूर हटा,
नभमंडल देख रहा यह राज।
निहार रही मुख मंडल को,
फिर ढाँक रहीं मुख घूँघट लाज।
2
निनाद करे धरती नभ भी,
पग में घुँघरू करते जब शोर।
मनोहर सुंदर देख छटा,
वन नाच रहे रजनी सब मोर।
निशा यह पूनम भावन सी,
मुख देख रहा तब चाँद चकोर।
निशांत ढली जब सुंदर सी,
तब सूरज ले निकली फिर भोर।
*विधा- मुक्तहरा सवैया*

मुक्तहरा सवैया में 8 जगण होते हैं। मत्तगयन्द आदि - अन्त में एक-एक लघुवर्ण जोड़ने से यह छन्द बनता है; 11, 13 वर्णों पर यती होती है। देव, दास तथा सत्यनारायण ने इसका प्रयोग किया है।
121 121 121 12, 1 121 121 121 121

*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार

रघुनाथ कृपा

चंदन वंदन हे रघुनंदन,
आज करो सबके मन पावन।
मैल मिटे हर दोष हटे फिर,
जीवन हो फिर आज सुहावन।
नीरव बीत रही रजनी अब,
साज बजे बरसे रस सावन।
आज कृपा फिर से करदो प्रभु,
दीप जले सबके घर भावन।
द्वार सजे अब तोरण रंगत,
लोग हँसें दुख भूल सभी जग।
आँगन हो शुभकाम सदा फिर,
बाँध चलें गठरी सुख के नग।
दीन दुखी दुख भूल हँसे तब,
देख विवाद नहीं मचले डग।
राघव हाथ रखो सबके सिर,
लालच देख नहीं भटके पग।

किरीट सवैया नामक छंद आठ भगणों से बनता है। तुलसी, केशव, देव और दास ने इस छन्द का प्रयोग किया है। इसमें 12, 12 वर्णों पर यति होती है।
211 211 211 211, 211 211 211 211
*अनुराधा चौहान'सुधी'*
चित्र गूगल से साभार

Monday, July 5, 2021

सुख सवैया


  *१--सावन*

ऋतु सावन की मनभावन सी,
बदली बरसे घनघोर घिरी घटा।
मन मोर कहीं पर नाच करे,
सब देख रहे दुख को जड़ से कटा।
चपला तड़के गरजे बरसे,
टिप टापुर सुंदर सी निखरी छटा।
मन भार हटे सुख भोर खिले,
खिलती जगती दुख के तम को हटा।

*२--पुरवा*
उगता नभ सूरज ले किरणें,
रथ बैठ उजास जगाकर ला रहा।
चिड़ियाँ चहकी उड़ती दिखती,
हर फूल सुगंधित डाल खिला रहा।
पुरवा बहकी सरसों महकी,
लगता तब चूनर खेत हिला रहा।
जग सुंदर रूप अनूप छटा,
फिर साँझ ढले दिन रात मिला रहा।


 *३--उत्थान*
दिन बीत रहा फिर रैन ढले,
करले अब जीवन में कुछ ठान के।
पल छूट गए यह हाथ सभी ,
फिर घूँट पियो सबसे अपमान के।
मिलती खुशियाँ सबको तब ही,
हर काम करें त्रुटियाँ पहचान के। 
फिर रोक नहीं सकती विपदा,
तब मार्ग खुले सबके उत्थान के

*४--अवलोकन*
महके जग में फिर नाम सदा,
सब काम करो अवलोकन से जरा।
सुख की कलियाँ फलती फिर यूँ,
तरु देख रहा वन को फिर से हरा।
चलना सच की फिर राह सदा,
यह सीख सिखा कहना सच ही खरा।
भटके पथ से जब मानव तो,
छलके फिर पाप घड़ा मद से भरा।

सुख सवैया नवीन सवैया 8 सगण+लघु गुरु से बनता है; 12, 14 वर्णों पर यति होती है। सुखी सवैया 8स+2ल के अन्तिम वर्ण को दीर्घ करने से यह छन्द बनता है।
मापनी ~~ 
112 112 112 112, 112 112 112 112 12

*अनुराधा चौहान'सुधी'*
चित्र गूगल से साभार

सीता का वनवास

 *१*

नीर भरे नयना छलके जब,देख धरा उपजे मन क्रोध।
पीर बढ़ी वनवास मिला जब,मौन खड़ी सहती अवरोध।
राघव मौन रहे सब खोकर,क्यों सहती सिय घोर विरोध।
मूक बनी वनवास चली फिर,अंतस कौंध रहे सब शोध।
*२*
राज लली वन में भटके जब,भीग रही पलकें तब कोर।
कोमल रूप निहार रुके मुनि,क्यों तनया फिरती वन भोर।
तात छुपी तुमसे कब दारुण,आज व्यथा बनती सिरमोर।
तात मिला वनवास मुझे फिर,घोर मचा अब अंतस शोर।

चकोर सवैया*
भगण × 7 + गुरु + लघु
12,11 पर यति 

211 211 211 211, 211 211 211 21

*अनुराधा चौहान'सुधी'*
चित्र गूगल से साभार

Sunday, July 4, 2021

सागर लाँघें कौन


सरसी छंद
 बोले संपाति सुन हनुमंत,दुख यह बड़ा अपार।
रोती रावण की लंका में,सीता सागर पार।

सौ योजन सागर ये लंबा,जाना होगा पार।
राम काज जब पूरे होंगे,होगा तब उद्धार।

माथे सबके चिंता झलकी,सभी बजाएं गाल।
कैसे सागर पार करेंगे,स्वेद झलकता भाल।

सागर लाँघ चला तो जाऊँ,बोले अंगद वीर।
वापस लौट नहीं आ पाऊँ,मन हो रहा अधीर।

सुनो नील हम कैसे जाने, क्या है माँ का हाल।
किस विधि मिले हमें संदेशा,सोचे हनुमत लाल।

वानर नोच रहे केशों को,देख रहे तट ओर।
उछल-कूद कर पत्थर फेंके,कैसे होगी भोर।

नल-नील अंगद मौन बैठे,जामवंत भी मौन।
सबके मन में एक ही प्रश्न,सागर लाँघें कौन।

प्रभु को क्या मुख दिखलाएंगे,आए खाली हाथ।
क्या किसी में भी वो बल नहीं,जो ले आते साथ।

नयनों में बस नीर लिए सब,बैठे सागर पार।
जामवंत कुछ सोच हँसे फिर,हनुमंत बल अपार।

दुविधा का हल खोज रहे हैं, समाधान है पास।
पवनपुत्र हनुमान सुनो तुम, तुमसे ही है आस।

शक्ति भूले केसरी नंदन,लगा हुआ है शाप।
सूरज लील लिया था जिसने,बलशाली वो आप।

याद करो अतुलित बल अपना,जाओ सागर पार।
माता सीता का पता लगे,मन से उतरे भार।

जामवंत के वचन सुने जब,चौंके फिर हनुमंत।
उस घटना को याद किया तब,शाप दिए थे संत।

राम सिया की जय गूँज उठी,पहुँचे सागर पार।
अंगद जामवंत खुश होते,बहती अँसुवन धार।

*अनुराधा चौहान'सुधी'*

सुमुखि ( मानिनी ) सवैया

 *१--उपहार*

निहार रही मुख आनन में,
छवि राम बसी सिय के मन में।
सखी हँस संग किलोल करें,
मुस्कान लिए घर आँगन में।
अपार खुशी फिर नीर बनी,
नयना छलके लग सावन में,
समीर सुगंध बिखेर चली,
उपहार बने रघु जीवन में।


*२--रघुवीर*
प्रहार करे रिपु काँप उठे,
रघुवीर धरा पर आन खड़े।
निहाल सभी फिर देव हुए,
तलवार चलीं अरि भूमि पड़े।
सचेत सदैव बढ़े तनके,
रणवीर बने रण में लड़े। 
नहीं पग रोक सके इनका,
पथ ढाल बने यह आन अड़े।

शिल्प विधान 
मानिनी सवैया 23 वर्णों का छन्द है। 7 जगणों और लघु गुरु के योग से यह छन्द बनता है।११,१२ वें वर्णों पर यति अनिवार्य है।
121 121 121 12, 1 121 121 121 12

*अनुराधा चौहान'सुधी'✍️*
चित्र गूगल से साभार

वागीश्वरी सवैया



*१--संताप*
घनी काल छाया भवानी पड़ी है,
अँधेरा घना आज कैसे मिटे।
धरा डोल के क्रोध ऐसा दिखाती,
जरा देर में प्राण ऐसे मिटे।
सभी को चपेटे यहाँ रोग फैला,
कई भूख से आज वैसे मिटे।
बढ़े आज संताप जैसे लताएं,
सभी आज हैं बूँद जैसे मिटे।

*२--माँ भवानी*
सुनाती कहानी सभी को तुम्हारी,
सुनो माँ भवानी पधारो यहाँ।
खुलें मंदिरों के सभी आज ताले,
खुशी बोलती लोग देखें जहाँ।
मिले गोद तेरी हरो मात पीड़ा,
निराली कृपा आज देखी कहाँ।
नमामी भवानी सुनो माँ हमारी,
जहाँ पाँव तेरे उजाले वहाँ।

शिल्प विधान 
7 यगण + लघु+ गुरु 

मापनी
122 122 122 122, 122 122 122 12

३--धीर
धरें धीर धीरे चलोगे कहीं जो,
नहीं चाल कोई तुम्हें मार ले।
चले ठान के काज पूरा करोगे,
बनेंगे सभी जो सही सार ले।
नहीं छोड़ देना कभी काम ऐसे,
पड़ी राह बाधा चले हार ले।
बढ़े नाम जैसे चढ़े बेल सारी,
खिलेंगी कली भी खुशी भार ले।

४-बुराई
करो काम ऊँचे सभी नाम पूछे,
बुराई मिटा खोल दो द्वार को।
हराए न कोई कहीं बीच बाधा,
नहीं रोकना प्रेम की धार को।
मरी जो उमंगे उन्हें ही जगाओ,
वही जीतते जो सहे हार को।
उमंगे तरंगें सदा ही बढ़ाओ,
चलो मारते बैर की मार को।

*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार

Thursday, July 1, 2021

सुखी सवैया

 

*१--मनमंदिर*

अति घोर बढ़े अपवाद बने,

सुविचार छुपें इनकी बदली घिर।

करना मत लालच संगत को,

कुविचार सदा उपजे मन में फिर।

मनु दंभ भरे लगते सब ही,

फिर नाच करें चढ़के सचके सिर।

हित में सबके फिर काम करो,

शुभ दीप जला अपने मनमंदिर।


*२--अभिमान*

अभिमान तजो सच राह चलो,

रुकना मत कंटक देख कहीं पर।

सबके मनसे मत काम करो,

अब छोड़ सभी मन में बसते डर।

सब सोच-विचार प्रयास करो,

मत आस रखो बनके अब निर्भर।

विश्वास बढ़े जब अंतस में,

भगवान सदा वर दें खुश होकर ।


*३-उपहास*

उपहास सदैव विवेक हरे,

क्षण में करता सबके मन आहत।

अपमान प्रहार कड़े करता,

मन को करता पल में तगड़ा क्षत।

तज आज विकार सभी मन के,

शुभ भाव बसे मनके शरणागत।

उपहार सदैव मिठास भरे,

सब रोज प्रणाम करें झुक के नत।


*४-चिड़िया*

तिनका मुख ले उड़ती चिड़िया,

नवजीवन का फिर नीड़ बनाकर ।

जब अंश नया उसमें पनपे,

किलके फुदके फिर बैठ तना पर।

नव कोमल पंख उगे तन पे,

फिर छोड़ रहा मन से अपना डर। 

चहके उछले वह डाल सभी,

 नभ में उड़ता नयनों सपना भर।

*अनुराधा चौहान'सुधी'*


सुखी सवैया नवीन सवैया 8 सगण+लघु लघु से बनता है; 12, 14 वर्णों पर यति होती है। 

112 112 112 112, 112 112 112 112 11

*अनुराधा चौहान'सुधी'✍️*

रामबाण औषधि(दोहे) -2

  11-आँवला गुणकारी है आँवला,रच मुरब्बा अचार। बीमारी फटके नहीं,करलो इससे प्यार॥ 12-हल्दी पीड़ा हरती यह सभी,रोके बहता रक्त। हल्दी बिन पूजा नही...