Wednesday, June 30, 2021

अरविंद सवैया


 

*विहान* 
चढ़ता नभ सूरज भी हँसता,
किरणें बिखरी बनके रज शान।
 जनजीवन झूम रहा कहके,
रचना रचता नवगीत विहान।
कलियाँ चटकी पुरवा महकी,
भँवरे करते तब सुंदर गान।
वसुधा खिलती जब धूप खिली,
खलिहान चले यह देख किसान।

*दीनदयाल*
तुलसी दल से हरि पूजन हो,
मिलता सबको फल एक समान।
कदली फल भोग सभी रखते,
करते मनसे धन का सब दान।
विपदा धरती पर जो बढ़ती,
उससे मनमोहन क्यों अनजान।
बरसे जब दीनदयाल कृपा,
खुशियाँ भरते सब आँचल तान।
 
*-१-हरि*
मन से हरि का कर ध्यान सभी,
मिटते हर पाप सदा जड़ आज।
मनमोहक रूप अनूप छटा,
हरते जन पीर मिटा दुख काज।
प्रभु नाथ हरें दुख दीनन के,
मन से मिटता हर भार सदा,
हरि से छुप के रहते कब राज।
सबको करनी फल है भरना,
सच राह चलो बजते शुभ साज।

*-२-दीपक*
जब दीपक आस जले मन में,
चहुँओर खिले फिर भोर उजास।
महके पुरवा खिलती कलियाँ,
जब मंदिर द्वार खड़े सब पास।
मन माँग रहा प्रभु से सुख ही,
वरदान यही सब पूरण आस।
विपदा जग से फिर दूर हटे,
करदो सब पीर सदा अब नास।

*अनुराधा चौहान'सुधी'*
अरविन्द सवैया आठ सगण और लघु के योग से छन्द बनता है। 12, 13 वर्णों पर यति होती है और चारों चरणों में ललितान्त्यानुप्रास होता है।
112 112 112 112, 112 112 112 112 1


Tuesday, June 29, 2021

अरसात सवैया


अरसात सवैया 24 वर्णों का छन्द 7 भगणों और रगण के योग से बनता है। देव और दास ने इस छन्द का प्रयोग किया है।

211 211 211 211, 211 211 211 212


*1.. तारणहार*

घेर रही विपदा जब मानव,नाथ दयालु खड़े तब साथ है।

काट रहे सब बंधन संकट,दीन दुखी झुकते सिर माथ है॥

कंठ हलाहल पीकर शंकर,तारणहार बने जग नाथ है।

झूम उठे फिर लोक सभी तब,शीश सदाशिव का फिर हाथ है॥


*2..शिव शंकर*

हे शिव शंकर देव महाशिव,हे शुभकारक मंगल कीजिए।

शंकर से भयभीत सभी दुख,संकट दूर हटे वर दीजिए॥

सावन पावन मास सुहावन,वंदन ये करती सुन लीजिए।

रोग बढ़ा अब जीवन ऊपर,आकर ये विष शंकर पीजिए॥


*१-जीवन*

जीवन सुंदर सागर सा मन,रंगत संगत मानव हो भली।

घोर निशा अरु संकट से फिर भाग नहीं डर निंदक की गली।

पावन संगत में बदले जग,सौरभ चंदन सी तन मे मली।

कुंठित सा मन वंचित हो सुख,सोच बुरी हर पाँव तले डली।


*२-मन*

साधक सा मन कोमल पावन,दीप जले सच के चँहु ओर ही।

सूचक व्यापक हो मनमोहक,देख खिले सुख लेकर भोर ही।

आस भरी बदली बरसे घिर,नाच करें मन के तब मोर ही।

भाग रहा सच से जब भी मन,अंतस बँधन का सुन शोर ही।

 अनुराधा चौहान'सुधी' 

चित्र गूगल से साभार 

Sunday, June 27, 2021

वाम सवैया


*राम सिया का प्रथम मिलन*
सुशोभित सुंदर रूप अनूप,निहार रही मुख रंगत ऐसे।
कुमार सुकोमल राम समीप,सरोज समान विलोचन वैसे।
उमंग हिलोर सिया अतिरेक,पतंग उड़े मन व्याकुल कैसे।
प्रसंग सिया अरु राम मिलाप,नदी मिले अब सागर जैसे।

*सीता की मनोदशा*
मनोरथ नेक विचार महान,करे कर जोड़ प्रणाम कुमारी।
खड़ी रघुनाथ समीप निहाल,निहार रही मुख राजदुलारी।
सदा सुखदायक नाथ दयालु,हरे विपदा शुभ मंगलकारी।
प्रभा मनमोहक श्री रघुवीर,सिया प्रभु रूप अनूप निहारी।

वाम सवैया के मंजरी, माधवी या मकरन्द अन्य नाम हैं। यह 24 वर्णों का छन्द है, जो सात जगणों और एक यगण के योग से बनता है। 
121 121 121 121, 121 121 121 122

अनुराधा चौहान'सुधी' स्वरचित ✍
चित्र गूगल से साभार

Saturday, June 26, 2021

मुक्तहरा सवैया


 *राम की व्यथा*
सुनो खगवृंद बता मुझको,प्रिय प्राण सिया दिखती किस ओर।
लता तरु क्यों चुप से दिखते,मन पीर बढ़ी छुपती अब भोर।
चकोर बना फिरता वन में,कब आस दिखे मुझको किस छोर।
कहाँ भटके वह प्राणप्रिया,वनजीव करें अति भीषण शोर।

*सीता की व्यथा*
किया छल रावण घोर प्रभो,कर जोड़ विलाप करे अतिरेक। 
नहीं करनी जब पार मुझे,फिर लाँघ चली विधि फेर विवेक।
करूँ विनती अब नाथ सुनो,अब पीर सहूँ यह घोर अनेक।
करो प्रभु नाश दशानन का,अब काज करो तुम आकर नेक।

*रासलीला*

बजी मुरली जग झूम उठा,यदुनंदन छेड़ रहे जब साज।
किलोल करें खगवृंद सभी,प्रभु रास करें मन गोप विराज।
उजास खिली तम दूर हटा,नभमंडल देख रहा यह राज।
निहार रही मुख मंडल को,फिर ढाँक रहीं मुख घूँघट लाज।

घुँघरू
निनाद करे धरती नभ भी,पग में घुँघरू करते जब शोर।
मनोहर सुंदर देख छटा,वन नाच करे रजनी फिर मोर।
निशा यह पूनम भावन सी,मुख देख रहा तब चाँद चकोर।
निशांत ढले फिर सुंदर सी,नभ सूरज ले निकली तब भोर।

मुक्तहरा सवैया में 8 जगण होते हैं। मत्तगयन्द आदि - अन्त में एक-एक लघुवर्ण जोड़ने से यह छन्द बनता है; 11, 13 वर्णों पर यती होती है। देव, दास तथा सत्यनारायण ने इसका प्रयोग किया है।
121 121 121 12, 1 121 121 121 121
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार

Friday, June 25, 2021

गंगोदक सवैया


गंगोदक सवैया को लक्षी सवैया भी कहा जाता है। गंगोदक या लक्षी सवैया आठ रगणों से छन्द बनता है। केशव, दास, द्विजदत्त द्विजेन्द्र ने इसका प्रयोग किया है। दास ने इसका नाम 'लक्षी' दिया है, 'केशव' ने 'मत्तमातंगलीलाकर'।
212 212 212 212, 212 212 212 212

*राधा की पुकार*
श्याम राधा पुकारे चले आइए,देख काला अँधेरा डराता बड़ा।
भागती दौड़ती बाँसुरी जो सुनी,लाज आती मुरारी कहाँ है खड़ा।
छेड़तीं हैं सखी ढूँढती जो तुझे,माथ बेंदा गिरा खो गया वो पड़ा।
सूखती है कली भी अभी आस मेंनाथ आओ बता बात क्यों तू अड़ा।
*मोहना रूप*
खोलती आँख में देखती हूँ तुम्हें,दूसरा श्याम जैसा सखा है कहाँ।
साँवरे गोपियों को करे बावरा,झूमती नाचती भाग आती यहाँ।
छेड़ दे तान मीठी लगे बाँसुरी,देख लो बैठती हैं सखी भी वहाँ।
मोहना रूप तेरा मुझे मोहता,ढूँढती हूँ वहाँ बैठता तू जहाँ।
 लालसा
दंभ छोड़ो सभी छोड़के कामना,लालसा लीलती प्रेम की रीति को।
भोर होती नहीं लोभ की देखिए,कालिमा सी घनी घेरती प्रीति को।
खोलिए बंधनों को जरा प्रेम से,खेलने दो सदा भोर सी नीति को
हो उजाले घरों में अभी बंद हैं,द्वार जो खोल दो भूल के भीति को।
*अनुराधा चौहान'सुधी'*
चित्र गूगल से साभार

किरीट सवैया


211 211 211 211, 211 211 211 211
*१-सावन*
देख घने घनघोर घिरे घन,जोर गिरे मनभावन सावन।
दादुर मोर पयोधर पादप,आज दिखे सब ही मनभावन।
बूँद छमाछम शोर करे जब, छेड़ रहा मन राग सुहावन।
काँवर लेकर लोग चलें जब, सावन मास लगे अति पावन।

*२-माधव*
माधव मोहन टेर सुनो मन,मानव जीवन संकट में जब।
काल खड़ा सिर नाच रहा जग,जीवन से सुख छीन रहा अब।
देख रहे चुप होकर क्यों सब,मंदिर के पट बंद हुए तब।
आँगन हो सुख की अब बारिश,मानव की विपदा हरके सब।

*३--रघुनाथ कृपा*

चंदन वंदन हे रघुनंदन,आज करो सबके मन पावन।
मैल मिटे हर दोष हटे फिर,जीवन हो फिर आज सुहावन।
नीरव बीत रही रजनी अब,साज बजे बरसे रस सावन।
आज कृपा फिर से करदो प्रभु,दीप जले सबके घर भावन।

४-तोरण
द्वार सजे अब तोरण रंगत,नाच करे नर भूल सभी जग।
आँगन हो शुभ राज सदा फिर,बाँध लिए गठरी सुख के नग।
दीन दुखी दुख भूल हँसे तब,देख विवाद नहीं मचले डग।
राघव हाथ रखें सबके सिर,लालच देख नहीं भटके पग।

*अनुराधा चौहान'सुधी'✍️*

Wednesday, June 23, 2021

दुर्मिल सवैया



112 112 112 112, 112 112 112 112
*1* 
महारानी लक्ष्मीबाई (मनु)
तलवार उठाकर दौड़ पड़ी,वह काल बनी रिपु भाग खड़ा।
मनु वीर बड़ी रणकौशल में,चुनती पथ पे हर शूल पड़ा।
रिपु काँप उठे छल रोज करें,फिर हार रहा पथ आन अड़ा।
सुत पीठ लिए रणभूमि लड़े, बिजली बनके मुख क्रोध झड़ा।

*2*
अनुशासन
मन दीप जलाकर ज्ञान जगा,तम घोर मिटे घर आँगन से।
उजली किरणें उपमा बनके,रस भाव भरे मनभावन से।
सब मैल हटा कर दूर करो ,मनसे कुविचार विभाजन से।
सब एक समान बने रहते,प्रतिपालन हो अनुशासन से।

*3*
*नव अंकुर*
खिलती कलियाँ जब भोर हुई,बगिया महकी चिड़िया चहकी।
तब आँगन पायल बोल उठी,लकड़ी चटकी फिर से दहकी।
तरु शाख सजी नव अंकुर से,पुरवा चलती लगती बहकी।
हर भोर सुगंधित सी खिलती,मनभावन पावनता महकी।

*4*
*यश*
यश जीवन में मिलता उनको,करते मनसे लिखना पढ़ना।
बढ़ते पथ छोड़ सभी दुखड़े,तब दोष कहीं न पड़े मढ़ना।
सपने अपने सजते श्रम से,फिर रूप सभी मन से गढ़ना।
मिलती खुशियाँ इतनी सबको,फिर शैल सदा सच की चढ़ना।

*अनुराधा चौहान'सुधी'✍️*

Tuesday, June 22, 2021

चन्द्रमणि छंद-१


1. 
गणेश जी को समर्पित
गजमुख लम्बोदर प्रभो,
भवसागर से तारना।
गौरीसुत करते नमन,
पूरी करना कामना।

2. 
माँ शारदे को समर्पित
माँ वीणा वरदायनी ,
विद्या का तू दान दे।
अँधियारा जग से मिटे,
ऐसा माँ वरदान दे।

3. 
भगवान राम जी को समर्पित
रघुकुल राजा राम की,
महिमा अपरम्पार है।
मन से रामायण पढ़ो,
मिटता दुख का भार है।

4. 
गुरूजनों को समर्पित
गुरुवर अनुपम ज्ञान से,
खाली गागर नित भरें।
अनुभव देके फिर नए,
छंदों की बारिश करें।

5. 
छंदशाला परिवार को समर्पित
शाला रचना कर रही ,
छंदो के संसार की।
नवगीतों का हो सृजन,
कोई कमी न प्यार की।

6. बगिया
खिलती बगिया पुष्प की,
माली खुश हो रीझता।
गर्मी से जब सूखते,
मन ही मन में खीझता।

7-संग्रह
सदगुण मन संग्रह करो,
खोटी बातें कर मना
अवगुण अपने दूर कर,
जीवन को सुखमय बना।

*8. मानक*
मानव करनी टालके,
बदले सब स्वरूप ही।
जीवन उसके दुख बढ़े,
मानक के अनुरूप ही।

*9-व्याकुल*
कैसे डसता जा रहा,
संकट इस संसार को।
मानव व्याकुल हो सहे, 
बीमारी की भार को।

*10. दुविधा*
दुविधा मन बढ़ती रहे,
अनचाहे इस रोग से।
चलना संभल कर सभी,
उल्टे सीधे भोग से। 

*11. दोहन*
कानन सारे काट के,
धरती का दोहन किया।
जीवन साधन को मिटा,
जीना मुश्किल कर लिया।

*12. पालन*
ममता देती माँ सदा,
कटु वचनों को भूल कर।
पालन करता है पिता,
सारे कष्टों को भूल के।

*13. महती*
माता की महती बड़ी,
करते हम सब आरती।
इच्छा करती पूर्ण माँ,
कष्टों से है तारती।

*14. क्षमता*
क्षमता अपनी पहचान के,
करना उत्तम काम है।
यश वैभव घर में बढ़े,
होता जग में नाम है।

*15. श्यामल*
श्यामल बदली देख कर,
नाचे वन में मोर है।
बूँदों की टिप टिप सुने,
बचपन करता शोर है।


*16.लतिका*
जीवन में सुख चाहिए,
करना अच्छे काम भी।
वैभव की लतिका बढ़े,
जग में गूँजे नाम भी।

*17.पशुता*
मानवता मरती दिखे,
पशुता पाँव पसारती।
सच्चाई जग से मिटी,
रोती है माँ भारती।

*18.लोचन*
कौरव के दरबार में,
भर के लोचन नीर से।
केशव से विनती करे,
आहत मन की पीर से।

*19.दानव*
मानव दानव रूप में,
करता काले काम को।
कालिख मन में पोत के,
काला करता नाम को।

*20.शाला*
शाला से हमको मिले,
अच्छाई का ज्ञान है।
जीवन के भटकाव का,
गुरुवर रखते ध्यान है।

*खिड़की* 
सच्चाई को देखना,
खिड़की मन की खोल के।
रखना सबको खुश सदा,
मीठी बातें बोल के।

*22. डोली*
डोली जीवन की उठी,
रोता यह संसार है।
टुकड़े-टुकड़े टूटता,
मन पर लेकर भार है।

*23. बाली (पौधे की)*
सूरज की किरणें खिली,
जैसे तपती रेत में।
पकती बाली यूँ लगे,
सोना बिखरा खेत में।

*24. बुझना*
दीपक बुझना आस का,
मानव मन को तोड़ता।
आहत होकर फिर तभी,
सपने पीछे छोड़ता।

*25.नाटक*
जीवन इक नाटक बना,
ईश्वर रचनाकार है। 
उसकी इच्छा से चले,
यह सारा संसार है।

*रजनी*
रजनी दुख की जब ढले,
आए सुंदर भोर है।
चहुँदिश फैले लालिमा,
वन में नाचे मोर है।

*27. आदर*
माता का आदर करो,
देकर उनको प्यार भी।
जीवन के पालक पिता,
हल्का करते भार भी।

*28. गिनती*
गिनती की साँसें मिली,
करलो उत्तम काम ही।
माटी की काया ढही,
रह जाता है नाम ही।

*29. पहली*
पहली गुरु माँ मानिए,
देती उत्तम ज्ञान हैं।
संस्कार सदा मन भरे,
बढ़ता फिर सम्मान है।

*30.सबकी*
सबकी बातें मान के,
आदर गुरुवर का करें।
जीवन में फिर ज्ञान की
खाली गागर नित भरें।
 
*31. लाघव*
लाघव होने से कभी,
घटता है सम्मान कब।
करके अच्छे कर्म ही,
गूँजे जग में नाम तब।

*32. सीधी*
उल्टी सीधी बात से,
बिगड़े सबके काम हैं।
मन को भी मिलता नहीं,
जीवन भर आराम हैं।

*33. शबरी*
शबरी रखती प्रेम से,
चुन-चुन मीठे बेर को।
मन ही मन में पूजती,
सुबह-शाम दोपहर को।

*34. प्रहरी*
प्रहरी सीमा पर डटे,
सहते तन पे वार हैं।
कैसी भी हो आपदा,
नहीं मानते हार हैं।

*35. भूधर*
मेघों की छाया नहीं,
बारिश की अब आस ले।
भूधर बैठा खेत में,
व्याकुल मन की प्यास ले।

*36. नीरव*
नीरव सी गलियाँ पड़ी,
सूने दिखते बाग है।
कोरोना जग फैलता,
जैसे दहकी आग है।

*37. मलयज*
मलयज से लेकर महक,
शीतल पुरवाई चली।
महकाती आँगन भवन,
महकी सूनी हर गली।

*38. चितवन*
चिंतित चितवन मात की,
चाहे सुख संतान का।
सच्चाई के पथ चले।
डर लगता है मान का।

*39. कंपित*
कंपित होती जब धरा,
क्रोधित होकर डोलती।
मानव मानवता बचा,
झटके देती बोलती।

*40. सौरभ*
सौरभ अच्छे कर्म का,
फैले चारों ओर है।
चलना उन्नत पथ सभी,
मिलती उजली भोर है।

*41.. झीना*
झीना परदा लाज का,
नारी माथे पे रखे।
ममता की मूरत बनी,
जीवन का हर रस चखे।

*42. गौरव*
सैनिक गौरव देश के,
हम सबका अभिमान हैं।
उनके मन हरदम बसे,
भारत का सम्मान है।

*43. पीड़ा*
पीड़ा सह माता पिता,
बच्चों का लालन करें।
इच्छा अपनी मारते 
बच्चों की झोली भरें।

*44. गरिमा*
गरिमा बढ़ती है सदा,
हरदम उत्तम काम से।
बढ़ती है पहचान भी,
फिर अपने ही नाम से।

*45. रंजित*
किंशुक की चादर बिछी,
रंजित कानन भी हुआ।
बासंती पुरवा चली,
पुष्पों ने यौवन छुआ।

 *46. जातक*
जातक सा भोला हृदय,
जातक सा हो प्यार भी।
जातक सा ही मन रखो,
सुंदर फिर संसार भी।

*47. मंदिर*
घर को मंदिर मानकर,
माँ देवी सम जानिए।
पूजन पालक का करो,
मिलता सुख सच मानिए।

*48. अभिनय*
करते अभिनय हम सभी,
जीवन लिखता पटकथा।
थोड़ी खुशियाँ झूमती,
दिखती थोड़ी सी व्यथा।

*49. अभिनव*
अभिनव आभा से भरी,
आएगी शुभ भोर है।
बदली आशा की घिरे,
मन में नाचे मोर है।

*50. संगति*
बिन माँगे मिलते सदा,
अवगुण भरके भीख में।
संगति संतों की करो,
सद्गुण देते सीख में।

*अनुराधा चौहान'सुधी'
चित्र गूगल से साभार

मत्तगयन्द सवैया


211 211 211 211,211 211 211 22
1
*संकटमोचन*
संकटमोचन का कर वंदन,दूर करें विपदा शुभकारी।
वायु पुत्र बजरंग बली यह,मंजुल मूरत मंगलकारी
पीर बढ़े जब भी धरती पर,मानव संकट देकर भारी
मारुति संकट दूर करे सब,वानर वीर गदा जब धारी।

2
*सौरभ*
झाँक रहा नभ आज धरा पर,देख रहा बिखरी हरियाली।
सौरभ फैल रही मनमोहक,मारुत मंद बहे खुशहाली।
भोर हुई फिर सूरज ओझल,ओट छुपा बदली फिर लाली।
खेल रहा चुपके-चुपके कुछ,झाँक रहा घर की फिर जाली।
*अनुराधा चौहान'सुधी'*
चित्र गूगल से साभार

Monday, June 21, 2021

गुरुदेव को समर्पित


भावों की बहती नदिया को
सागर सा विस्तार दिया।
उलझ रहे थे शब्द बिम्ब बिन
गीतों का आकार दिया।।

भटक रहा था लेखन मेरा
राह छंद की दिखलाई।
नवगीतों की बेल बढ़ी जब
झूम उठी मन पुरवाई।
अलंकार अब सुंदर दिखते
ऐसा फिर श्रृंगार किया।

दोहा आल्हा छंद रचे फिर
सीख गए हम चौपाई।
निर्झर भाव बहे अब मन से
संगत छंद रास आई।
जीवन से भटकाव मिटा जब
लेखन को साकार किया।।

शिल्प आपसे सीखे हमने
बने पारखी छंदों के।
करते नित अभ्यास सभी फिर
वचन दिए अनुबंधों के।
विज्ञात आपके गीतों ने
एक साहसिक काम किया।।
©® अनुराधा चौहान'सुधी'

सुमुखि सवैया



121 121 121 12, 1 121 121 121 12

1
*विलास*
विलास विवेक विनाश करें,वरदान नहीं अभिशाप बने।
प्रयास पुनीत प्रयोग बने,परिणाम बनी पदचाप सुने।
निखार नवीन निषेध नहीं,अभिमान तजे निष्पाप बने।
सदैव सुमित्र समेत चलें,हर काम सदा चुपचाप गुने।

2
*सरोवर*
समीर सुगंध भरी चलती,मन झूम रहा खुश होकर है।
सरोज सरोवर में महके,अलि झूम उठे सुध खोकर है।
प्रभात प्रकाश निहाल करे,तब जीव जगे फिर सोकर है।
देवालय नाद सुहावन सा,सब जोड़ रहे कर धोकर है।
*अनुराधा चौहान'सुधी'*

Sunday, June 20, 2021

मदिरा सवैया

 

मापनी
211 211 211 2, 11 211 211 211 2

*1*
*नंदकिशोर*
केशव नंदकिशोर कहीं,धुन छेड़ रहे मुरली वन में।
झूम चले घर छोड़ सभी,सब नाच रहे फिर कानन में।
व्याकुल होकर ढूँढ रही,वृषभानु लली सुध खो मन में।
बेसुध होकर देख रहे,तब प्राण नहीं दिखते तन में।

*2*
छोड़ विकार सभी मन के,तब अंतस प्रेम नदी बहती।
संग बहे मन मैल सभी,रस जीवन ज्ञान लिए रहती।
जो विष अंकुर फूट गए,सुख जीवन के क्षण ले ढहती।
आस सदा सच से रखना,यह सीख सिखा सबसे कहती।

*3*
सावन साँझ सुहावन सी,सब साथ सखी सुख साधन सी।
देख घटा घनघोर घिरी,फिर तेज बड़ी बरसे मन सी।
भीग रहे घन श्याम खड़े,ऋतु आज बड़ी मनभावन सी।
साथ सभी सखियों मिलके,महकी फिर प्रीत सुहावन सी।

*4*
रूप मनोहर श्यामल सा,मुखड़ा मनभावन मोहन का।
गोप निहार रही मुख को,सुख आन खड़ा फिर से मन का।
श्याम बसे सबके मन में,सुध भूल फिरे कबसे तन का।
सुंदर रूप अनूप छटा,जब रूप सजे ऋतु यौवन का।

*5*
*सबला*
बाँट रही खुशियाँ सबको,विष पीकर जीवन में कबसे।
कोमलता बन मूरत वो,बस पीर छुपा रहती सबसे।
देख रही बदली जगती,फिर रूप धरा सबला जबसे।
हाथ लिखी खुशियाँ पकड़े,पथ आस लिए चलती तबसे

*अनुराधा चौहान'सुधी'*
चित्र गूगल से साभार

सुंदरी सवैया



मापनी 

112 112 112 112, 112 112 112 112 2

*१.. गुरूदेव जी को समर्पित*
विनती करते कर जोड़ खड़े, गुरुदेव कृपा अपनी बरसाना।
गगरी मन की भरके छलके,इस जीवन में खुशियाँ भरजाना। 
सच के पथ पे चलते चलते,भटके मन को पथ भी दिखलाना।
भटके मन को जब राह मिले, करते मनसे सब ही शुकराना।

*३.. छंदशाला को समर्पित* 
यह छंद समूह रचे रचना,नव छंद बने नित ही अब शाला।
रस भाव भरे उपमा लिखते,भरते बस प्रेम भरा सब प्याला।
मनसे लिखते नित छंद यहाँ,मनसे भरते रस हैं मतवाला।
मिलती सबको नव छंद विधा,मिलके इतिहास सभी रच डाला।

*३--सच हुए सपने*
सच आज हुए सपने मन के,दुख ढूँढ रहा छुपने अब कोना।
पल सुंदर हाथ लगे अपने,पकड़ो कसके इसको मत खोना।
चुनना सच की तुम राह अभी,दुखड़े पिछड़े मत लेकर रोना।
जब बोझ बने पिछली गलती,उसको मत जीवन में फिर ढोना।

*४--घनघोर घटा*
चपला चमके गरजे बरसे,मनभावन सावन है मतवाला।
उमड़े बदली घनघोर घटा,तरु पीकर झूम उठे अब हाला।
मनमोहक सुंदर देख छटा।कजरी सुन नाच रही फिर बाला।
सब शोर मचाकर नाच रहे,बरसे हर ओर यही सुख शाला।
*अनुराधा चौहान'सुधी'*
चित्र गूगल से साभार

Saturday, June 19, 2021

महाभुजंगप्रयात सवैया

मापनी
122 122 122 122,122 122 122 122
1
गणेश जी को समर्पित
पुकारे सभी आज आओ गणेशा,
बढ़े देख कैसा धरा पे अँधेरा।
दया याचना श्री गणेशा सुनो जी,
धरा डालता काल का आज डेरा।
लगे आज ताले सभी मंदिरों पे,
सभी खोल ताले हटा रोग घेरा।
नहीं गूँजती आरती मौन होती, 
सभी को भरोसा यहाँ आज तेरा

2
माँ शारदे को समर्पित
सुनो शारदे माँ करें कामना ये,
बहे ज्ञान गंगा तुम्हारी यहाँ से।
लिखे छंद सारे सवैया रचाएं,
लिखे लेखनी लाख लेखा वहाँ पे।
बहे छंदशाला सदा प्रेम गंगा,
मिले भीगने प्रेम ऐसा कहाँ ये।
चले साथ लेके सभी को यहाँ पे,
खिले रोज शोभा कली की जहाँ से।

3
महादेव को समर्पित
महाकाल शंभू महादेव भोला,
हरे पीर बाबा शिवा है कृपाला।
भजो हे शिवोहं भजो हे कपाली,
शिवा है पिनाकी करे हैं उजाला।
त्रिलोकेश कैलाश बाबा त्रिनेत्र, 
नमामी जटाजूट धारी शिवाला। 
करालं कृपालुं शिवोहं त्रिलोकी, 
लपेटे विषैला फणी कंठ काला।
*अनुराधा चौहान'सुधी'✍️*
चित्र गूगल से साभार

Friday, June 18, 2021

वचन


 राम सिया से कहते देवी
बात पते की सुनलो आज।
लीला करने का यह अवसर
इसको रखना होगा राज।

सुन वचनों को माता पूछे
बोलो स्वामी क्या है काम।
जो बोलोगे काज करूँगी
आदेश मुझे दो प्रभु राम।

दानव दल उत्पात मचाते
रचते निशदिन नूतन वेश।
मायावी ये रूप बदल के
दूषित करते आज प्रदेश

अत्याचार मचाते फिरते
करनी से कब आए बाज।
जो उत्पाद किया दानव ने
दंड मिले उसको लग ब्याज।

दो आज्ञा मुझको क्या करना
होगी हर विधि अब स्वीकार ।
बढ़ता जाए अब तो निशदिन
धरती का मायावी भार।

सुन देवी तुमको अब जाना
छाया छोड़ हमारे पास।
छाया लेकर साथ चलूँगा
बस इतनी छोटी सी आस।

देवी तुम प्राणों से प्यारी
पूरी हो वचनों की लाज।
जीवन का संगीत तुम्ही से
तुमसे सजता है हर साज।

*अनुराधा चौहान'सुधी'*
चित्र गूगल से साभार

Wednesday, June 2, 2021

जटायु रावण युद्ध


 *सीता की पुकार*

कहाँ हो राम आ जाओ,पड़ी विपदा बड़ी भारी।
दुराचारी किया है छल,दशानन है कपट धारी।
हरण मेरा किया उसने,पुकारे रो रही सीता।
बचालो लाज रघुकुल की,कहे यह बात दुखियारी।

1212121212121212
पञ्चचामर छंद
*जटायु*
सुनी पुकार जानकी जटायु देखने लगे।
उड़े विराट आसमान नींद से तभी जगे।

डरो नहीं सुता विराट पंख खोल के उड़े।
विचार त्याग यातुधान दंड भोगना पड़े।

रुको विमान रोक लो सुता यहीं उतार दो।
करूँ प्रहार चोंच का सुनी नहीं पुकार जो।

उड़ान वेग से भरी डरे बिना कटार से 
लगा विमान डोलने जटायु के प्रहार से।

उछाल मार चोंच से किया प्रहार जोर से।
डरा हुआ लगे कभी विशाल पंख शोर से।

*सीता*
जटायु राज याचना पुकारती सिया करे।
धरे असंख्य वेष ये कठोर दोष भी भरे।
 
छली करे ढकोसला विकार नीच में भरे।
जटायु को समीप देख नीर नैन से झरे।

कुलीन भेष धार द्वार याचना करे खड़ा।
खड़ी कुटीर द्वार क्यों कठोर बात पे अड़ा।

हटी नहीं समीप रेख दान थाल हाथ में।
नहीं लिया हठी अड़ा प्रपंच थाम साथ में।

ढकोसले किए कहे घमंड त्याग पाप का।
बिना विचार भोगते सभी विकार श्राप का।

*जटायु*
उखाड़ फेंकता नहीं दिमाग दोष रोपता।
अबोध जानता नहीं सदा रहे कचोटता।

झुका समीप शीश को कठोर दंड भोगता। 
भुला सभी प्रपंच शूल क्यों विशाल रोपता।

सहे प्रहार शूल सा कठोर चोंच मार के।
अनेक वार पंख पे कटार तेज धार के।

कटार पाँख पे पड़ी जटायु चीख के गिरे।
सुनो पुकार नाथ हे विलाप जोर से करे।

अनुराधा चौहान'सुधी'
चित्र गूगल से साभार

Tuesday, June 1, 2021

भगवान परशुराम


  शिव शंभू के घोर उपासक
हाथ लिए फरसा उपहार।
अत्याचारी वंश मिटाने 
गिन-गिनकर करते संहार।

त्रेता युग में जन्म लिया था
श्री हरि के छठवे अवतार।
धरती से आतंक मिटाकर
दूर किया हर अत्याचार।

राम धनुष जो तोड़ दिए थे
करते आकर घोर विरोध।
सूरज सा मुखमंडल चमके
काँपें धरती उनके क्रोध।

लक्ष्मण की कटु बातें सुनकर
ज्वाला बन करते जब वार।
एक इशारे पर प्रभु के फिर
फरसे का लें रोक प्रहार।

एक झलक रघुवर दिखलाए
दूर हुआ तब मन से भार।
राम सिया को शीश झुकाते
करना प्रभु मेरा उद्धार।

नारायण छवि देख के,खुश हुए परशुराम।
बार-बार कर जोड़ते,क्षमा करो श्री राम॥

*अनुराधा चौहान'सुधी'✍️*
चित्र गूगल से साभार

रामबाण औषधि(दोहे) -2

  11-आँवला गुणकारी है आँवला,रच मुरब्बा अचार। बीमारी फटके नहीं,करलो इससे प्यार॥ 12-हल्दी पीड़ा हरती यह सभी,रोके बहता रक्त। हल्दी बिन पूजा नही...