Monday, August 8, 2022

शिव की कृपा


शिव शंभु को करने नमन ऋतु श्रावणी सजकर खड़ी।

लगता जटा से गंग की धारा घटा बनकर झड़ी॥


बम बोल बम कहते हुए सब काँवड़े लेकर चले।

आकर शिवा के धाम पर बहने लगी असुँअन लड़ी॥


हर बैर मन से भागता स्वीकार लो सच भाव से।

शिव की कृपा ही जोड़ती है प्रीत की टूटी कड़ी॥


झंझा नहीं मन भय भरे भोले सदा ही साथ हैं।

भटके नहीं पथ से कभी विपदा पड़े चाहें बड़ी॥


करना शिवा हम पर दया करते सदा हम वंदना। 

कर शीश प्रभु अपना रखो कहती सुधी हठ पर अड़ी॥


©®अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित 

रामबाण औषधि(दोहे) -2

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