Tuesday, July 28, 2020

अनमोल गहना

करूँ विनती सुनो भैया,हमें भी याद  कर लेना।
बहन राखी लिए बैठी,कहाँ अब चैन दिन रैना।
लगे सावन बड़ा फीका,न कोई संग दिखता है।
चले आना जरा मिलने,नहीं हमको भुला देना।

बनाई हाथ से राखी,छुपाया प्यार भी इसमे।
सुखी होवे सदा भैया,सजाई आस भी जिसमें।
सुनहरी भोर बन महके,खुशी आँगन सदा बरसे।
कहीं ढूँढें नहीं पाओ,बहन सा दिल कभी किसमें।

हृदय सम्मान हो नारी,यही उपहार तुम देना।
लगे छोटी बहन जैसी,बड़ी को माँ समझ लेना।
कहीं करना न भूले से,कभी अपमान नारी का।
जगत में नाम हो तेरा,खुशी से छलकते नैना।

दिया है जन्म माता ने,करे अति प्यार भी बहना।
कलाई बाँध के राखी,कहे अनमोल है गहना।
बसी है जान भाई में,सदा चाहे खुशी उसकी।
सुनो भैया यही माँगू,सदा ही प्यार से रहना।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***

Sunday, July 19, 2020

रखो हरियाली धरती

रोला छंद
नाचे सिर पर काल,नहीं कुछ समझे मानव।
कानन रहा उजाड़,बना यह कैसा दानव।
रोका नहीं विनाश,बैठ फिर पछताएगा।
जीवन का आधार,मिटाकर मिट जाएगा।
धरती धूमिल आज,नहीं है तरुवर  छाया।
करदी आज उजाड़,यही मानव की माया।
समय करे ये माँग,रखो हरियाली धरती।
बढ़ता धन औ धान,सभी के संकट हरती।

प्रभू लगाओ पार,जरा भी चैन न पड़ता।
कभी भूकंप बाढ़,धरा का पारा चढ़ता।
खुशहाली भरपूर,यही मन करता चाहत।
मिलती शीतल छाँव,ताप न करता आहत।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

पर्यावरण की क्षति

हरे-भरे पेड़ काट,
कर वनों को सपाट,
हरियाली धरती की,
व्यर्थ न गँवाइए।१।

वृक्ष हरे-भरे घने,
छाया देते रहें तने,
वृक्ष नये लगाने की,
आदत बनाइए।२।

पर्यावरण की क्षति,
कर रहे मूढ़ मति,
प्रकृति के स्वरूप को,
यूँ हीं न गंवाइए।३।

प्रण करें सब आज,
कर कुछ नये काज,
हरियाली को बचा के,
धरा को बचाइए।४।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

Friday, July 10, 2020

सोरठा-भाग-1

1
कैसा यह संसार,बेटी लगती बोझ सी।
हलका करते भार, टुकड़े करके कोख में।।
2
रचा महावर लाल,बेंदा चमके माथ पे।
आज चली  ससुराल,घर बाबुल का छोड़ के।।
3
बेटी माँगे प्रीत,सिमटी आँचल मात के ।
कैसी जग की रीत,मारी निर्बल बालिका।।
4
वचन बड़े अनमोल,मीठी वाणी बोलिए।
विष जीवन मत घोल,मर जाते नाते सभी।।
5
कैसा कलयुग राज,भूली कोयल कूक भी।
गोलमाल सब काज,धूमिल होती धूप भी।।
6
आज धरा की पीर,तपती धरती से बढ़ी।
घन बरसाओ नीर,मेघों की छाया करो।।
7
जल की कीमत जान,कहती है पल-पल धरा।
बूँद सोम सम मान,जीवन जीने के लिए।।
8
संयम से ले काम,उलटी धारा समय की।
जपो राम का नाम,मन के सारे डर मिटे।।
9
मचता हाहाहार,कोरोना के रोग से।
पड़ी समय की मार,मानव डरता देख के।।
10
नहीं देखती काम,जनता चुनती नाम को।
भुगते तगड़ा दाम,अर्थी वचनों की उठी।।

***अनुराधा चौहान'सुधी'***

Thursday, July 9, 2020

धीरज


बलवान बना जब काल खड़ा,
तब धीरज से हर काम करें।
जब संकट से तन जूझ रहा,
हरि नाम जपो प्रभु पीर हरें।
बस अंतर में इक आस जगा,
मन के रिपु भी भयभीत मरें।
तम दूर हटे किरणें चमकें,
नव जीवन में नव प्राण भरें।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

सावन झूम उठा

घिरके घनघोर घटा गरजी,
बरसी बदली वसुधा महकी।
मनभावन सावन झूम उठा,
चिड़िया तरु पे उड़ती चहकी।
भँवरे बगिया पर गूँज करें,
कलियाँ खिलती लगती बहकी।
घन देख सभी मन झूम रहे,
तरु शाख झुकी बिजली लहकी।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***

Wednesday, July 8, 2020

विनती


सुन नागर नंदकिशोर प्रभो,
 मुरलीधर दीनदयाल हरे।
भवसागर में मन डोल रहा,
दुख की बदरी टरती न टरे।

दुख जीवन से सब दूर करो,
सुन नाथ हटा सब पीर परे।
जगतारण दूर करो विपदा,
विनती सुनलो कर जोड़ करे।

सुख भोग लिए जब खूब सभी,
फल भी दुख के कुछ रोज चखें।
जब काल कराल नहीं वश में,
तब केवल संयम को परखें।

मन संकट से डर के न रुके ,
यह सीख सभी अब याद रखें। 
हरि नाम जपो दुख दूर हटे,
मन में प्रभु की छवि को निरखें।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार
दुर्मिल सवैया 
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Friday, July 3, 2020

गुरु वंदना(दुर्मिल सवैया)


कर जोड़ करें विनती गुरुजी,प्रभु भूल सदैव क्षमा करना।
मन में गुरु का नित आदर हो,प्रभु ज्ञान प्रकाश सदा भरना,
चुभते कंटक जीवन पथ में,दुख देख हमें न पड़े डरना।
न विकार कभी पनपे दिल में,मन से सब द्वेष सदा हरना।

करते शत वंदन हे गुरु जी,मन ज्ञान प्रकाश दिये जलते।
गुरु ज्ञान भरी गगरी छलके,तब दोष अज्ञान नहीं पलते
गुरुके चरणों जब शीश झुके,मन के तम और नहीं खलते।
गुरुदेव मिले वर से जग में,सुख के फल फूल सदा फलते।

***अनुराधा चौहान'सुधी'***

चित्र गूगल से साभार

दुर्मिल सवैया
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नारी जग की तारिणी(दोहे)


दो-दो कुल को तारती,नारी बड़ी महान।
ममता की मूरत बनी, देती जीवन दान।

नारी जग की तारिणी,करो सदा सम्मान।
नारी बिन जीवन नहीं,रखती ये अभिमान।

झोली में इसके भरा, ममता,प्यार, दुलार।
देवी सम पूजा करो,नारी जग आधार।

बहना माता संगिनी,नारी के ये रूप।
ढल जाती हर हाल में,वो घर के अनुरूप।

बंधन में ना बाँधना,नारी मन के तार।
नारी तो चाहे सदा,बस थोड़ा अधिकार।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

रामबाण औषधि(दोहे) -2

  11-आँवला गुणकारी है आँवला,रच मुरब्बा अचार। बीमारी फटके नहीं,करलो इससे प्यार॥ 12-हल्दी पीड़ा हरती यह सभी,रोके बहता रक्त। हल्दी बिन पूजा नही...