Monday, June 29, 2020

भोर की किरणें

कहें ये भोर की किरणें,निराशा छोड़ के जागे।
उजाले आस से लेलो,नहीं रण छोड़ के भागे।
कहाँ देखी बिना श्रम के,कभी सुख से भरे झोली।
भरोसा जीत का मन में ,सदा लेकर बढ़ो आगे।

रखे जो ओढ़ के आलस,वही बेकार डरता है।
उड़े पंछी तभी दाना,मिले वो पेट भरता है।
अँधेरा ही मिटाने को,निकलता रोज है सूरज।
मिटा संशय सभी मन के,कर्म ही नाम करता है।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

Sunday, June 21, 2020

वीरों की हुंकार

भरी हुंकार वीरों ने,हवा भी सहम के चलती।
जरा सा छेड़ कर देखो,प्रलय टाले नहीं टलती।
खड़े दीवार बनके ये,भगाते काल को हँसके।
हमारी मात ये धरती,छवि आँखों सदा पलती।

सुनो चीनी पड़े भारी,बढ़ाई बात है तुमने।
लड़ाई जो छिड़ी फिर से,नहीं देंगे कभी थमने
खड़े हम तानकर सीना,नहीं तुम भूल में रहना।
मिला दे धूल में तुमको,यही सीखा सदा हमने।

पड़े हैं चीन पे भारी,हमारे वीर बलवानी।
मिलाया धूल में उनको,बड़े ये धीर अभिमानी।
सुनो गलती करी तुमने,पड़ेगा अब बड़ा भारी।
हमें कमजोर समझने की,करी जो आज नादानी।

मिटा के खाक में तुमको,तभी हम चैन पाएंगे।
बहा जो खून वीरों का,तुम्हारा भी बहाएंगे।
दगा देना नहीं आता,बढ़ाते हाथ दोस्ती का।
किया जो वार पीछे से,वही बदला चुकाएंगे।

हमारी देश की धरती,कहानी वीर की कहती।
सपूतों से भरा आँगन, लिए माँ भारती रहती।
लगाती ये गले सबको,सिखाती प्यार की भाषा।
बड़ी पावन धरा मेरी, कभी गलती नहीं सहती।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

Monday, June 8, 2020

प्रलय के मेघ

दया करना विधाता हे, खड़े हम द्वार पे तेरे।
दुआ माँगे मिटे विपदा,मिटा अब काल के फेरे।
तबाही देख दुनिया में,नहीं अब चैन आता है
हरो संकट सुनो स्वामी,मिटा दो कोप के घेरे।

शिवा शंकर हरी भोले,बता ये भेद कैसा है।
मचा ये मौत का तांडव,प्रलय के मेघ जैसा है।
चला है युग अँधेरे को,नहीं अब रोशनी दिखती।
धरा की आह से प्रभु ने,रचाया खेल ऐसा है।

नहीं डर के भला होगा, तरीका सोचना होगा।
नहीं वन और काटेंगे,अभी वृक्ष रोपना होगा।
मचा संसार में रोना,जहाँ देखो तबाही है।
उगाया बीज नफ़रत का,वही अब भोगना होगा

मिटाना द्वेष जीवन से,तभी फूले फले धरती
खिले बगिया भ्रमर डोले,महक जीवन सदा भरती।
समय की माँग कहती है,मनुज अब खोल लो आँखें।
बचे जीवन हँसे जगती,खुशी की कामना करती।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

Saturday, June 6, 2020

सपूतों की जननी

बड़ी पावन पुनीता है,हमारी देश की धरती।
सपूतों की जनक जननी,सभी का पेट है भरती।
करें सेवा सदा सैनिक,तभी हम शान से जीते।
शहीदों की चिताओं पे,नयन से बूँद है झरती।

खड़े ये धूप बारिश में,सदा सुख चैन हैं खोते।
कटाते शीश ये अपना,तभी हम रैन में सोते।
सहें हर वार सीने पे,कभी पीछे नहीं हटते।
तिरंगे में लिपट सोते,विदाई देख हम रोते।

सहें पीड़ा जुदाई की,धरा पे वीर की माता।
धरा की आन की खातिर,पिया ये विष सदा जाता।
झुका दे ये सभी आँखें,धरा की ओर जो उठती।
डटे दीवार बन के ये,न तोड़ें देश से नाता

कहानी वीर की जग में,न कोई भूल पाएगा।
शहीदों की चरण धूली,सदा माथे लगाएगा।
खड़े दीवार बन के ये,तभी हम चैन पाते हैं।
करो सम्मान सब इनका,तिरंगा मुस्कुराएगा।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

Friday, June 5, 2020

क्रोध धरा का

चलाके पेड़ पे आरी,बुलाई हैं बला सारी।
कहीं सूखा कहीं पानी,पड़ी गलती हमें भारी।
मिटाके आज ये जंगल,घटाते धार पानी की।
बढ़ा है क्रोध धरती का,खड़ी बन मौत बीमारी।

कभी तूफान कहीं गर्मी,बताती रोष ये किसका।
कहीं डोले बड़े हौले,न कोई दोष है उसका।
सताया है बहुत तूने,धरा की बात अब सुन ले।
नहीं चेते प्रलय होगी,यही संदेश है इसका।

कभी अम्फान ने घेरा,किया निसर्ग अभी फेरा।
मिटे कब रोग कोरोना,डटा जग डाल के डेरा।
यही सोचे सदा मानव,विधाता मौन क्यों बैठा।
सताती है महामारी,डराता काल का घेरा।

धरा का रूप जब छीना,तभी ये चैन खोती है।
बढ़ाती रोष ये अपना,गरीबी मौन रोती है।
बिगाड़े वन सभी हमने,सजा अब रोज भोगेंगे।
धरा कसती कड़ा फंदा,न ढीली गाँठ होती है।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

Monday, June 1, 2020

पानी बिन जीवन नहीं (दोहे)

1
बूँद बूँद है कीमती,जल की कीमत जान।
पानी बिन जीवन नहीं,सच को ले पहचान।
2
भीषण गर्मी से तपे, सभी दिवस बन जून।
जीवन की किलकारियाँ,बिन पानी सब सून।
3
धरती का सीना फटा,सूखी जल की धार।
आँखें अम्बर पे टिकी,जल जीवन का सार।
4
संचय करना जल सभी,जीवन हो खुशहाल।
धरती से जो जल मिटा,सिर नाचेगा काल।
5
हरी-भरी हो ये धरा,शपथ उठाए आज।
नीर बचाने के लिए, उत्तम करना काज।

***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

रामबाण औषधि(दोहे) -2

  11-आँवला गुणकारी है आँवला,रच मुरब्बा अचार। बीमारी फटके नहीं,करलो इससे प्यार॥ 12-हल्दी पीड़ा हरती यह सभी,रोके बहता रक्त। हल्दी बिन पूजा नही...