कहें ये भोर की किरणें,निराशा छोड़ के जागे।
उजाले आस से लेलो,नहीं रण छोड़ के भागे।
कहाँ देखी बिना श्रम के,कभी सुख से भरे झोली।
भरोसा जीत का मन में ,सदा लेकर बढ़ो आगे।
रखे जो ओढ़ के आलस,वही बेकार डरता है।
उड़े पंछी तभी दाना,मिले वो पेट भरता है।
अँधेरा ही मिटाने को,निकलता रोज है सूरज।
मिटा संशय सभी मन के,कर्म ही नाम करता है।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार