भवसागर में डोलती,जीवन की जब नाव।
अंत किनारे कब लगे,मन में उठते भाव॥
पार लगाओ कष्ट से,जीवन हो निष्काम।
माँगो प्रभु से आसरा,ले चल अपने धाम॥
नौका लालच बोझ से,हो जब डांवाडोल।
पार लगाएंगे प्रभो,मन से श्री हरि बोल॥
बहती सरिता बैर की,दुःख करता विनाश।
बीच भँवर नैया फँसी,लिपटी छल के पाश॥
हाड़ माँस की कोठरी,मन करता जब शोर।
लिपटा मायाजाल में,मानव ढूँढे भोर॥
©® अनुराधा चौहान'सुधी'
चित्र गूगल से साभार
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-07-2022) को चर्चा मंच "शुरू हुआ चौमास" (चर्चा अंक-4482) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteसराहनीय सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबस जीवन नैया पार होनी चाहिए ... सुन्दर सर्जन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया।
Deleteबहुत सुंदर प्रेरणा से भरे दोहे। बहुत बधाई आपको ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार जिज्ञासा जी।
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रेरक दोहे
ReplyDeleteवाह!!!
हार्दिक आभार सखी।
Deleteबहुत सुन्दर रचना, बधाई.
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया।
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