Tuesday, December 31, 2019

मन बंजारा


मन बंजारा ढूँढ़ता,
कहाँ हो तुम बताओ।
किन गलियों में जा छिपे,
जरा झलक दिखलाओ।

चाँदनी हौले उतरी,
खिड़की में आ बैठी।
लौ संग पतंगा जला,
बाती रही सिसकती।
बीते न यह दिन रातें,
अब तो तुम आ जाओ।
मन बंजारा ढूँढता,
कहाँ हो तुम बताओ।

मौसम भी बदले रंग,
यादें बैरी बनती।
चुप ही सही सखियाँ मेरे,
कानों में कह जाती।
ढूँढ़ता फिर दिल तुझको,
कोई तो बतलाओ।
मन बंजारा ढूँढ़ता,
कहाँ हो तुम बताओ।

बीते दिनों की यादें,
देकर गुजरती साल।
बीते साल में सबने ,
देखे सुख-दुख हजार।
फिर जाने खुशियाँ मिले,
आकर खुशी मनाओ।
मन बंजारा ढूँढ़ता,
कहाँ हो तुम बताओ।।
***अनुराधा चौहान***
आधार छंद*(१३/१२)
चित्र गूगल से साभार

Monday, December 30, 2019

ठिठुरती ठंड

ठिठुरता रहा तन,
छाया है घना घन,
अलाव जलाके सभी,
ठंड दूर फेंकिए।१।

पारा रोज घट रहा,
सूर्य भी दुबक रहा,
अपने घरों में छुप,
रजाई को ओढ़िए।२।

चुभे हवाएं सुई-सी,
ठिठुरती ठंड बड़ी,
कुहासा भरी भोर में,
धूप कहाँ देखिए।३।

गरीबों पे मार पड़ी,
पड़ी कड़ाके की ठंडी,
फटी हुई कथरी में,
कैसे रात काटिए।४।

***अनुराधा चौहान***
(मनहरण घनाक्षरी)
चित्र गूगल से साभार

Friday, December 27, 2019

जीवन शैली

कैसी है यह जीवनशैली,
मिलावट से होती विषैली।
हर तरफ है धूल और धुआँ, 
खेले हैं जिंदगी संग जुआ।

भागदौड़ औ शोर-शराबा,
बीत रहा है जीवन आधा।
रिश्तेदारी बोझ  लग रही,
अपनों की बातें खटक रही।

सब चले उस राह पे ऐसे,
सही बताएं किसको कैसे।
अपने में ही खोए रहते,
सच से सदा भागते रहते।

इंटरनेट जाल में उलझे,
हँसी मज़ाक सभी हैं भूले।
विकास की जब होड़ मची हो,
तब सही ग़लत समझ किसे हो।

काट रहे हम जंगल सारे,
छुपे फिर प्रदूषण के मारे।
हवाओं में भी जहर घुलता,
पानी भी अब दूषित मिलता।

बदलना है ढंग जीने का,
घटता है पानी पीने का।
पर्यावरण को है बचाना,
जीवन शैली उत्तम बनाना।।
***अनुराधा चौहान***

मुन्नी


मुन्नी पूछे मैया से,
तुम रोज बनाती भात।
मुझको पूड़ी हलवा दो,
देखो आए मेरे दाँत।

माँ सुनकर बातें हँसती,
मुन्नी का दर्द समझती।
चेहरे पर मुस्कान लिए,
आँखों में पानी भरती।

सुन ओ मेरी लाड़ली,
क्यों करती है आँखे नम।
मीठी खीर बनाऊँगी,
होने दे जरा ठंडी कम।

मैया की सुन बातें मीठी,
चेहरे पर मुस्कान खिली।
खुश होकर खिलखिलाई मुन्नी,
माँ के आँचल में झूल गई।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Thursday, December 19, 2019

अभी नहीं तो कभी नहीं

अभी नहीं तो कभी नहीं,
चलो झुका लें आसमान को।
डर कर कहीं रुक न जाना,
बढ़ा हौसले की उडान को।

भरकर मन में जोश नया,
हर मुश्किल से टकरा जाना।
पत्थर का चीर के सीना,
एक नई डगर बनाना है।
अब डरना नहीं न झुकना
कुछ कर दिखा दे जमाने को।
अभी नहीं तो कभी नहीं,
चलो झुका लें आसमान को

विरोध होता रहता है,
हर नये काम के आगाज का।
पग-पग पर पथ हैं रोके,
जिसने सच का दामन थामा।
अब रोके ना बाधाएं,
हमें मोड़ देंगे उस पथ को।
अभी नहीं तो कभी नहीं,
चलो झुका लें आसमान को

जीवन पथ टेढ़ा-मेढ़ा,
आसान नहीं है कुछ पाना।
मेहनत के दम पर हमें,
यह सोच बदलते जाना है।
आशाओं के दीप जला,
दूर भगा दें अँधियारो को।
अभी नहीं तो कभी नहीं,
चलो झुका लें आसमान को।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Thursday, December 12, 2019

बेकार है मोहमाया(मनहरण घनाक्षरी)

क्या साथ लेकर आए,
साथ क्या ले जाएंगे जी,
बेकार है मोहमाया,
उलझ न जाइए।1।

तेरा मेरा करने में,
मन में द्वेष पाल के,
अनमोल समय को,
यूँ ही न गंवाइए।2।

सीखकर गीता ज्ञान,
कर्म गति पहचान,
समाज की भलाई के,
कदम उठाइए।3।

लिया कुछ यहाँ से जो,
रह जाए पीछे वह,
कर्म गति न तेज की,
फिर पछताइए।4।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Friday, December 6, 2019

दिल में ज्वाला

कैसा आया विकट जमाना,
भूल गए नारी सम्माना।
हैवानियत ने हदें तोड़ी,
संवेदना रहे दम तोड़ी।

प्रजातंत्र रहा मौन साधे,
न्याय आँख पे पट्टी बाँधे।
इंसानियत है मौन होती,
बेटी कोने में छुप रोती।

खुले आम घूमे हुड़दंगी,
खुशी बेटियों की बेरंगी।
कब तक चलता दौर रहेगा ,
चौराहे पर शोर मचेगा।

रोज नयी है खबरें छपती,
प्रजातंत्र की आँख न खुलती।
अब तलवार साध लो बेटी,
क्यों निर्दोष जले यह लेटी।

बन जाओ फिर से तुम काली,
रूप दिखा रणचण्डी वाली।
कोई नहीं तेरा रखवाला,
करो जागृत दिल में ज्वाला।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

रामबाण औषधि(दोहे) -2

  11-आँवला गुणकारी है आँवला,रच मुरब्बा अचार। बीमारी फटके नहीं,करलो इससे प्यार॥ 12-हल्दी पीड़ा हरती यह सभी,रोके बहता रक्त। हल्दी बिन पूजा नही...