Friday, February 28, 2020

आशा का दीपक (नवगीत)

आशाओं के दीपक से भी,
मन का अँधेरा दूर होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।

क्या रो-रोकर कभी किसी ने,
सुख का जीवन जी पाया है।
कभी नहीं सोचा जीवन में,
 मिला कभी वो ही खोया है।
आना-जाना खोना-पाना,
हर काम समय से ही होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।

आशाओं के दीपक से भी,
मन का अँधेरा दूर होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।

अच्छे कर्मों को सिंचित करके,
मन के आँगन में बो लेना।
बुराई को जड़ से मिटाकर,
जीवन उजियारा कर लेना।
बैठे-बैठे कभी न होगा,
श्रम से ही सब संभव होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।

आशाओं के दीपक से भी,
मन का अँधेरा दूर होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Thursday, February 27, 2020

ममता का सागर(चौपाई)


ममता का सागर है गहरा,
बच्चों पर रखती है पहरा।
संकट कोई पास न आता,
सबसे लड़ जाती है माता।१।

धीर,गंभीर,कोमल मन की
खुशियाँ देती वो बचपन की।
सच्चाई का पाठ पढ़ाती,
अच्छी बुरी बात बतलाती।२।

माँ के आगे झुकता माथा,
त्याग भरी यह सच्ची गाथा।
माँ सरिता सी बहती धारा,
डूबा जिसमें जीवन सारा।३।

आँखों में करुणा का सागर,
भरो ज्ञान से अपनी गागर।
माँ से कोई पार न पाता,
माँ भविष्य की है निर्माता।४।
*अनुराधा चौहान स्वरचित ✍️*
चित्र गूगल से साभार

Monday, February 24, 2020

कोई जहर न उगले

लता लता को खाना चाहे
कहीं कली को निगले
शिक्षा के उत्तम स्वर फूटे
जो रागों को निगले

अविरल धारा बहे सदा ही
साथ ज्ञान को लेकर
भावों के सुंदर बहते हैं
झरने अनुभव देकर
मीठी वाणी रखो सदा ही
कोई जहर न उगले
शिक्षा के उत्तम स्वर फूटे
जो रागों को निगले

लता लता को खाना चाहे
कहीं कली को निगले
शिक्षा के उत्तम स्वर फूटे
जो रागों को निगले

पतझड़ में शाखों पे खिलती
नव पल्लव हरियाली,
मन में कभी न बुझने देना
दीप सदा खुशियाली।
हृदय में प्रेम की ज्वाला से
अँधियारा भी पिघले।
शिक्षा के उत्तम स्वर फूटे
जो रागों को निगले

लता लता को खाना चाहे
कहीं कली को निगले
शिक्षा के उत्तम स्वर फूटे
जो रागों को निगले
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Friday, February 21, 2020

शिव नीलकंठ

शिव नीलकंठ शिव महाकाल,
त्रिनेत्र लाल शिव है विकराल।
लिपटाए बाघाम्बर अंग,
भूत गणादि चले संग संग।

शिव शंभू शंकर कैलाशी,
शिव शंभू जय जय अविनाशी।
भालचंद्र तन भस्म लपेटे,
नीलकंठ दें दुष्ट झपेटे।
छवि सुंदर है ललाट विशाल,
शिव नीलकंठ शिव महाकाल।।

कर त्रिशूल डम डमरू बाजे,
भोले शिव कैलाश विराजे।
गौरी निशदिन करती पूजा,
शिवशंकर-सा देव न दूजा।
शिव से शान्ति शिव ही भूचाल,
शिव नीलकंठ शिव महाकाल।

आदि अंत अनंत शिव शंकर,
शिव महाकाल शिव प्रलयंकर।
जय-जय जय जय शिव ओंकारा,
जटा धरी शीश गंग धारा।
दानव दल करें हाहाकार,
शिव नीलकंठ शिव महाकाल।।

***अनुराधा चौहान*** स्वरचित ✍️©️
चित्र गूगल से साभार

Friday, February 14, 2020

भोर नवेली

आई सुंदर भोर नवेली,
निकली घर से सखी-सहेली।
सूरज सिर पर लगा चमकने,
सरोवर में कमल दल हँसने।।

खिल आई पूरब में लाली,
कलियाँ खिलती डाली डाली।
चली बसंती हवा हर प्रहर,
सुखद अनुभूति से भरी लहर।।

सजी अलौकिक सुंदर आभा,
अंशु फैलाए जग में प्रभा।
मृदु माली बन जीवन सेता,
धरती पे यह जीवन देता ।।

सुबह-सवेरे उठकर आता,
जग में उजियारा फैलाता।
भरे लालिमा निखरती भोर,
पक्षी कलरव का हुआ शोर।।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

नफ़रत


दिशाएँ कह रही हमसे, हवाओं में न विष घोलो।
उजाड़े यह चमन हमने,दिलों के द्वार तुम खोलो।।

सुलगती नफरतें दिल में,यही कड़वी हकीकत है।
लड़ाई मजहबी लड़ते,करी अपनी फजीहत है।।

नशा झूठ सिर का चढ़ता,करें सबको परेशानी।
अहं सिर पर चढ़ा बैठा,करें बिन बात मनमानी।।

 दिल के अंदर कड़वाहट,भुलाकर प्यार की बातें।
उड़ा प्रेम धुआँ बन कहाँ,जले दिन भी जलें रातें।।

चुनी ग़लत सबने राहें,सभी कर्म पथ भी छोड़े।
अपनापन सबने भूला,दिल से बंधन भी तोड़े।।

***अनुराधा चौहान***✍️
विधाता छंद विधान*
१२२२,१२२२,१२२२,१२२२ = २८ मात्रा
१,७,१५,२२वीं मात्रा लघु अनिवार्य

चित्र गूगल से साभार

Thursday, February 13, 2020

शुभाशीष

मत्तगयन्द मालिनी सवैया-मानस-211
7भगण-अन्त में दो गुरू22

भानजि लेखनि देखनि में अति लागति चाहति छाजति छेमा।
दिव्यति शिव्यति,शैवति सो "शिव"जानहु आनहु मानहु नेमा।।

सुन्दरि सुरि रची रचना रचि भेजिहिं मुरैनहिं पावन प्रेमा।
मुब्महिं मुम्बई रक्षित है धन धान्यहु जान्यहु मान्यहु "हेमा"।।

है "शिवराज"कहौं किन शब्दन गौरिहिं-शंकर प्रेम-अगाधा।
छागइ-छागइ"मालिनि"छन्दन लै गई लै मन मोहन-राधा।।

श्रीमति"याविज"रानि दुलारिसु"मातुल"के छमियो अपराधा।
लश्कर मातु-पिता तव श्री "जग-दीश" कि लाड़लि तू "अनुराधा"।।

शारद देवि सहाय करें नित शेष"दिनेश"सुधाकर आशा।
राम-सिया नित प्रेम बढ़ावहिं गौरि-गणेश-महेश दिलाशा।।

है शुभ आशिष जीउ सुहागिनि बुद्धि सनातन-धर्म अकासा।
भक्ति चतुर्दिक प्रीति परस्पर नित्यहिं पूरहिं जो"अभिलाषा"।।

रचनाकार--शिवराज सिंह कुशवाह (राजावत) मुरैना
(एम०ए०हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी)

रामबाण औषधि(दोहे) -2

  11-आँवला गुणकारी है आँवला,रच मुरब्बा अचार। बीमारी फटके नहीं,करलो इससे प्यार॥ 12-हल्दी पीड़ा हरती यह सभी,रोके बहता रक्त। हल्दी बिन पूजा नही...