आशाओं के दीपक से भी,
मन का अँधेरा दूर होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।
क्या रो-रोकर कभी किसी ने,
सुख का जीवन जी पाया है।
कभी नहीं सोचा जीवन में,
मिला कभी वो ही खोया है।
आना-जाना खोना-पाना,
हर काम समय से ही होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।
आशाओं के दीपक से भी,
मन का अँधेरा दूर होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।
अच्छे कर्मों को सिंचित करके,
मन के आँगन में बो लेना।
बुराई को जड़ से मिटाकर,
जीवन उजियारा कर लेना।
बैठे-बैठे कभी न होगा,
श्रम से ही सब संभव होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।
आशाओं के दीपक से भी,
मन का अँधेरा दूर होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार