ऊँचा सजा भवन,जय माँ अंबे।
ज्योत जले अखंड,जय जगदंबे।
पूरन काम करें,मात भवानी।
घर भंडार भरे,ज्योत सुहानी।
कष्ट निवारे माँ,मंदिर बसती।
खुशियाँ की बारिश,माता हँसती।
पुष्प खिले आँगन,आशीष मिले।
आशा का दीपक,हर द्वार जले।
टूट रहीं साँसें, भक्त पुकारे।
नवरात्री आँगन,बसो हमारे।
सुख की है छाया,आँचल तेरे।
मूरत हो तेरी,बस मन मेरे।
जीवन ज्योत जले,तेरी माया।
नवरूपा अंबे,शुभ दिन आया।
घनघोर अँधेरा, दूर हटेगा।
बंजर यह जीवन, फूल खिलेगा।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार