Saturday, May 29, 2021

अत्रि मुनि से मुलाकात

अत्रि मुनि श्री राम को अपने आश्रम में देखकर खुशी से उनकी स्तुति करने लगते हैं।

चित्रकूट से चलते रघुवर,

लिए विचार मिलेंगे मुनिवर,

सुन संदेशा राम पधारे,

दौड़ें उठकर मुनिवर द्वारे।


अत्रि मुनि को आते देखा,

मुख तैरती खुशी की रेखा,

आगे बढ़कर शीश नवाया,

वनवास का वृत्तांत सुनाया।


हर्षित मुनि फिर गले लगाए,

सम्मुख प्रभु श्री राम बिठाए,

जग में पुत्र न तुमसा रघुराई,

भरत लक्ष्मण सा नहीं भाई।


धन्य नाथ में दर्शन पाकर,

सुख दीन्हा मुझे यहाँ आकर,

तीन लोक के प्रभु तुम स्वामी,

मैं तो मानव हूँ अभिमानी।


है नाथ तुम दया के सागर,

मेरी रिक्त ज्ञान की गागर,

करूँ नमन में बारम्बारा,

महिमा तुम्हारी अपरम्पारा।


हे दशरथ के राजदुलारे,

तुमसे चमके अम्बर तारे,

मुनि करते हैं स्तुति राम की,

महिमा बड़ी है श्री राम की।

©®अनुराधा चौहान'सुधी'

चित्र गूगल से साभार


Tuesday, May 25, 2021

राम रावण युद्ध


गूँज उठी तलवारें रण में,
मचता भीषण हाहाकार।
रावण के सिर काट रहे हैं,
रघुवर करके विकट प्रहार।

सीता व्याकुल देख रही है,
कब आएंगे राजा राम।
मुझको भय से मुक्त करेंगे,
कर रावण का काम तमाम।

राम सिया की गूँज उठी तो,
रावण ठोके खाली ताल।
मर्कट के बल क्या जीतेगा,
वनवासी का आया काल।

भेद विभीषण खोल रहे थे,
चलते सुनकर रघुवर चाल।
दानव दल को मार गिराते,
रघुवर बनके सबके काल।

वानर रण में शोर मचाते,
करते लंका नगर विनाश।
चीख पड़ी रावण की लंका,
देख कटीले विधना पाश।

लक्ष्मण अंगद जामवंत सब
रिपु दल पर करते थे वार
हाथों में भाला तलवारें
भीषण करते फिर संहार।

भूल गया था नाथ सभी के
जिसके बल चलता संसार
बन रघुवर का दास नहीं तो
रावण तेरी तय है हार

मोहपाश जकड़ा हुआ,कुल का करे विनाश।
अभिमानी अभिमान में, तेरा होगा नाश॥


*अनुराधा चौहान'सुधी'*
चित्र गूगल से साभार

 *आल्हा छंद पर सृजन*

Tuesday, May 11, 2021

भरत का प्रण


 पितु वचनों के सम्मान में
भूले सुख की प्रीत को।
मैं अनुगामी बन कर प्रभो,
मानूँ रघुकुल रीत को।

हीरे मोती माटी लगें,
सूना तुम बिन महल भी।
सूने गलियारे भी पड़े,
मिटती अब हर चहल भी।

पालक बनकर मैं अवध का,
पालन में हरपल करूँ।
छाया बनकर प्रभु आपकी,
सबके मन खुशियाँ भरूँ।

थाती तो है बस आपकी,
मैं तो केवल दास हूँ।
तुम परमात्मा मेरे प्रभो,
मैं छोटी सी आस हूँ।

दे दो अब अपनी पादुका,
इनको अपने सिर रखूँ।
पूजन करके जगदीश का,
सेवा का हर सुख चखूँ।

रघुकुल की रखकर शान में,
भाई वापस जाऊँगा।
सुमिरन करके दिन रात में,
मन में तुमको पाऊँगा।

श्री राम से चरण पादुका लेने के बाद भरत श्री राम जी से कहते हैं कि "हे प्रभु वनवास की अवधि बीतने के बाद आने में एक दिन की भी देर मत करना..!"

नहीं कुछ और चाहूँ मैं,मुझे वरदान दो इतना।
रखूँगा मान रघुकुल का,समय वनवास के जितना।
बरस चौदह अवधि प्रभु बस,नहीं दिन एक बढ़ पाए।
तजूँगा प्राण पल भर में,सहूँगा पीर मैं कितना।

*अनुराधा चौहान'सुधी'*
चित्र गूगल से साभार

Friday, May 7, 2021

सुनो हे मनमोहन

 

 *सपना छंद* 


■ सपना छंद का शिल्प विधान ■ 
वार्णिक छंद है जिसकी मापनी और गण निम्न प्रकार से रहेंगे यह दो पंक्ति और चार चरण का छंद है जिसमें 6,8 वर्ण पर यति रहेगी। सम चरण के तुकांत समान्त रहेंगे इस छंद में 11,14 मात्राओं का निर्धारण 6, 8 वर्णों में है किसी भी गुरु को लघु लिखने की छूट है इस छंद में लघु का स्थान सुनिश्चित है। लघु जहाँ है वहीं पर स्पष्ट आना चाहिए। मापनी का वाचिक रूप मान्य होगा।
122 222
222 122 21
यगण मगण
मगण यगण गुरु लघु (गाल)

धरा पे सब जाने,
मानव से हुआ है पाप।
तभी हे मनमोहन,
रूठे तो नहीं प्रभु आप।१।

पुकारे धरती माँ,
चीखें गूँजती हर ओर।
अँधेरा यह कैसा,
दिखती अब नहीं शुभ भोर।२।

भुला दो पापों को,
मिट जाए अँधेरा घोर।
सुनाई देती फिर,
हरक्षण टूटे सपने डोर।३।

करें विनती तुमसे,
रक्षा का निभाओ वचन।
मिटाओ जगती से,
बढ़ती है धुएं से घुटन।४।

उजाले फिर से हों,
खुशियाँ से भरी हो भोर।
हँसी घर-घर गूँजे,
गूँजे हर गली फिर शोर।५।

*अनुराधा चौहान'सुधी'*

चित्र गूगल से साभार


Thursday, May 6, 2021

परित्यक्त सीता की व्यथा


सुधी छंद

सहती पीर भारी,
वाटिका खोती अब रूप।
चुपके से अटारी,
झाँकती पूछे फिर धूप।

पूछें फिर हवाएँ,
जानकी क्यों सहती पीर।
विधना की लिखाई,
देख नयना भरते नीर।

विधि के लेख जीते,
मौन सिसकी भरती रात।
लेकर फिर परीक्षा,
क्यों नियति करती है घात।

आशा मन दबाए
सह रही सीता वनवास।
रघुकुल भी पराया,
सोच के टूटे हर आस।

रूठे चाँद तारे,
है अँधेरी काली रात।
सागर ले हिलोरे।
देख आँसू की बरसात।

मन को शांत करती,
क्षोभ की चुभती जब फाँस।
सहकर यह थपेड़े,
रूठ जाए मेरी साँस।

क्यों देना परीक्षा,
आपको है सच आभास।
फिर क्यों मानते हो,
विष बुझी झूठी अरदास।

फट जाए धरा अब,
मैं समाऊँ क्षण में राम।
फिर कारण मिटेगा,
इस धरा से मेरे नाम।

धरती काँपती फिर,
देख सीता का संताप।
रोती हैं दिशाएं,
रोक लो प्रभु अब तो पाप।

पीड़ा देख धरती,
फिर बढ़ाती अपने हाथ।
माँ की गोद आजा,
भूमिजा गरिमा के साथ।

*अनुराधा चौहान'सुधी'*

चित्र गूगल से साभार



रामबाण औषधि(दोहे) -2

  11-आँवला गुणकारी है आँवला,रच मुरब्बा अचार। बीमारी फटके नहीं,करलो इससे प्यार॥ 12-हल्दी पीड़ा हरती यह सभी,रोके बहता रक्त। हल्दी बिन पूजा नही...