Thursday, March 11, 2021

भोले बाबा की बारात



 शंभू शंभू शंभू 
शिवा शंभू भोला
चले आज ब्याहने 
महादेव गौरा
जटा जूट धारी 
गले सर्प माला।
कहलाते नीलकण्ड 
पीकर विष का प्याला
शंभू शंभू शंभू
शिवा शंभू भोला
चले आज ब्याहने 
महादेव गौरा
चले संग नंदी 
 अजब से बाराती
भूत प्रेत देख संग 
थरथराते घराती
मृगछाल लपेटे
मुस्काते हैं भोला
अलंकृत सर्पों से
देख माँ का हृदय डोला
शंभू शंभू शंभू
शिवा शंभू भोला
चले आज ब्याहने 
महादेव गौरा
अजब रूप शिव का
सभी भय से देख काँपे।
बताने सती को 
सखी दौड़ें हांफें
सुन सबकी वाणी
सती ने राज खोला
इसी रूप पर सखियों
मेरा मन डोला
शंभू शंभू शंभू
शिवा शंभू भोला
चले आज ब्याहने 
महादेव गौरा
डम डम डम डमरू की 
धुन बज रही है
महादेव से मिलने 
सती सज रहीं हैं
भय सबका समझा
शिवा मुस्कुराए
रखा रूप सुंदर
त्रिलोक जगमगाए
शंभू शंभू शंभू 
शिवा शंभू भोला
चले आज ब्याहने 
महादेव गौरा
©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार

Monday, March 8, 2021

सत्य पहचानो


 नारी ममता का सागर है।

अनमोल गुणों की गागर है॥

निर्मल जल धारा सी बहती।

दुख अपना न किसी से कहती॥


बड़ी हुई बाबुल के आँगन।

 खुशियाँ भरती है घर साजन॥

 पत्नी बेटी जननी बहना।

ईश्वर का अनुपम यह गहना॥


सहनशीलता की यह मूरत।

बड़ी सुकोमल इसकी सूरत॥

न्योछावर करती सुख सारा।

तप के इसके यह जग हारा॥


मन में रहती है आस यही।

आए हिस्से कुछ प्यार सही॥

जीवन अपना अर्पण करती।

खुशियाँ से घर आँगन भरती॥


संकट बच्चों पर जब आता।

बन जाती यह काली माता॥

शक्ति रूप लिए बनती ढाल।

ठहर सके फिर कोई न काल॥


बनके रहती शीतल छाया।

दुष्टों पर ज्वाला सी माया॥

नारी तुम कमजोर नहीं हो।

काली दुर्गा रूप रही हो॥


बंद करो अब छुप छुप रोना।

सुंदर सपनों का मत खोना॥

अपनी क्षमता फिर पहचानो।

कोमल नहीं शक्ति हो मानो॥


जीना सीखो सबला बनकर।

अधिकार मिले जग से बढ़कर॥

जीवन रण है यह सच मानो।

   सत्य जगत का अब पहचानो॥

©® अनुराधा चौहान स्वरचित ✍️

चित्र गूगल से साभार


Tuesday, March 2, 2021

दशरथ विश्वामित्र संवाद


 
महर्षि विश्वामित्र राजा दशरथ से राम-लखन को साथ ले जाने की याचना करते हुए कहते हैं।

सुनो राजन पड़ी विपदा, नहीं अब चैन आता है।
वनों के बीच दानव दल, बड़ा उत्पात मचाता है।
वचन अपना निभाने को,लखन रघुवीर तुम देदो।
करेंगे दूर यही संकट,यही विधि के विधाता है।

यह सुनकर राजा दशरथ बड़े व्याकुल हो गए और महर्षि विश्वामित्र से हाथ जोड़कर बोले।

चलूँ में संग ले सेना,सुनो बालक बड़े छोटे।
नहीं आयु अभी इनकी,दनुज दानव सभी खोटे।
वचन कुछ और प्रभु माँगो,इसी क्षण प्राण मैं दे दूँ।
लगे दशरथ वचन कहने,छलकते नीर ले मोटे।

दशरथ जी के वचन सुनकर महर्षि विश्वामित्र जी बहुत  क्रोधित हुए और राजा दशरथ से बोले।

कभी सोचा न था राजन,वचन देकर युँ तोड़ेगा।
चली जो रीति सदियों से,कभी दशरथ युँ छोड़ेगा।
नहीं तेरी जरूरत है,न हमको क्रोध अब दिलवा।
वचन देकर कभी रघुकुल,युँ अपनी पीठ मोड़ेगा।

महर्षि विश्वामित्र को क्रोधित होते देखकर मुनि वशिष्ठ आगे बढ़ राजा दशरथ को समझाने लगे।

मिटा राजन सभी शंका,विदा रघुनाथ को करदो।
सुनो वाणी कहें गुरुवर,मिटा दो तुम सभी डर को।
करो सम्मान ऋषिवर का,नहीं यह झूठ कहते हैं।
यही बालक गिराएंगे,धरा पे दनुज के सर को

भगवान श्री राम भी अपने पिता से उन्हें महर्षि विश्वामित्र के साथ भेज देने की प्रार्थना करते हुए कहते हैं।

सुनो विनती पिता मेरी,नहीं यह कुल लजाएगा।
पिता के शीश का गौरव,सदा बेटा बढ़ाएगा।
विदा कर दो हमें हँस के,तपोवन को बचाना है।
मिटा के दनुज दानव को,वचन रघुकुल निभाएगा।

राम के वचनों को सुन और मुनि वशिष्ठ के समझाने पर राजा दशरथ शांत मन से महर्षि विश्वामित्र के साथ अपने प्रिय पुत्र राम और साथ में लक्ष्मण को ले जाने की स्वीकृति प्रदान करते हैं।

लेकर ऋषिवर साथ में,चले लखन रघुवीर।
दशरथ जाते देख के,होते बड़े अधीर॥

महर्षि विश्वामित्र राम लखन को लेकर आश्रम के लिए चल दिए। रास्ते में उजाड़ वन को देख राम लखन ऋषिवर से प्रश्न पूछते हैं।

आई कोई आपदा,कानन हुआ उजाड़।
कैसा निर्जन वन पड़ा, टूटे तरुवर झाड़।

हे राम इस आपदा का नाम ताड़का है।उस राक्षसी ताड़का ने इस हरे-भरे वन को अपनी मायावी शक्तियों से उजाड़ दिया है।राम यह गर्जना सुन रहे हो?यह संकेत है कि वो इधर ही आ रही है।उठाओ धनुष-बाण और उसका वध कर दो राम..!

आवत देखी ताड़का,राम लखन मुस्काए।
लिया धनुष फिर हाथ में,दीन्हा बाण चलाए‌।

ताड़का के मरते ही वनप्रदेश में उसकी माया का प्रभाव भी खत्म हो जाता है।चारों ओर हरियाली छा जाती है।पक्षी चहचहाने लगते हैं। महर्षि विश्वामित्र खुश होकर दोनों को आशीर्वाद देते हैं ।

ऋषिवर से आशीष ले,चले राम अविराम ।
दानव दल पे वार कर,करते काम तमाम।

ताड़का वध के उपरांत राम लक्ष्मण को हर तरह से सुयोग्य जानकर महिर्षि विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को कई दिव्य अस्त्र-शस्त्र और विद्याओं का ज्ञान प्रदान कर हवन की रक्षा की आज्ञा देकर यज्ञ अनुष्ठान करने लगे।

मारीच और सुबाहु आए,
माँस रक्त अम्बर बरसाए।
दशरथ सुत फिर तीर चलाते,
पल में दानव मार गिराते॥

पल भर में मारीच को,फेंका सागर पार।
आश्रम भय से मुक्त कर, किए राम उपकार।

श्री राम और लक्ष्मण ने पर भर में आश्रम को दानव के भय से मुक्त कर दिया और महर्षि विश्वामित्र को यह शुभ संदेश दिया।
 
©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार

रामबाण औषधि(दोहे) -2

  11-आँवला गुणकारी है आँवला,रच मुरब्बा अचार। बीमारी फटके नहीं,करलो इससे प्यार॥ 12-हल्दी पीड़ा हरती यह सभी,रोके बहता रक्त। हल्दी बिन पूजा नही...