Saturday, November 30, 2019

अभिलाषा (दोहे)

 

अभिलाषा धन संपदा,
मन उपजाये क्लेश,
अपनों से ही कर रहा
मानव अब विद्वेष।
(२)
प्यार और विश्वास से,
रख रिश्तों की नींव।
अभिलाषा मन में यही,
सुखी रहें सब जीव।
(३)
सुखमय इस संसार में,
भांति-भांति के लोग।
पालें मन में आरज़ू,
प्रभु से हुआ वियोग।
(४)
मिठास मन में घोलिए, 
भूलकर घृणा भाव।
आरजू सब मिले रहें, 
हृदय में प्रीत  भाव।
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, November 27, 2019

यह लड़के

 
क्योंकि लड़के रोते नहीं
दर्द छिपा लेते मन ही मन
घर से दूर याद आती घर की
फोन करते पर कहते कुछ नहीं
छुट्टियों में जब घर आते
माँ को जी भर सताते
दो दिन में जी लेते फिर बचपन
बहन को पल-पल छेड़ते
अपना रौब जमाते
खाने में क्या बनेगा
करते रोज नई फरमाइशें
पिता से अपना तजुर्बा बता
उनसे रोज नई बातें करते
जाने के वक़्त शांत हो जाते
फिर घर की ओर
देखते नहीं हैं मुड़कर
क्योंकि लड़के रोते नहीं
आँसू पी लेते हैं भीतर ही भीतर
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Saturday, November 23, 2019

फ़लसफ़ा ज़िंदगी का

फ़लसफ़ा ज़िंदगी का
कुछ ऐसा रहा
खुद पर ही खुद का यक़ीन न रहा
बदलते मौसम की तरह
कुछ इस तरह बदले रिश्ते
रिश्तों के रुख पर यकीं न रहा
खूब की थी हमने सबको
समेटने की कोशिश की
अपना-पराया करने में
खुशियों का कारवां 
न जाने कब गुज़र कर
यादों की किर्चों का 
गुबार पीछे छोड़ गया
महक भी न पाए थे
प्यार के फूल गुलिस्ताँ में
नफ़रत की आग में
राख बना बिखर गया
दिल के किसी कोने में
कहीं ज़िंदा है यह भरोसा
लौटेगा फिर एक दिन मौसम
बहार की खुशियाँ लिए
समेट सको समेट लेना
एक बार फिर रिश्तों को
जज़्बात का तूफ़ान थमा
तो फिर लौट नहीं पाएगा
***अनुराधा चौहान*** 
चित्र गूगल से साभार

Tuesday, November 19, 2019

तुम जा तो रहे हो

तुम जा तो रहे हो मगर सुन लो,
याद बहुत हम आयेंगे।
तुम खुश होकर रात गुजारोगे,
भूल नहीं हम पाएंगे।

तन्हा अब यह रातें कटती नहीं,
भोर खुलकर हँसती नहीं।
चुपचाप गुजरते दिन पल-पल,
साँझ भी चुपके से ढले।
चाहें बातें लाख भुला दो तुम,
फिर भी याद हम आएंगे।

तुम जा तो रहे हो मगर सुन लो,
याद बहुत हम आयेंगे।
तुम खुश होकर रात गुजारोगे,
भूल हम नहीं पाएंगे।

बिखर रहे हैं शबनम के मोती,
आँसू बनकर कलियों के।
चुभती हैं अब दिल पे काँटें सी,
फांँसे गुजरी रातों की।
 लौट के अब तुम कुछ न पाओगे,
हम आगे बढ़ जाएंगे।

तुम जा तो रहे हो मगर सुन लो,
याद बहुत हम आयेंगे।
तुम खुश होकर रात गुजारोगे,
तुमको न भूल पाएंगे।।

***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Monday, November 18, 2019

भूल न जाना


मीत बना कर भूल न जाना,
     ऐ साजन परदेशी।
अब के सावन बरस रही है ,
जाने बारिश कैसी।

बीत रहा बहार का मौसम,
   बीत रही ऋतु सावन।
 कजरी गीतों की धूम मची
    सूना मेरा आँगन।
 तुम बिन सूना लागे पनघट,
      सूनी गाँव की गली।
मीत बना कर भूल न जाना,
     ऐ साजन परदेशी।

   हँसना गाना भूले अब तो,
    भूले हर एक रीत।
अँधियारे की फैली चादर,
     बुझ गए सारे दीप।
अगन भरी है शीतल बयार,
     बीते रैना ऐसी।
मीत बना कर भूल न जाना,
     ऐ साजन परदेशी।

 भींगी पलकें लेकर बैठे ,
     नैना राह निहारे।
सखियाँ हँसके देंगी ताने,
   सोच-सोच हम हारे।
तड़पूँ जल बिन मछली जैसी,
    यह नाराजी कैसी।
मीत बना कर भूल न जाना,
     ऐ साजन परदेशी।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Saturday, November 16, 2019

झूठ का उपवास

सच रहे सदा साथ,
झूठ का हो उपवास,
ऐसी धारणा के संग,
कदम बढ़ाइए।।

बुराई की राह छोड़,
कुरीति के बंध तोड़,
जगत की भलाई की,
आवाज उठाइए।।

बैर मन से दूर हो,
क्रौध का उपवास हो,
प्रीत और विश्वास की,
एकता दिखाइए।।

वास्तविकता को देख,
मिटे नहीं भाग्य लेख,
प्रभू की मर्जी के आगे,
शीश को झुकाइए।।

***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

पानी


मूलमंत्र है सृष्टि का, पानी जग आधार।  
प्रकृति के असंतुलन से,मिटती जल की धार।।

विकास के इस दौर में,डसे प्रदूषण नाग।
गाँव-घर में दौड़ रही, बीमारी की आग।।

रोको वन अब काटना,प्रकृति रही है बोल।
जो रोके से ना रुके,धरा रही है डोल।।

***अनुराधा चौहान***

Thursday, November 14, 2019

रेत के घरौंदे

पल-पल बिखरती
रेत के घरौंदे-सी
यह ज़िंदगी फिसलती
कभी टूटकर बिखरे
कभी खुलकर जिए
किस्मत में कहाँ सबके
जो आसमान को छुए
स्वप्न भरी आँखों में
आशा के किरण जगाए
मंज़िल की तलाश में
हौंसलें की उड़ान भरते
हर-पल घटती ज़िंदगी को
खुशियों से सींचने का
अथक प्रयास करते
टूट जाए स्वप्न तो
उम्मीदों की लाश पर
फिर से स्वप्न जगाते
पूरे हों या न हो स्वप्न
सफर पर आगे बढ़ जाते
इंसान के मन में अगर
होते हैं हौंसले बुलंद
तो मुश्किल से टकरा जाते
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

हौसले परवाज़ हैं

मत दो आवाज हमें
कदम नहीं रुकने वाले
हौसले परवाज़ है
यह नहीं थकने वाले
कर लिया इरादा
लक्ष्य पर है निगाहें
क्या रोक सकेंगी हमें
आने वाली बाधाएं
आँधियों का हमें भय नहीं
बारिश से हम रुके नहीं
हौसले के परवाज़ हम
अब रोके से रुकें नहीं
काँटे भरी डगर मिली
तो कोमल उसे बनाएंगे
मंज़िल को मुश्किलों
छीनकर हम ले आएंगे
हौसले परवाज़ है
छुएंगे ऊँचाईंयो को
लिखेंगे नई इबारत
अपनी पहचान बनाएंगे
बहुत भटक लिए
अब कदम नहीं रुकने वाले
मृग मरीचिका की चाह में
अब नहीं फंसने वाले
उम्मीद का जलता दिया
अब नहीं बुझने वाला
हौसले परवाज़ है
अब हम नहीं रुकने वाले
***अनुराधा चौहान*** 
चित्र गूगल से साभार

बालदिवस

बालदिवस आया मनभावन,
धूम मची है घर के आँगन।
ओढ़ के चुनरी बालिकाएं,
सुंदर -सुंदर नाच दिखाएं।

लाल गुलाब हाथ में लेकर,
नेहरू जी को नमन झुककर।
प्रण हैं सच्ची राह चलेंगे,
कठिनाई से नहीं डरेंगे।

शपथ ले आज करें यह काम,
जग में गूँजे देश का नाम।
पूरा होगा एक दिन सपना,
विश्व गुरु बनेगा देश अपना।

करके बाल-सुलभ यह बातें,
सबके हृदय को हैं लुभाते।
मासूम नन्हे राज दुलारे,
चाचा नेहरू इन्हें प्यारे।।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Wednesday, November 13, 2019

कुछ टूटा और कुछ छूट गया

मेरे बस में नहीं मेरा दिल रहा,
कुछ टूटा और कुछ छूट गया,
दिल में यादों का धुआँ उठा,
कुछ टूटा और कुछ छूट गया।

माँगी यह दुआ तू खुश रहे
जिस घर की तू दुल्हन बने
खुशियों भरा हो वो अँगना
मेरे बस में नहीं मेरा दिल रहा
कुछ टूटा और कुछ छूट गया


टूटे हुए तारे-सी है किस्मत मेरी 
खुशियाँ चल दी छोड़ देहरी मेरी
यह दिल क़िस्मत पर रो पड़ा
मेरे बस में नहीं मेरा दिल रहा
कुछ टूटा और कुछ छूट गया

अब यादों की गठरी साथ ले
चल दिए प्रीत में हम बर्बाद हुए
तन्हाईंयों ने घेरा घर मेरा
मेरे बस में नहीं मेरा दिल रहा
कुछ टूटा और कुछ छूट गया
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

तुलसी मैया


मेरे अँगना में तुलसी मैया,
पधारो श्रीहरि तुम्हें निमंत्रण,
दुल्हन बनी हैं आज तुलसी मैया
मेरे अँगना में तुलसी मैया।।

सोलह श्रृंगार भेंट चढ़ाऊँ,
शालिग्राम से ब्याह कराऊँ,
देहरी पे दीप जलाऊँ तुलसी मैया,
मेरे अँगना में तुलसी मैया।।

नेह बरसता रहे सदा तेरा,
सुंदर सजाऊँ में तुलसी बिरवा,
रच-रच भोग लगाऊँ तुलसी मैया,
मेरे अँगना में तुलसी मैया।।

तुमसा हुआ न कोई सती,
दिवा कार्तिक एकादशी,
हो रहा श्रीहरि से विवाह तुलसी मैया,
मेरे अँगना में तुलसी मैया।।
***अनुराधा चौहान***

Tuesday, November 12, 2019

स्वप्न अलबेला

गुड़िया ने देखा स्वप्न अलबेला,
देखे रोज नया झमेला।
बैठी पेड़ पर गौरय्या रानी ,।
तन पे कोट घड़ी हाथ में पहनी।
हाथ में लेकर चाय की प्याली,
कहे पीलो अदरक वाली।
देख नजारा गुड़िया चकराई,
मम्मी को आवाज लगाई।
मम्मा-पापा जरा यह तो देखो,
बदल रही है दुनिया देखो।
अब यह सब भी पहनेंगे टाई,
बिल्ली भी करेगी सिलाई।
क्या हाथी की पोशाक सिलेगी,
दुनिया बड़ी अलग दिखेगी।
गौरेय्या रानी तुम बतलाओ,
जरा संग कमरे में आओ।
आओ बन जाएं सखी-सहेली,
बूझे दुनिया की  पहेली।
जब उठी नींद से बाहर भागी,
पेड़ की कट गई थी वह डाली।
जोर-जोर से रोई थी गुड़िया,
अच्छी थी सपनों की दुनिया।
सभी वहाँ हिलमिल के रहते,
हर बार पर नहीं झगड़ते।
कितना अनोखा वह संसार,
सभी करते थे आपस में प्यार।
***अनुराधा चौहान***

Sunday, November 10, 2019

प्रेम की परिभाषा

किस प्रेम की परिभाषा दूँ
प्रेम लिखने की वजह नहीं
रग-रग में बसी यह अनुभूति
कैसे शब्दों में बयां कर दूँ

प्रेयसी के दिल के भाव लिखूँ
या में लिख डालूँ माँ की ममता
करवाचौथ के व्रत में छुपा हुआ
सुहागिन का पति प्रेम लिखूँ

कठोरता का ओड़ आवरण
पिता के हृदय बसा प्रेम लिखूँ
कवि हृदय में बसा हुई
रचनाओं से उनकी  प्रीत लिखूँ

किस प्रेम की परिभाषा दूँ
प्रेम लिखने की वजह नहीं
रग-रग में बसी यह अनुभूति
कैसे शब्दों में बयां कर दूँ
***अनुराधा चौहान***

दीप जले घर-घर

दीप जले थे घर-घर
फिर भी सूनी दीवाली है
कहीं पकवान की सुगंध थी
तो अब सूनी थाली है
हाथों में खनकती थी चूड़ियाँ 
घर में खुशियाँ गूँजती थी
वीरों की कुर्बानियों से
रंक्तरंजित धरा है बिलखती
कभी जलते हुए दिए थे
खुशियों भरी किलकारी थी
अब घनघोर अंधेरा छाया
और आँखों में पानी है
श्रद्धासुमन करूँ में अर्पित
वीरों की चिताओं पर
जिनके ही दम पर हरदम
हम सबकी रौशन दीवाली है
इक यह भी दीवाली है
इक वो भी दीवाली थी
तब खुशियों भरी रौनक थी
अब आँखों में पानी है
***अनुराधा चौहान***
शहीदों के परिवार को समर्पित

गजबपुर काल्पनिक शहर

गजबपुर के चौराहे पर,
भीड़ इंसानों की खड़ी।
किसी के हाथ में झाड़ू,
तो किसी के हाथ छड़ी।

लगे हुए थे सब चमकाने,
शहर का हर एक कोना।
वृद्ध छड़ी ले टहल रहे थे,
वृद्धा के हाथों में गहना।

चारों ओर खुशहाली थी,
सब लगे हुए कारोबार में।
चोरों का कोई भय नहीं,
रहते वहाँ सब प्यार से।

खुशियों के हर ओर फूल खिले,
और दिन लगते हैं त्यौहार से।
गरीबी का नामोनिशान नहीं था,
इंसान के भीतर जिंदा इंसान था।

निर्भय होकर घूम रही थी,
बेटियाँ गलियों चौबारे में।
सास,बहू लगे माँ-बेटी-सी,
भाईयों में प्रीत के रंग मिले।

नेता मिले परोपकारी बड़े,
हृदय उनका बहुत बड़ा।
मदद को हरदम रहते खड़े,
न कोई झंझट ना ही लफड़ा।

सपनों-सा यह शहर अलबेला,
काश ऐसा सारा संसार हो।
खुशियों का लगता रहे मेला,
प्रीत की सदा बरसात हो।
***अनुराधा चौहान*** 
चित्र गूगल से साभार

आँखें खोलो

दिन ढले बीते रैना
तुम बिन एक पल आए न चैना
बीती रात खिल उठे
कमलदल
भँवरों के स्वर से गूँजे
महकते उपवन 
ओस धरा के अंग समाई 
आस मिलन की फिर जाग आई
नीर नैनों से छलक उठे
सपने विरहाग्नि में जल उठे
बेपरवाह थी तेरी चाह में
चल दी काँटों भरी राह में
सुनहरे स्वप्न सब खाक हुए
जिद्द में अपनी बर्बाद हुए
अब न आगे और न पीछे
मझधार में कुछ न सूझे
तब दिल से एक आवाज है आई
क्यों रोकर जाए उमर गंवाई
आँख खोल नई भोर खड़ी
ले जीवन से सुनहरे पल की लड़ी 
गम की रात बीतेगी सुबह आएगी
बहती हुई पवन पुरवा सुनाएगी
***अनुराधा चौहान*** 

देवउठनी एकादशी

एकादशी दिवस बड़ा पावन।
विवाह तुलसी का है आँगन।।
ब्याहन आए हैं शालिग्रामा।
सुंदर छवि वर अति सुहाना।।

श्रीहरि की हैं तुलसी संगी।
वृंदा है श्री हरि वामांगी।।
पवित्र पावन न कोई ऐसा।
सती जग में न तुलसी जैसा।।

शीश मंजरी इसके बिराजे।
अँगना मध्य माँ तुलसी साजे।‌।
तुलसी पूजन करते भक्ति से।
मिलता है मोक्ष भजन युक्ति से।।

तुलसी के बिन भोग अधूरा।
औषधी गुण भरे यह पूरा।।
घर में सुख-समृद्धि है आती।
हरी-भरी तुलसी जब बसती।।

तुलसी पत्र का भोग लगावे।
पूजा पूरण तब हो जावे।।
नारायण की कृपा बसती।
जिस घर में माँ तुलसी पुजती।।
***अनुराधा चौहान***

भावों की अभिव्यक्ति

प्रीत के सुनहरे धागों में
पिरोए भावों के सुंदर मोती
एहसासों के रंग से रंग कर
माला गुंथी मैंने अलबेली

सच्चाई के मजबूत धागे
अहसासों से इसको बांधे
मन के भाव इसके मोती
वाणी हैे इसकी ज्योती

ज्ञान का अद्भुत भंडार
शब्दों का यह सुंदर संसार
शब्दों से ही रचा-बसा है
भावों का अनुपम प्यार

साहित्य का यह वरदान
कविताएं है इसकी शान
सुंदर भावों से सजा रहे
चमकें सदा सूरज बनके 

दिन बीते बरस बीतते रहे
कारवां यूँ हीं गुजरता रहे
मिलते रहें साथी नए हरदम
यह सफर यूं ही चलता रहे

मन से भावों का झरना बहे
नित नया गीत बनता रहे
मन भावों की अभिव्यक्ति
दिन-प्रतिदिन खिलती रहे

कलम की सुगंध फैले चहुंओर
प्रीत का गीत बने यह डोर
मन के सुंदर भाव भर कर
लाई यह कविता लिख कर

डोर कभी यह टूटे ना
साथ कभी यह छूटे ना
बहुत मिला है ज्ञान यहांँ पर
साथी कोई यहाँ कोई रूठे ना

भावों के अनमोल विचार
भावनाओं का सागर अपार
शब्दों में रची-बसी इसकी दुनिया
साहित्य का यह अद्भुत संसार
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

काश जिगर में तुम बस जाते

आँखों में है आस चमकती, डर हटता।
मन भीतर खुशियाँ हैं बिखरी,तम मिटता।
काश जिगर में तुम बस जाते,गम मिटता।
दिल की बात किसको सुनाते,जी करता।

कह न सकी इस दिल की पीड़ा,गम सहती
रात भर मैं करवट बदलती,कम सोती।
सुनकर मेरे दिल की बातें,जग हँसता।
काश जिगर में तुम बस जाते,गम मिटता।

हाथ पकड़कर चलदी तेरे,पथ कटता।
पग-पग पर मिलती बाधाएं,मन डरता।
तुम्हें बसाया दिल में अपने,रब दिखता।
काश जिगर में तुम बस जाते,गम मिटता।

देख तुझे मैं खुश हो जाती,मन खिलता
सुन प्रीत भरी तेरी बातें,मन हँसता।
नयनों से परदे हट जाते,भ्रम हटता।
काश जिगर में तुम बस जाते,गम मिटता।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

तुलसी विवाह

तुलसी-सा न कोई सति,पावन है यह नाम।
ब्याहने आए श्रीहरि,जगत करता प्रणाम।
जगत करता प्रणाम,तुलसी विवाह के रंग।
शालिग्राम के रूप,सजते हैं श्रीहरि संग। 
कह अनु संगी देव ,बनी है देवियाँ सखी।
 तुलसी पूनम आज,सज रही है तुलसी।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

दूरियाँ

बढ़ रही दूरी हमारे बीच में।
तुम्हें रूठना मनाना चाहिए।।

प्रीत में खुद को मिटाकर देखते।
बेवफा हो तुम जताना चाहिए।।

काश महक लौट आए रिश्तों की ।
हमें तो बस दौर पुराना चाहिए।।
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

रामबाण औषधि(दोहे) -2

  11-आँवला गुणकारी है आँवला,रच मुरब्बा अचार। बीमारी फटके नहीं,करलो इससे प्यार॥ 12-हल्दी पीड़ा हरती यह सभी,रोके बहता रक्त। हल्दी बिन पूजा नही...