Sunday, September 12, 2021

कालनेमी की माया


 रावण

कालनेमी सुन बात मेरी,आज दिखानी है माया।
वनवासी की इस लंका से,आज हटानी है छाया।

काल खड़ा लक्ष्मण सिर ऊपर,चाल चले वो सरपट सी।
रच मायावी भेष उड़ो तुम,राह रोक लो मर्कट की।

संजीवन बूटी तक पहुँचे, उसके पथ आओ आड़े।
प्राण बचे लक्ष्मण फिर कैसे,माया जब काम बिगाड़े।

वनवासी की शक्ति मिटाने, मर्कट को मरना होगा।
उसके तीखे तेवर से ही,लंका ने है दुख भोगा।।

कालनेमी
जीत आपकी होगी स्वामी,मेरा भ्रम उसको खींचे।
सूर्य उदय से पहले वानर,भूमि गिरे अँखियाँ भींचे।

रावण से आज्ञा ले उसने,बीच राह मर्कट आया।
साधु भेष में कुटिया बैठा,राम नाम के गुण गाया।

हनुमान
राम नाम की महिमा सुनकर,हनुमत भ्रम से हर्षाए।
तेजस्वी साधू यह लगता,प्रभो नाम के गुण गाए।

शीश झुका चरणों में बोले,राम काज करने जाऊँ।
शक्ति बाण से बेसुध लेटे,लक्ष्मण के प्राण बचाऊँ।

आशीर्वाद मुझे दो मुनिवर,संजीवन मैं पहुँचाऊँ।
लंका विजय करे जब स्वामी,ऋषि दर्शन को फिर आऊँ।

कालनेमी
प्रभु सेवा करके तुम हनुमत,तीन लोक में यश पाओ।
थोड़ा-सा विश्राम करो यहाँ, फिर आगे पथ पर जाओ।

शीतल जल स्नान करो तुम,भोग लगाओ फल मेवा।
ऐसी अनुपम भक्ति न देखी,करलूँ में थोड़ी सेवा।

कालनेमी का छल न समझा,हनुमत बातों में आए।
शीतल जल स्नान करने चले,देख छली फिर मुस्काए।

कैसा माया जाल रचाया,यह वानर भी चकराया।
मैंने कपटी वेष रचाकर,राम नाम में उलझाया।
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार

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