क्यों वानर किसके दम तूने,आज उजाड़ी है लंका।
किसके बल पर कूँद-फाँद के,यहाँ बजाता तू डंका।
लगता आज मर्कट की मृत्यु ,खींच यहाँ पर लायी है।
मेरे योद्धा मार गिराए,करनी अब भरपायी है।
अक्ष कुमार गिराए भू पर,कैसा दुस्साहस तेरा।
एक चाल चलके क्या समझे,देश बिगाड़ेगा मेरा।
इंद्र काँपते मेरे भय से,देव सभी मेरी मुट्ठी।
नाग असुर किन्नर देवो को,रोज पिलाता भय घुट्टी।
मुझे बता किसके कहने पर,आज उजाड़ी है लंका।
उसका अंत अभी मैं कर दूँ,मिट जाए सारी शंका।
मेघनाद के पाश बँधा तू,मुझे दिखाता है आँखे।
अंग भंग इसको कर भेजो,काटो भ्रम की सब पाँखें।
उत्पाद मचाकर वानर तूने, सुंदर वाटिका उजाड़ी,
उजड़ा उपवन ऐसा लगता, है कोई कंटीली झाड़ी।
वानर रूप रखा है तूने, किसके कहने से आया।
किस छलिए ने रूप बदलकर,अपना अंत बुलाया।
*अनुराधा चौहान'सुधी'*
अहा, सुन्दर चित्रण..
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteवाह बढ़िया रचना !!
ReplyDeleteवाह अनुराधा जी | सरल , सहज शब्दों में रावण के संवाद को संजोकर बहुत बढिया लिखा आपने | लंका के उजड़ने से आहत रावण के प्रश्नों में बहुत मार्मिकता है | एक लंकापति का मान मर्दन एक वानर ने कर दिया -- यह उसके लिए कम बात तो ना होगी |बहुत- बहुत बधाई सुंदर रचना के लिए |
ReplyDeleteआपकी सुंदर समीक्षा के लिए आपका हृदयतल से आभार प्रिय रेणु जी।
Deleteबहुत ही अच्छा दृश्य आपने अपने इस कवित्त से प्रस्तुत कर दिया है अनुराधा जी। लगता है जैसे हम साक्षी हैं इसके। अब प्रश्न हैं तो उत्तर भी होंगे। है ना?
ReplyDeleteजी प्रश्न है तो उत्तर भी है।यह रचना विशेष रूप से रामकथा के लिए के लिए लिखी गई है।जिसके हिस्से जो विषय आता है उसी पर सृजन करना पड़ता है। आपने कहा तो उत्तर भी अवश्य लिखूँगी। आपका हार्दिक आभार। सादर
Deleteहार्दिक आभार सखी।
ReplyDeleteवाह सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया।
Deleteअत्यधिक सुंदर चित्रण किया है । हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार अमृता जी।
Deleteजय श्री राम जय हनुमान
ReplyDeleteअति सुशोभित सज्जित ।
हार्दिक आभार आदरणीय
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