कहें ये भोर की किरणें,निराशा छोड़ के जागे।
उजाले आस से लेलो,नहीं रण छोड़ के भागे।
कहाँ देखी बिना श्रम के,कभी सुख से भरे झोली।
भरोसा जीत का मन में ,सदा लेकर बढ़ो आगे।
रखे जो ओढ़ के आलस,वही बेकार डरता है।
उड़े पंछी तभी दाना,मिले वो पेट भरता है।
अँधेरा ही मिटाने को,निकलता रोज है सूरज।
मिटा संशय सभी मन के,कर्म ही नाम करता है।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार
आशा का संचार करती सुन्दर रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteअति सुंदर रचना ।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteअति उत्तम ,सकरात्मक सोच लिए हुए ,बधाई हो आपको
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-07-2020) को "चिट्टाकारी दिवस बनाम ब्लॉगिंग-डे" (चर्चा अंक-3749) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteसकरात्मक सोच लिए सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार जोया जी
Deleteसुंदर सृजन सखी
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteप्रेरणादायक रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteसकारत्मक सोच जगाती रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteवाह !बेहतरीन सृजन आदरणीय दी .
ReplyDeleteहार्दिक आभार बहना
Deleteवाह!सुंदर सृजन सखी ।
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