Monday, June 29, 2020

भोर की किरणें

कहें ये भोर की किरणें,निराशा छोड़ के जागे।
उजाले आस से लेलो,नहीं रण छोड़ के भागे।
कहाँ देखी बिना श्रम के,कभी सुख से भरे झोली।
भरोसा जीत का मन में ,सदा लेकर बढ़ो आगे।

रखे जो ओढ़ के आलस,वही बेकार डरता है।
उड़े पंछी तभी दाना,मिले वो पेट भरता है।
अँधेरा ही मिटाने को,निकलता रोज है सूरज।
मिटा संशय सभी मन के,कर्म ही नाम करता है।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

19 comments:

  1. आशा का संचार करती सुन्दर रचना।

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  2. अति सुंदर रचना ।

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  3. अति उत्तम ,सकरात्मक सोच लिए हुए ,बधाई हो आपको

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-07-2020) को  "चिट्टाकारी दिवस बनाम ब्लॉगिंग-डे"    (चर्चा अंक-3749)   पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  5. सकरात्मक सोच लिए सुंदर रचना

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    1. हार्दिक आभार जोया जी

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  6. सुंदर सृजन सखी

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  7. प्रेरणादायक रचना

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया

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  8. सकारत्मक सोच जगाती रचना

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  9. वाह !बेहतरीन सृजन आदरणीय दी .

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  10. वाह!सुंदर सृजन सखी ।

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