Saturday, May 16, 2020

श्रमिक पीड़ा (दोहे)

जीवन संकट में पड़ा,भाग रहे हैं लोग।
सारा जग बेहाल हैं,बड़ा विकट ये रोग।

रोजी-रोटी छिन गई,चलते पैदल गाँव।
मिला न कोई आसरा,बैठे पीपल छाँव।

खाने के लाले पड़े,और समय की मार
पैरों में छाले लिए,चले सभी  लाचार।

सूखी रोटी हाथ में,नयन बहाते नीर।
बालक आँचल में छुपा,मात बँधाए धीर।

नन्हे-मुन्ने साथ में,मात-पिता बेहाल।
पैदल घर को भागते,डरा रहा है काल।

साधन कोई है नहीं,बहुत दूर है गाँव।
घर जाने की चाह में, चलते नंगे पाँव।

डिब्बे में आटा नही,पास नहीं है दाम।
कैसी ये विपदा पड़ी, बंद हुआ सब काम।

जीवन ठहरा सा लगे, बुरा लगे आराम।
राजा होते रंक अब,खाली सब गोदाम।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

22 comments:

  1. व र्तमान के हालात को दर्शाते सुन्दर दोहे।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04 मई 2020) को 'गरमी में जीना हुआ मुहाल' (चर्चा अंक 3705) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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    1. धन्यवाद आदरणीय

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    2. संशोधन-
      आमंत्रण की सूचना में पिछले सोमवार की तारीख़ उल्लेखित है। कृपया ध्यान रहे यह सूचना आज यानी 18 मई 2020 के लिए है।
      असुविधा के लिए खेद है।
      -रवीन्द्र सिंह यादव

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  3. सामयिक और सटीक दोहे

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  4. I am really happy to say it’s an interesting post to read Sandeep Maheshwari Quotes Hindi

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  5. वाह !बेहतरीन दोहे बहना.
    सादर

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  6. नन्हे-मुन्ने साथ में,मात-पिता बेहाल।
    पैदल घर को भागते,डरा रहा है काल।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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  7. इस समय की विडम्बनाओं को उजागर करते प्रभावी दोहे

    पढ़े-- लौट रहें हैं अपने गांव

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  8. यथार्थ, मर्म स्पर्शी।

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  9. हकीकत बयान करती हुई ,हृदस्पर्शी रचना ,

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