Monday, July 26, 2021

सवैया छंद सरिता

*विज्ञ सवैया*

आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के मार्गदर्शन में नवीन छंद का प्राकट्य हुआ है - जिसे "विज्ञ सवैया" नाम दिया गया है।विज्ञ सवैया वर्णिक है।

*विज्ञ सवैया विधान:--* 

२३ वर्ण प्रति चरण होंगे।१२,११ वर्ण पर यति अनिवार्य है

४ चरण का एक सवैया होगा।चारों चरण समतुकांत हो।

मापनी:- सगण × ७ + गुरु + गुरु

सगण सगण सगण सगण,सगण सगण सगण गुरु गुरु

११२ ११२ ११२ ११२,११२ ११२ ११२ २ २          

1--मीत

चलते-चलते जब मीत मिले,सुख जीवन में बनते छाया।

सजते सपने फिर से नयनों,बँधते मन जीवन की माया। 

मचली लहरें सुख सागर सी,नव अंकुर रूप लिए आया।

मन से मन तार मिले सबके,तब जीवन में सुख है पाया।


*2--गुरुदेव कृपा*

गुरुदेव कृपा बरसे इतनी,हम जीवन में बढ़ते आगे।

रचना नित नूतनता भरती,रस भाव भरे मन के जागे।

चलते सबको गुरु साथ लिए,मन ज्ञान भरे बँधते धागे।

गुरु का सम्मान सदा करना,मन पाप मिटे दुविधा भागे।

*प्रज्ञा  सवैया*

शिल्प विधान 

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के मार्गदर्शन में  नवीन छंद का प्राकट्य हुआ है - जिसे "प्रज्ञा  सवैया" नाम दिया गया है।

मापनी-

222 212 212 211,212 212 211 22

( प्रज्ञा सवैया 23 वर्ण 12,11 पर यति)

*१--गोविंदा*

गोविंदा रासलीला रचाए जब,नाचता झूमता है जग सारा।

दीनो के नाथ हैं मोहिनी सूरत,नैन देखो बहाते जल धारा।

गोपी के संग झूमे कभी केशव,रूप देखो सजीला अरु न्यारा।

माला मोती लिए घूमती है वन,बाँधने गाँठ से मोहन प्यारा।

*२--लोरी*

लोरी माता सुनाती निशा में जब,लाल मेरा सलोना अब सोता।

लेटा है झूलता लालना सुंदर,पालना को हिलाए जब रोता।

चंदा के हाथ में थाल तारों भर,डोलता रात तारे नभ बोता।

सूनी सी रात में चाँदनी लेकर,नींद में डूबने का सुख खोता।

*राधेगोपाल सवैया*


आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के मार्गदर्शन में  नवीन छंद का प्राकट्य हुआ है - जिसे "राधेगोपाल सवैया" नाम दिया गया है।

221 121 121 12,1 121 121 121 122

*१-ओंकार*

ओंकार शिवाय सदैव जपो,भज लो मन से शिव नाम हमेशा।

शंभू करते दुख दूर सभी,अभयंकर देव दयालु महेशा।

कैलाश बसे प्रभु नाथ शिवा,हरते जनमानस घोर क्लेशा।

देवों पर देव महा शिव है,शिव शंकर के सुत बाल गणेशा।

*२-गोपाल*

गोपाल हरे जप नाम हरे,घन श्याम मनोहर रूप बिहारी।

आलोक भरा मुख मंडल है,जप नाम सभी मन में बनवारी।

बंशी मनमोहक छेड़ रहा,मन झूम रहा सुन तान मुरारी।

रक्षा करते गिरिराज खड़े,ब्रज में गिरि थाम लिए गिरधारी।

*कोविद सवैया छंद* 

 विधान:- 11,11 वर्ण के दो चरण, एक पंक्ति में कुल 22 वर्ण और 18,18 पर यति प्रति चरण पंक्ति में कुल 36 मात्राएं।

चारों समांत तुकांत वर्ण व्यवस्था और वाचिक मापनी 👇

211 222 21122, =11 वर्ण,18 मात्राएं

211 222 112 22 =11 वर्ण,18 मात्राएं

 *1--ग्वाला*

गोकुल का ग्वाला मोहन न्यारा,रास करे बंशीवट के नीचे।

गोप कुमारी झूमे तत थैया,रूप सजीला है नयना मींचे।

साँझ सबेरे जाए बरसाना,छेड़ रहे राधा सखियाँ खींचे।

तान सुरीली भागे सब पीछे,श्याम सलोना अंतस को सींचे।

*2--केवट*

केवट धोता है श्री चरणों को,कोमल काया कंचन हो जैसे।

नाविक में जो भोलापन देखा,उतराई दूँगा इसको कैसे,

देख रहा खेवैया दुविधा को,मोल मुझे देना प्रभु जी ऐसे।

पार उतारूँगा में तुमको जो,पार लगा देना मुझको वैसे।

विधा- सुधी सवैया 

शिल्प विधान 

अनुराधा चौहान सुधी 

आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के मार्गदर्शन में नवीन छंद का प्राकट्य हुआ है - जिसे "सुधी सवैया" नाम दिया गया है।23 वर्ण 12,11 पर यति 

मापनी

121 121 121 112,121 121 122 12 

*उदाहरण*

१-विचार

कभी मन क्रूर विकार उपजे,सचेत उसी क्षण होना खरा।

जमा फिर पाँव प्रयास करना,नहीं फिर आलस ओढ़ो जरा।

प्रयोग सदैव सटीक करना,खुशी मन रोज झरेगी धरा।

सदा मन से शुभ काम रचना,बिगाड़ सके न कोई करा।

२-पुरवा

सुनो पुरवा जब छूकर चली,सुवास सुगंधित फैली यहाँ।

उड़े मन संग पतंग बनके,उमंग हिलोर जगाती वहाँ। 

सुहावन सावन जोर करता,सभी मन झूम रहे थे जहाँ।

बढ़े जब ताप अपार धरती,सुगंध सुवासित होती कहाँ।

३--अनीति

विलास विकार तभी पनपते,प्रयोग विनाश कराते यहाँ।

अनीति अनेक प्रकार प्रगटे,सदैव प्रमाण मिलेंगे वहाँ।

सचेत विवेक बनाकर चलो,विकार मिठास बढ़ाते कहाँ। 

समीर सुवास वहाँ मन भरे,विकास अनेक करेंगे जहाँ।

४--चकोर

चकोर बना मन देख शशि को,समीर बने फिर छूने उड़ा।

बसा मन प्रेम अधीर करता,उड़ान भरे सब पीड़ा झड़ा।

छुपा बदली फिर चाँद हँसता,उजास दिखा सुख देने खड़ा।

लिए अतिरेक खुशी से चहका ,निहार रहा मुख आँखे गड़ा।

अनुराधा चौहान'सुधी'

*साँची सवैया*

23 वर्ण , 12,11 पर यति के साथ लिखा जाता है ।इसमें 4 पंक्ति 8 चरण रहते हैं। तुकांत सम चरण में मिलाया जाता है। चारों पंक्ति के तुकांत समान्त रहते हैं।वाचिक रूप मान्य रहता है।इसमें गण व्यवस्था और मापनी निम्न प्रकार से रहती है 

मापनी 

तगण तगण मगण सगण, तगण तगण तगण लगा

221 221 222 112, 221 221 22112

*महादेव*

धारा सदा शीश गंगा की बहती,पीड़ा महाकाल शंभू हरते।

चंदा सजे शीश हाथों में डमरू,माला गले नाग डाला करते।

गौरा बसी पास शोभा सुंदर सी,देवा गणेशा उजाला भरते,

बाबा महादेव कैलाशी शिव जी,तेरी कृपा रोग सारे मरते।

*आनंद*

थामों दया हाथ ऐसा ओ प्रभु जी,नैया लगे पार मेरी तन से।

संसार माया भरा बाँधे मुझको,आके बचालो उठो आसन से।

देना मुझे छाँव आशा की इतनी,बाँधे नहीं आज कोई मनसे।

वर्षा करो प्रेम की ऐसी मुझपे,आनंद ऐसा उठे आँगन से।

 *अर्णव सवैया*

आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के मार्गदर्शन में नवीन छंद का प्राकट्य हुआ है।जिसे 'अर्णव सवैया' नाम दिया गया है।अर्णव सवैया 23 वर्ण 12, 11 पर यति के साथ लिखा जाता है।इसमें 4 पंक्ति 8 चरण रहते हैं। तुकांत सम चरण में मिलाया जाता है। चारों पंक्ति के तुकांत समान्त रहते हैं ।इसमें गण व्यवस्था और मापनी निम्न प्रकार से रहती है।

मापनी

तगण राजभा × 5 तगण गुरु गुरु

221 212 212 212, 212 212 221 22

*१--गीता*

गीता कहे यही बाँटिए जो मिला,साथ तेरे नहीं जाए यहाँ से।

माया मिली धरा से सभी है तुझे,छोड़ जाना उठाया जो जहाँ से।

माया रचे यहाँ जाल कैसा सदा,फाँसता लोभ जाने जी कहाँ से।

जाना पड़े अकेला यही रीत है,सीख गीता लिखी सीखो वहाँ से।


*२--नाथ लीला करो*

तेरी दया मिले हाथ जोड़े खड़ा,डोलती नाव को देना सहारा।

फैला यहाँ अँधेरा महाजाल सा,प्राण मेरे टिके जैसे किनारा।

आतंक रोग का आज कैसे मिटे,नाथ लीला करो देके इशारा।

आरंभ हो नया वेदना भी मिटे,हो उमंगो भरा आकाश सारा।

विधा- *सपना सवैया*  

शिल्प विधान 

अनिता मंदिलवार सपना 

आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के मार्गदर्शन में नवीन छंद का प्राकट्य हुआ है - जिसे "सपना सवैया" नाम दिया गया है।सपना सवैया 24 वर्ण 12, 12 पर यति के साथ लिखा जाता है।इसमें 4 पंक्ति 8 चरण रहते हैं।तुकांत सम चरण में मिलाया जाता है। चारों पंक्ति के तुकांत समान्त रहते हैं। इसमें गण व्यवस्था और मापनी निम्न प्रकार से रहती है।

 *मापनी* 

222 122 122 122, 122 122 122 222

*१-नवेली*

बैठी है अँधेरे नवेली झरोखे,निहारें करे बात चंदा तारे से।

नैनों में निराली सजी हैं उमंगे,छुपाती भरे नीर नैना खारे से।

ढूँढें बैठ रंगी बिरंगी पहेली,कभी सोचती प्राण जैसे हारे से।

होनी आज पूरी अधूरी कहानी,वियोगी बनी रैन यादें मारे से।

*२-अँधेरा*

फैला जो अँधेरा मिटे आज कैसे,चलो राह कोई उजाले को बोना।

है संग्राम कैसा बना आज बाधा,मिली हार से भी उमंगे न खोना।

आशाएं अधूरी कभी तो सजेगी,अकेले हुए तो दुखों से न रोना।

संदेशा सुनाती सुहानी हवा तो,उजाले भुला के अँधेरे न सोना।

कुमकुम सवैया

आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के मार्गदर्शन में आविष्कृत-नवीन छंद को "कुमकुम सवैया" कहा गया है, यह वर्णिक सवैया है, चार चरण होंगे, चारों समतुकांत हों।

विधान:- सात सगण + लघु गुरु

२३ वर्ण, १२,११ पर यति हो

मापनी

११२ ११२ ११२ ११२,११२ ११२ ११२ १२

*१-वरदान

सबको सुख का वरदान मिले,अभिशाप मिटे दुख दूर हो।

सबके घर आँगन दीप जलें,सुख-साधन से सब चूर हो।

महके पुरवा कलियाँ किलकें,जननी न कभी मजबूर हो।

सच राह चले सब जो मिल के,सुख जीवन में भरपूर हो।

*२--मनमोहन

मनमोहन रास रचा फिर से,तम दूर हटा सुख दीजिए।

मुरली धुन छेड़ जरा प्रभु जी,विनती यह भी सुन लीजिए।

मन मंदिर मूरत मोहन की,मनमोहन आप विराजिए।

शुभ सुंदरता नित देख सभी,प्रभु आज कृपा यह कीजिए।

शिल्प विधान 

संजय कौशिक विज्ञात

*विज्ञात बेरी सवैया*

23 वर्ण 12,11 

मापनी 

221 122 211 211, 211 211 221 22


*१--सौगंध*

सौगंध धरा की लेकर के सब,वीर खड़े सहते धूप कैसे।

वो भारत माँ का प्रेम लिए मन,रोज बने रहते ढाल जैसे।

सौ वार सदा सीने पर लेकर,शेर समान चलें वीर वैसे।

रक्षा करते न्योछावर होकर,प्राण सदैव तजे वीर ऐसे।

*२--आतंक*

आतंक मचाए रोग खड़ा जग,जीवन मानव कैसे बचाता।

संग्राम छेड़ के मानव भी अब,कंटक जीवन सारे हटाता।

भोगी बनके सीखे लड़ना फिर,जीवन को फिर सादा बनाता।

संदेश नए देता सबको फिर,हो अनुशासन ऐसा सिखाता।

*तेजल सवैया* "

शिल्प विधान- बाबूलाल शर्मा,विज्ञ_

आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के मार्गदर्शन में आविष्कृत-नवीन छंद " तेजल सवैया" में चार चरण होते हैं,चारों चरण समतुकांत हों।

विधान:- तेजल सवैया १२/१२ वर्णों पर यति अनिवार्य

*मापनी:-*

११ ११२ ११२ ११२ १, १२ ११२ ११२ ११२ २ .

*१-नटवर नागर*

गिरधर नागर नंद किशोर,चलो यमुना तट गोप पुकारे।

नटवर नागर माखन चोर,कदंब तले धुन आज सुना रे। 

पग बजती छम पायल देख,सखी हँसती हँसते नभ तारे।

वन वन ढूँढ रहे चितचोर,छुपा छलिया अब रूप दिखा रे।

*२-दीनदयाल*

रघुवर दीनदयाल अधीर,सिया वन आज चली फिर जैसे। 

तिल-तिल पीर बड़े दिन रात,प्रिया वनवास रहे अब कैसे।

सुख तज के नयना भर नीर,चली वन व्याकुल होकर ऐसे।

जब चल दी वन वो सुख छोड़,रहे चुप क्यों प्रभु दे दुख वैसे।

. *शान्ता सवैया*

आ. *संजय कौशिक विज्ञात* जी के मार्गदर्शन में आविष्कृत-नवीन छंद को"शान्ता सवैया" नाम दिया गया है।यह वर्णिक सवैया है।चार चरण का छंद है, चारों चरण समतुकांत होने चाहिए।

विधान:--२२ + ( ७× सगण ) + २२

२५ वर्ण, १३,१२ वें वर्ण पर यति हो

मापनी :--

२२ ११२ ११२ ११२ ११,२ ११२ ११२ ११२ २२

*१-घनघोर घटा*

काली घनघोर घटा गरजें घन,पावन सावन मास सुहाना है।

भीगे चुनरी धरती महके फिर,प्रीत भरे फिर गीत सुनाना है।

बूँदे टपके टिप शोर करे जब,द्वेष सभी मन आज बहाना है।

झूमे तरु पुष्प खिले घर आँगन,सावन मास सुहावन गाना है।

*२-सींच रहा मन*

चंदा चमके नभ आँगन जब,बैठ चकोर निहार रहा डाली।

बोले सुन ले बढ़ती अब चाहत,खेत खड़ी बढ़के पकती बाली।

रातें चुपके ढलती नित ही जब,सींच रहा मन प्रेम बना माली।

रूठे चुप से चलते नभ आँगन,बीत रही यह रैन अभी काली।

*एकता सवैया*

आ. गुरुवर संजय कौशिक विज्ञात जी,के मार्गदर्शन में आविष्कृत-नवीन छंद-"एकता सवैया" में चार चरण होते हैं,चारों चरण समतुकांत होने चाहिए। 

विधान:- तगण +( ७ सगण)+ २

२५ वर्ण, १२,१३ वें वर्णो पर यति हो।

मापनी-

२२१ ११२ ११२ ११२,११२ ११२ ११२ ११२ २


*१-समशील*

आरंभ करना शुभ काम सदा,मन ज्ञान प्रकाश लिए चल आगे।

संवाद करना समशील बने,अनुराग सदैव रखो दुख भागे।

प्रारंभ करना उपहास नहीं,मन घात लगे चटके फिर धागे।

संदेह रखना सब आज परे,भयभीत सदा रजनी फिर जागे।

*२-जाले*

जाले झटक दे मन के सब ही,जब धूल हटे चमके मन कोना।

आले चमकते फिर से मन के,सुख आन खड़े उनको मत खोना।

संयोग बनते जब दोष भरे,चुप होकर आज नहीं फिर रोना।

संतोष छलके मन की बगिया,सुख बीज सही चुनके मन बोना।

*जय सवैया*  

आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के मार्गदर्शन में आविष्कृत-नवीन छंद को"जय सवैया" नाम दिया गया है।

विधान:-

23 वर्ण प्रति पंक्ति 11, 12 की यति अनिवार्य है।जय सवैया में 4 यति सहित कुल 8 चरण होंगे।सम चरणों के तुकांत समान्त होंगे।


मापनी ~ 

गुरु रगण रगण रगण रगण रगण रगण रगण गुरु

2 212 212 212 2, 12 212 212 212 2


*३-देवा गणेशा*

देवा गणेशा रहो साथ मेरे,तुम्हारी कृपा भी सदा साथ होगी।

माता सती हैं पिता शंभु बाबा,पुकारे तुम्हें ही खड़े आज भोगी।

माया समेटे चले आज कैसे,पिपासा बढ़ी तो बने आज रोगी‌।

दाता गजानंद बप्पा पधारे,सभी नाचते झूमते आज जोगी।

*४-शंभू महादेव*

शंभू महादेव बाबा शिवाला,जपो नाम शंभू हरे कष्ट काला।

डाला गले नाग काला कृपाला,पिया नीलकंठी भरा काल प्याला।

बाँधी जटा में बही जोर गंगा,बँधी देखती है गले नाग माला।

तेरी दया से सभी जीव जीते,सभी जीव को आपने नाथ पाला।


. *पूजा सवैया*

विधान-

गुरु+लघु+( ७× सगण )+ लघु +गुरु

२५ वर्ण, १२,१३, वें वर्ण पर यति

२१ ११२ ११२ ११२ १,१२ ११२ ११२ ११२ १२.

१२,१३वर्णो पर यति।

*१-सुकुमार*

रूप मनभावन हैं सुकुमार,सभी वन में वनवास बिता रहे।

राज सुख छोड़ सभी दिन रैन,लिए मुस्कान सभी विपदा सहे।

देख दमके उनके मुख तेज,खिले कलियाँ पुरवा बहकी बहे।

दानव हुए भयभीत समूल,मनोरथ मंगल देख दिशा गहे।

*२--सहयोग*

नूतन प्रसंग लिए मन आजसुगंधित सा सबका मन कीजिए।

नेक रखना मनके सब भाव।प्रवाहित ज्ञान सभी रस पीजिए।

रीत कपटी करनी अब दूर,यहाँ सहयोग सदा सब दीजिए।

दान मिलता जब ज्ञान सदैव,सभी बढ़के उसको अब लीजिए।

महेश सवैया

२२ ११२ ११२ ११२ ११,२ ११२ ११२ ११२ २.

विधान:--

२२ + ( ७ × सगण ) + २

२४ वर्ण, १३,११ वें वर्ण पर यति हो।

*१-टेर सुनो*

ढूँढे वन बालक सा मन लेकर,टेर सुनो अब रासबिहारी।

मीरा वन में भटके बन पागल,आज छुपे किस ठौर मुरारी।

मेरे दुख का बस केशव कारण,मीत वही कबसे गिरधारी।

पीड़ा सहती तुमको जप माधव,दीनदयाल तुम्हीं त्रिपुरारी।

*२-गगरी*

सूनी मनकी छलके जब गागर,भीग रहा मन का हर कोना।

बैठी पथ में मुरलीधर आकरश्याम बसे मन क्या सुख खोना।

टेढ़े जग की हर रीत बुरी जब,रोक रही मन का अब रोना।

कान्हा उर में बसना तुम आकर,प्रीत भरा मन अंकुर बोना।


*१-सुभाषिता सवैया*

विधान-

सुवासित सवैया में 24 वर्ण / 13,11 वर्ण में यति होगा। 

गुरु को गुरु ही लिखना है और लघु का स्थान सुनिश्चित है। 

212 112 122 121 1,212 122 11 211

देश प्रेम लिए चले वीर सैनिक,मात है धरा वीर कहे अब।

छेड़ना मत आन को बोलते यह, मान है तिरंगा कहते सब।

जीत हाथ सदा पताका लिए करवीर हैं हठीले लड़ते जब।

धूल में अरि को मिलाते चले यह,वीर की विदा नीर बहे तब।

*विज्ञात सवैया* 

२१२ २२१ २२१ २२२,२१२ २११ २२१ २२.

१२,११,वर्णों पर यति।

*१-ढूँढती आँखें*

ढूँढती आँखें तुम्हें बैठ के तीरे,पूछती हूँ चाँद कहाँ श्याम मेरा।

बाँध डोरी प्रेम की रूठ तू बैठा,तान बंशी डसती डाल डेरा।

रोकती आँसू बहे माने नहीं बातें,श्याम आ और बता ठौर तेरा।

भावनाएं मौन होती श्याम आजा,राधिका रोज करे मौत फेरा।


*२-द्वेष के ताले*

आज सारे तोड़ दो द्वेष के ताले,आ जलाएं जग के दीप सारे।

जो उजाले आस के प्रेम फैलाते,आ समेटे नभ के अंक तारे।

साथ संगी सीप सा सदा ले के ,सोच क्यों जीवन दूजे सहारे।

दूरियाँ ही ठीक आघात देते जो,मीत को ही मन देखो पुकारे।

*अनुराधा चौहान'सुधी'*


8 comments:

  1. बहुत बढ़िया "राधेगोपाल सवैया" पर आपकी लेखनी ने शानदार सृजन किया है ईश्वर आपकी लेखनी को निरंतर चलाते रहे।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  2. अद्भुत छन्द और अद्भुत बन्ध शब्दों के।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  3. सुंदर छंद बद्ध रचना ।

    आज पता चला कि इतने प्रकार के सवैया छंद आ कहाँ से रहे हैं ।
    विस्मित थी कि ये नाम कभी सुने नहीं ।
    सब आपके गुरुवर का कमाल है ।।

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    1. जी गुरुदेव के सानिध्य में नए-नए छंद सीखने का सौभाग्य मिल रहा है।आपका हार्दिक आभार आदरणीया।

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  4. बहुत सुंदर छंदों की श्रृंखला रच दी आपने हर छन शब्द, लय तथा अर्थपूर्ण हैं,आपको और गुरुवर को नमन और वंदन।

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    1. हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।

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