सरसी छंद
बोले संपाति सुन हनुमंत,दुख यह बड़ा अपार।
रोती रावण की लंका में,सीता सागर पार।
सौ योजन सागर ये लंबा,जाना होगा पार।
राम काज जब पूरे होंगे,होगा तब उद्धार।
माथे सबके चिंता झलकी,सभी बजाएं गाल।
कैसे सागर पार करेंगे,स्वेद झलकता भाल।
सागर लाँघ चला तो जाऊँ,बोले अंगद वीर।
वापस लौट नहीं आ पाऊँ,मन हो रहा अधीर।
सुनो नील हम कैसे जाने, क्या है माँ का हाल।
किस विधि मिले हमें संदेशा,सोचे हनुमत लाल।
वानर नोच रहे केशों को,देख रहे तट ओर।
उछल-कूद कर पत्थर फेंके,कैसे होगी भोर।
नल-नील अंगद मौन बैठे,जामवंत भी मौन।
सबके मन में एक ही प्रश्न,सागर लाँघें कौन।
प्रभु को क्या मुख दिखलाएंगे,आए खाली हाथ।
क्या किसी में भी वो बल नहीं,जो ले आते साथ।
नयनों में बस नीर लिए सब,बैठे सागर पार।
जामवंत कुछ सोच हँसे फिर,हनुमंत बल अपार।
दुविधा का हल खोज रहे हैं, समाधान है पास।
पवनपुत्र हनुमान सुनो तुम, तुमसे ही है आस।
शक्ति भूले केसरी नंदन,लगा हुआ है शाप।
सूरज लील लिया था जिसने,बलशाली वो आप।
याद करो अतुलित बल अपना,जाओ सागर पार।
माता सीता का पता लगे,मन से उतरे भार।
जामवंत के वचन सुने जब,चौंके फिर हनुमंत।
उस घटना को याद किया तब,शाप दिए थे संत।
राम सिया की जय गूँज उठी,पहुँचे सागर पार।
अंगद जामवंत खुश होते,बहती अँसुवन धार।
*अनुराधा चौहान'सुधी'*
सुंदर रचा है । जय बजरंगबली ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया।
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