*१*
नीर भरे नयना छलके जब,देख धरा उपजे मन क्रोध।
पीर बढ़ी वनवास मिला जब,मौन खड़ी सहती अवरोध।
राघव मौन रहे सब खोकर,क्यों सहती सिय घोर विरोध।
मूक बनी वनवास चली फिर,अंतस कौंध रहे सब शोध।
*२*
राज लली वन में भटके जब,भीग रही पलकें तब कोर।
कोमल रूप निहार रुके मुनि,क्यों तनया फिरती वन भोर।
तात छुपी तुमसे कब दारुण,आज व्यथा बनती सिरमोर।
तात मिला वनवास मुझे फिर,घोर मचा अब अंतस शोर।
चकोर सवैया*
भगण × 7 + गुरु + लघु
12,11 पर यति
211 211 211 211, 211 211 211 21
*अनुराधा चौहान'सुधी'*
चित्र गूगल से साभार
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