Monday, December 13, 2021

सीता जी की अग्नि परीक्षा


 सुनो लखन देनी पड़ेगी,अग्नि परीक्षा सिय को।
तब चलेगी साथ मेरे ,प्राण प्रिय फिर अवध को।

सुन लखन व्याकुल हुए,बोल कड़वे क्यों कहे?
मात सिया सती सत्य है,नयनों से अश्रु बहे।

क्रोध उपजे अंतस बड़ा,मुख से कुछ न बोलते।
भ्रात का आदेश सुनकर, क्षोभ से बस डोलते।

बात की गहराई समझो,भ्रम में भला क्यों डोलते।
दूर हो मन की व्यथा अब,भेद हँस के खोलते।

प्रिय व्याकुलता छोड़ दो, रावण नहीं सीता हरा।
छाया रही वैदेही की,जो जाल भ्रम नयनों भरा।

सौंप अग्नि को जानकी,छाया सिया संग ले चले।
आभास था लंकेश कब,माया से आ हमको छले।

आज जीता धर्म जब,पाना मुझे मेरी प्रिया।
कर्म पूरा तुम करो,चले अवध फिर मेरी सिया।

सुन वचन होते प्रसन्न,श्री राम के चरणों गिरे।
रोम-रोम पुलकित हुआ, नयनों से अश्रु झरे।

आदेश सुन श्री राम का,अग्नि प्रकट करने लगे।
मात की देखी परीक्षा,हर हृदय पीड़ा जगे।

शीश आदर से झुका फिर, सिया हाथ अपने जोड़ती।
नाथ यह कैसी परीक्षा,पीर हृदय की तोड़ती

हे देव अग्नि सुनो वचन, नयनों में लिए बोली नमी।
हो जाऊँ क्षण में भस्म मैं,सतीत्व में हो मेरे कमी।

अश्रु नयनों से छलकते,करने लगी अग्नि प्रवेश।
देख कोलाहल मचा,हर हृदय उपजे दुख क्लेश।

बुझ गई अग्नि तभी,सती सिया ने उसको छुआ।
चिह्न अग्नि के मिटे सब, कैसा यह अचरज हुआ।

साथ अग्नि देव के तब, मुस्कुराती आई सिया।
छाया नहीं यह सत्य है, प्रभु वचन पूरा मैंने किया।

साथ में रघुनाथ के,जानकी जो देखी खड़ी।
जय राम सीता राम कह, पुष्पों की बरसे झड़ी।

अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार

8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (15-12-2021) को चर्चा मंच        "रजनी उजलो रंग भरे"    (चर्चा अंक-4279)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय 🙏

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

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  3. वाह!बहुत ही सुंदर सराहनीय।
    सादर

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    1. हार्दिक आभार दीपक जी।

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  5. विवादित प्रसंग को सुंदर मोड़ देती रचना।
    सुंदर प्रस्तुति।
    बधाई सखी।

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