सामने श्री रघुनाथ है,
नयन सबके भीगते।
सीने लगा प्रभु भरत को,
अश्रु से फिर सींचते ।
शत्रुघ्न व्याकुल हुए फिर,
दौड़ चरणों में गिरे।
भाई लखन के नयन से,
अश्रु की धारा झरे।
सुख मिलन ऐसा बढ़ा फिर,
अंक भरकर भींचते।सीने लगा प्रभु...
प्रेम की बारिश बरसती,
देख धरती झूमती।
महकती पुरवा चली फिर,
चरण प्रभु के चूमती।
स्वप्न तो यह मेरा नहीं,
नयन फिर सब मींजते।सीने लगा प्रभु...
शब्द सारे मौन होते,
देख यह सुंदर घड़ी।
मात के नयना छलकते,
लिए ममता की झड़ी।
प्रीत का यह रंग पक्का,
देख सब फिर रीझते। सीने लगा प्रभु...
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार
वाह!बहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
हार्दिक आभार सखी।
Deleteअत्यंत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी।
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया।
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१७-१२ -२०२१) को
'शब्द सारे मौन होते'(चर्चा अंक-४२८१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक आभार सखी
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएं आदरणीया।
Deleteसुंदर सृजन ...
ReplyDeleteहार्दिक आभार विकास जी।
Deleteबहुत ही सुंदर वर्णन सखी।
ReplyDeleteसुंदर सृजन।
हार्दिक आभार सखी।
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन।
हार्दिक आभार सखी।
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