सैलाब शब्दों का
Monday, September 8, 2025
नहीं सत्य का कोई अनुरागी
Thursday, June 27, 2024
श्रेष्ठ प्राकृतिक बिम्ब यह (दोहे)
1-अग्नि
अग्नि जलाए पेट की,करे मनुज तब कर्म।
अंत भस्म हो अग्नि में,मिट जाता तन चर्म॥
2-जल
बिन जल के जीवन नहीं,नर तड़पे यूँ मीन।
जल उपयोगी मानते,भूप संत अरु दीन॥
3-वायु
श्वास अटकती वायु बिन,यह जीवन का सार।
जीवन में बहुमूल्य है,प्राण वायु उपहार॥
4-पृथ्वी
पृथ्वी जीवनदायिनी, देती फल अरु फूल।
नर,वन अरु हर जीव के,यह जीवन का मूल॥
5-आकाश
सूर्य चमकता व्योम में,चंद्र दमकता रात।
मेघ घिरे आकाश में,होती फिर बरसात।
6-नदी
माता सा धीरज लिए,कल कल बहती धार।
नदी धरा को सींचती,कर मानव उद्धार।
7-झरना
शैल शीश से गर्व से, गिरकर गाए गीत।
जाकर नदिया से मिले, बनकर झरना मीत॥
8-वृक्ष
पौध धरा पर रोपकर,सींचो अपने हाथ।
बड़े हुए वृक्ष झूमते,फल लेकर फिर साथ॥
9-वन
उपयोगी वन संपदा,मानव रहा उजाड़।
जलती धरती क्रोध से,देख ठूंठ से झाड़॥
10-मिट्टी
माथे पर मिट्टी लगा,पूज रहे हैं लोग।
वीरों के लहु से सनी,सहती वीर वियोग॥
11-पाषाण
छैनी ले पाषाण में,गढते दिव्य स्वरूप।
देख उसे फिर पूजते,सभी रंक अरु भूप॥
12- मेघ
शीतलता अंतस लिए,उमड़े संग समीर।
गरजे बरसें मेघ जब,भींगे तन मन नीर॥
13- पपीहा
प्यास पपीहा की बुझे,मेघ झरे जब नीर।
व्याकुल होकर देखता,अम्बर रखकर धीर॥
14- हंस
पक्षी प्रतीक प्रेम का,हंस देख नर मुग्ध।
मोती सागर से चुने,नीर निकाले दुग्ध॥
15-तितली
रंग-बिरंगी तितलियाँ,उड़ती वन अरु बाग।
पुष्प पुष्प पर बैठकर,पी रही रस पराग॥
16- बया
छोटी-सी चिड़िया बया, बुनकर जैसा काम।
बुनती सुंदर घोंसला,तिनके लिए तमाम॥
17- सारस
आँख मूँद जल में खड़ा,रख जोगी सा ध्यान।
लंबी गर्दन देखकर,सारस पक्षी जान॥
18- उलूक
सेवन मांसाहार का,करता उलूक नित्य।
पकड़े शिकार रात को,छुपे देख आदित्य॥
19- कागा
कागा प्रतीक देव पितृ,कहते हैं सब संत ।
श्राद्ध पक्ष भोजन करा, मिलता पुण्य अनंत॥
20- मोर
सुन मेघों की गर्जना,नाचे वन में मोर।
रैन ढले दिखता नहीं,उड़े डाल पर भोर॥
21-काकपाली
कंठ काकपाली मधुर,काली जैसे काक।
अमराई पर बैठकर,देखे फल को ताक॥
22- कपोत
खाए ज्वारी बाजरा,डाल रहे जो लोग।
पुण्य कमाने की जगह,मिले दमा का रोग॥
23- बुलबुल
काली सी बुलबुल भली,छेड़े सुंदर राग।
शहरों में दिखती नहीं,उड़ती है वन बाग॥
24- टिटहरी
कर्कश सुर से टिटहरी,चीखे देखे धूप।
अंडे देती भूमि पर, हल्का भूरा रूप॥
25-गिद्ध
जीव मरा जब देखता,करता उसपर वार।
झुंड बनाकर टूटते, करते जीव शिकार॥
26-बाज़
बिजली सी तेजी लिए,करता बाज शिकार।
छोटे पक्षी नाग सब,बल से जाते हार॥
27-नीलकंठ
नीलकंठ को पूजते,मानव शंभू जान।
दर्शन इसके जो करे,मिलता उसको मान॥
28-चकवा
चकवा चकवी घूमते,दिन भर बनकर जोड़।
रैन ढले होते अलग,साथ दूसरे छोड़॥
29-पीलक
दिखता लघु आकार में,रंग सुनहरा पीत।
पीलक पक्षी देखना,बड़े भाग्य की रीत॥
30-तीतर
भाती इसको झाडियाँ,कीड़े खाना काम।
मुर्गी से छोटा दिखे,तीतर इसका नाम॥
31-सूर्यपक्षी
सूर्य पक्षी किलोल कर,झूमे सेमल डाल।
रंग बदलता धूप में,कलरव बड़ा कमाल॥
32-तोता
हरित रंग सुंदर लगे, चोंच रंग है लाल।
नकल करे इंसान की,बोले जैसे बाल॥
33-बगुला
शांत रूप बगुला खड़ा,लगा रहा है ध्यान।
झपटे पल में मीन को, प्रिय भोजन यह जान॥
34-गौरेया
गौरेया अब मिट रही,मानव करनी देख।
कभी चहकती आँगना,दिखती कागज लेख॥
35-चील
गोल गोल अम्बर उड़े,उड़े झपट्टा मार।
कर्कश स्वर में चीखती,करती झपट शिकार॥
36-मुर्गा
सुबह-सवेरे बाँग दे,देख लालिमा भोर।
मानव उठता नींद से,जागें पक्षी मोर॥
37-बतख
दिखती हर क्षण ताल में,खाती कीड़े बीन।
झुंड बनाकर तैरती, पकड़े झट से मीन॥
38-मैना
मैना समझे बात को, रहकर मानव पास।
भूख लगे तो चीखती,ले दाने की आस॥
39-फुदकी
रहे फुदकती डाल पर,फुदकी इसका नाम।
मकड़जाल के तार से,बुने घोंसला आम॥
40-कठफोड़वा
रहे ठोकता चोंच यह,करे पेड़ पर वार।
कहते हैं कठफोड़वा,दीमक कीट शिकार॥
41- चीता
आगे सबसे दौड़ में,चीता इतना तेज।
कर शिकार संख्या मिटी,रखते अभी सहेज॥
42-हाथी
भारी-भरकम सूंड से,करता है जब वार।
भागे भय से शेर भी,हाथी बल से हार॥
43-जिराफ
लंबी गर्दन तन बड़ा,चकते बने शरीर।
खाएं फल अरु पत्तियाँ, रखकर मन में धीर॥
44-शेर
झबरीले गलहार से,गर्दन पर हैं बाल।।
सुन दहाड़ वन शेर की,जीव बदलते चाल॥
45-लोमड़ी
चतुर बड़ी यह लोमड़ी,चलती पीछे शेर।
दिखती है यह श्वान सी,घूमे आँख तरेर॥
46-हिरण
भरे कुलांचे दौड़ता,हिरण सुनहरा रूप।
सुंदरता मन मोहती,नर हो या फिर भूप॥
47-नीलगाय
नीलगाय वन खेत में,घूम भरे यह पेट।
सुंदर सी काया लिए,चलती झुंड समेट॥
48-भालू
काला काला रूप से,चले भयंकर चाल।
सुने मदारी डुगडुगी,करतब करे कमाल॥
49-बंदर
बड़ा चुलबुला जीव यह,खाए फल अरु कंद।
डाल डाल पर झूलता,रहता न कभी बंद॥
50-खरहा
दिखता यह खरगोश सा,भाए इसको कंद।
सरपट जब यह दौड़ता, कोई करे न बंद॥
51-छेरी
हरी घास और पत्तियाँ,छेरी खाए नित्य।
देती मीठा दुग्ध यह,उठे संग आदित्य॥
52-मेषी
देती हमको ऊन यह, और साथ में दुग्ध।
मेषी काली श्वेत सी,देख हुए सब मुग्ध॥
53-ऊंट
कहते जहाज रेत का,पीता है कम नीर।
गर्मी हो कितनी कड़ी,ऊंट चले धर धीर॥
54-गिलहरी
प्यारी सी यह गिलहरी,खाती फल अरु बीज।
तन सुंदर सी धारियाँ,बैठी बड़ी तमीज॥
55-बिल्ली
मौसी कहते शेर की,करती बड़े शिकार।
घर से चूहे भागते,करती बिल्ली वार॥
56-नेवला
सर्प शत्रु है नेवला,मारे उसको खींच।
सर्प भले हो कोबरा,रखे नेवला भींच॥
57-साँप
देख सभी तब काँपते,दिखे साँप का वंश।
मानव जीवन हारता,मारे जब यह दंश॥
58-कछुआ
करे शत्रु जब वार तो, छुपता कठोर खोल
प्राणी सीधा शांत सा,कछुआ यह अनमोल॥
59-गर्दभ
सहता भारी बोझ को,चलता गर्दभ मौन।
अपनी जिद जब यह अड़े,बोझ टाँगता कौन॥
60-अश्व
चिकनी सुंदर देह का,अश्व बड़ा यह तेज।
राजाओं के राज में,रखते इसे सहेज॥
61-मोगरा
पुष्प खिलें यह श्वेत से,महक उड़े यह दूर।
बालों में गजरा सजे, लिए सुगंध भरपूर॥
62-नीलकुरिंजी
नीलकुरिंजी के खिले, पुष्प बारहवें वर्ष।
देख भरी फिर डालियाँ,मन में होता हर्ष॥
63-ब्रह्मकमल
ब्रह्मकमल खिलता वहीं,होती जमकर शीत।
करो समर्पित शंभु को,होगी जीवन जीत॥
64-अमलतास
अमलतास के पेड़ में, औषधि गुण भरपूर।
दाद खाज खुजली मिटे, फोड़े-फुंसी दूर॥
65-रातरानी
पुष्प रातरानी खिले,होती गहरी रैन।
औषधीय गुण से भरा,महक भरे मन चैन॥
66-सूर्यमुखी
खिले पुष्प यह भोर में,बनता इसका तेल।
जीवन सत्वो से भरा,सुंदरता बेमेल॥
67-कुमुदनी
दिखे कमल छोटा जरा,सुगंध पुष्प कमाल।
चंद्रोदय के साथ में,खिलता है यह ताल॥
68-चम्पा
मूत्र रोग में कारगर,करता पथरी दूर।
चम्पा की भीनी महक,गुण इसमें भरपूर॥
69-चमेली
पुष्प चमेली श्वेत सा, बनता इसका तेल।
इत्र सुगंध मन मोहती,गुण इसमें बेमेल॥
70-गेंदा
सोने सी चादर लगे,देख खिले यह फूल।
गेंदा गुण भरपूर है,मानो औषधि मूल॥
71-कन्दपुष्प
खिलता पुष्प बसंत में,लेकर मोहक रंग।
कन्दपुष्प को देखकर,रह जाते सब दंग॥
72- अबोली
पौधा सदाबहार का, सुंदर इसके फूल।
नाम अबोली बोलते,रंग लाल पीला मूल॥
73- मोरशिखा
मोरशिखा घर में लगा,ऊर्जा शुभ भरपूर।
माँ लक्ष्मी की हो कृपा,दोष नजर हों दूर॥
74- मधुमालती
सर्दी ज़ुकाम की दवा, सुंदर इसके फूल।
औषधीय गुण से भरी,पत्ते बेल समूल।
75- रोहेड़ा
रोहेड़ा की छाल का,करने से उपयोग।
यकृत,कर्ण,प्लीहा सभी,दूर रहेंगे रोग॥
76- चंद्रमल्लिका
सुंदरता में यह प्रथम, पित्त , कब्ज हो दूर।
चंद्रमल्लिका पुष्प में,औषधि गुण भरपूर॥
77- बनफूल
बंजर सी भू पर खिले, सुंदर सा यह फूल।
देखभाल बिन मानवी, खिलते पुष्प समूल॥
78- कनेर
मन को रखता शांत यह, सुंदर पुष्प कनेर।
माँ लक्ष्मी को प्रिय बड़ा,कृपा करें बिन देर॥
79- सर्वज्जय
लाल गुलाबी पीत से, सर्वज्जय के फूल।
केले जैसे रूप में,दिखती पौध समूल॥
80-अपराजिता
विष्णु प्रिया अपराजिता,करे कलह का नाश।
नील वर्ण अरु श्वेत सा,खिलता सूर्य प्रकाश॥
81- सूर्य
सूर्य उदय से हो सदा,ऊर्जा संचार।
जीवन उठकर बैठता,करता नित आभार॥
82- चंद्र
सुंदरता मन मोहती,देख चंद्र आकाश।
धवल श्वेत सी चाँदनी,फैला रही प्रकाश॥
83- तारे
रात अँधेरी देखकर,तारे चमकें नित्य।
टिम-टिम करते रात भर,छुपता जब आदित्य॥
84- सागर
लहराता जब वेग से, सागर लेता लील।
बाहर लाकर फेंकता,समझ वस्तु सब खील॥
85- तुहिन कण
सुबह-सवेरे पुष्प पर,सजे मुकुट हो भूप।
मोती जैसे कण तुहिन,मिटे देखते धूप॥
86- रक्त
मानव हो या जीव का,रक्त एक सा लाल।
जात धर्म के नाम सब,लड़ते बनकर काल॥
87- श्वास
जीवन तन तब तक रहे,जब तक चलती श्वास।
श्वास रुकी जीवन मिटा,मिट जाती हर आस॥
89- पशु
पशु उपयोगी जीव है,आता सबके काम।
खेती हो या बोझ हो,करता काम तमाम॥
90- कीट
कीट पतंगों की सदा,होती छोटी आयु।
मानव डरता देखकर,उड़ते जैसे वायु॥
91-वर्षा
वर्षा की ऋतु में दिखे, हरियाली चहुँओर।
गरजे बरसे जोर जब,दादुर करता शोर॥
92- ग्रीष्म
बहे पसीना देह से, ऋतु आए जब ग्रीष्म।
पंखा कूलर हारते,तपन बढ़े जब भीष्म॥
93- शरद
देख कुहासा फैलते,चलती शीत समीर।
शरद ऋतु दर पर खड़ी,ऊनी वस्त्र शरीर॥
94- हेमंत
जोर पकड़ती ठंड जब,ऋतु हेमंत की द्वार।
छाए गहरा कोहरा,नहीं धूप आसार॥
95- शिशिर
धूप गुनगुनी सी लगे,सेंक रहे अंगार।
दुबली पतली देह पर,लदा वस्त्र का भार॥
96- बसंत
बौर महकते आम पर,कोयल कूके बाग।
नवपल्लव को देखकर, छेड़ रही है राग॥
97- कोयला
काला दिखता कोयला,काला सोना नाम।
बन ऊर्जा का स्रोत यह,आए ईंधन काम॥
98- स्वर्ण
स्वर्ण बड़ा बहुमूल्य है,कहता फिरे सुनार।
आभूषण नाना बने,कंगन, झुमके हार॥
99- रत्न
राजाओं के सिर मुकुट,हीरा सुंदर साज।
रत्न जड़े ही कीमती,मोती अरु पुखराज॥
100- खनिज
सुंदर जीवन के लिए, सुविधाओं का भोग।
लेकर धरती से खनिज,नर करता उपयोग॥
*अनुराधा चौहान'सुधी'*
Thursday, May 18, 2023
रामबाण औषधि(दोहे) -2
11-आँवला
गुणकारी है आँवला,रच मुरब्बा अचार।
बीमारी फटके नहीं,करलो इससे प्यार॥
12-हल्दी
पीड़ा हरती यह सभी,रोके बहता रक्त।
हल्दी बिन पूजा नहीं, कहते हैं सब भक्त॥
13-सदाबहार
काढ़ा सदाबहार का,करो बनाकर पान,
रोगी को मधुमेह के,फूल पात वरदान॥
14-अडूसा
दंत मसूड़े रोग में,करले दातुन मान।
पीर अडूसा से मिटे,बात अभी लो जान॥
15-करीपत्ता
दूर करीपत्ता करे,तन से कई विकार।
केशों का उपचार कर,करता यह उपकार॥
16-दूधिया घास
प्रातः दूधिया घास लें,मिट जाए अतिसार।
सेवन से नकसीर की,रुक जाएगी धार॥
17-दूब
दूब जड़ी अनमोल है,कर इसका उपयोग।
मोटापे को दूर कर,रोके अनगित रोग॥
18-महुआ
महुआ महके पेड़ पर,लेकर गुण भरपूर।
दंत रक्त हर रोग को,करता जड़ से दूर॥
19-पीपल
पीपल पत्ते पीसकर,चूर्ण रखलो पास।
रोग अनेकों मारता,करलो यह विश्वास।
20-घृतकुमारी
घृतकुमारी जहाँ मिले,ले आओ निज धाम।
बूटी यह अनमोल है,आती तन के काम॥
21-लाजवंती
देख लजीली बेल को, हर्षित सब नर नार।
देह विकारों को हरे,करके यह उपचार॥
22-करेला
देख करेला बेल पर,आज पकाओ तोड़।
रोग अनेकों भागते, इससे मुख मत मोड़॥
23-अमरूद
सबके मन को भा रहा,डाल पका अमरूद।
सर्दी खाँसी की दवा,तोड़ो इसको कूद॥
24-जामुन
गुठली का मधुमेह में, करना सब उपयोग।
जामुन गठिया ठीक कर,रोके अनगित रोग॥
25-इमली
इमली की चटनी बना,कर इसका उपयोग।
सेवन से इसके घटे, मोटापे का रोग।
26-अर्जुन
गुणकारी है जान लो,यह अर्जुन की छाल।
हृदय रोग इससे घटे,पी लो नित्य उबाल॥
27-बहेड़ा
आमाशय के रोग को,करे बहेड़ा दूर।
रख इसको चूरन बना,गुण इसमें भरपूर॥
28-हर्रे
छोटी सी है यह जड़ी,हर्रे इसका नाम।
वायु जनित हर रोग का,करती काम तमाम॥
29-मेथी
वात पित्त कफ का करें,मेथी से उपचार।
दाने से बादी घटे,घटता तन का भार॥
30-सिन्दुआर/ निर्गुण्डी
औषधीय गुण से भरी,निर्गुण्डी है नाम।
जोड़ो की हर पीर का, करती काम तमाम॥
31-बैर
रोग सभी मस्तिष्क के, करता है यह दूर।
सूखा हो या फिर पका, गुण इसमें भरपूर॥
32-सेमल
सेमल गुणकारी जड़ी, आती तन के काम।
पीड़ा में काढ़ा पियो,देगा यह आराम॥
33-पत्थरचूर
पत्ते पत्थरचूर के,लगा त्वचा पर पीस।
घावों की क्षण में हरे,लेपन से यह टीस॥
34-बांस
मासिक पीड़ा में बड़ा, उपयोगी है बांस।
कोंपल का काढ़ा बना, क्यों रोता है खांस॥
35-पलाश
पीसो बीज पलाश के,लेप लगाओ आज।
त्वचा रोग जड़ से मिटे,मिट जाएगी खाज॥
36-सरसों
पीड़ा सिर में जब कभी,हो कितनी गंभीर।
सरसों सेवन से सभी, मिटती तन की पीर॥
37-कुजरी
आँतों के कृमि मारकर, करती पीड़ा दूर।
शांत करे यह पीलिया,कुजरी गुण भरपूर॥
38-चाकोड
वात पित्त कफ में सदा, उपयोगी चाकोड़।
काढ़े से कुल्ला करो,कृमि जाएंगे छोड़॥
39-दालचीनी
चाय दालचीनी बना,पीना उठते भोर।
मोटापा तन से मिटे, मिटे वायु का जोर॥
40-अनार
सौ रोगों की यह दवा,गुण का यह भंडार।
सेवन कर हर रूप में,जादू भरा अनार॥
41-कुल्थी
करना कुल्थी दाल का, तुम सेवन भरपूर।
पथरी,मोटापा घटे,मधुमेह रखे दूर॥
42-अरण्डी/एरण्ड
गठिया,खाँसी,कब्ज की,पीर नहीं अब झेल।
केशों को सुंदर रखे,उपयोगी यह तेल॥
43-चिरचिटा
अद्भुत है यह चिरचिटा, काढ़ा पियो उबाल।
सर्दी-खाँसी,कब्ज कफ,रोगों का यह काल॥
44-बबूल
दातुन तोड़ बबूल की,करना नित्य प्रयोग।
दंत विकारों को हरे,मिटे त्वचा के रोग॥
45-कटहल
कटहल की सब्जी बना,सेवन कर भरपूर।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा, रोग रखे यह दूर॥
46-जीरा
जीरा गुणकारी बड़ा,पियो नित्य उबाल।
पेट विकारों का बने,पीते ही यह काल॥
47-अदरख
सुबह-सवेरे चाय में,अदरख जमकर डाल।
वात पित्त कफ रोग में,करती बड़ा कमाल॥
48-हींग
पी लो पेट विकार में, उठकर पहले भोर।
गुणकारी इस हींग से,स्वाद बढ़े पुरजोर॥
49-अजवायन
चूरन या काढ़ा बना,लो अजवायन रोज।
पाचन की उत्तम दवा, और कहीं मत खोज॥
50-शहद
सुबह-सवेरे शहद लो,गुनगुन जल के साथ।
मुख की सुंदरता बढ़े,दवा रखो यह हाथ॥
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
Friday, April 28, 2023
रामबाण औषधि (दोहे)-1
Monday, August 8, 2022
शिव की कृपा
शिव शंभु को करने नमन ऋतु श्रावणी सजकर खड़ी।
लगता जटा से गंग की धारा घटा बनकर झड़ी॥
बम बोल बम कहते हुए सब काँवड़े लेकर चले।
आकर शिवा के धाम पर बहने लगी असुँअन लड़ी॥
हर बैर मन से भागता स्वीकार लो सच भाव से।
शिव की कृपा ही जोड़ती है प्रीत की टूटी कड़ी॥
झंझा नहीं मन भय भरे भोले सदा ही साथ हैं।
भटके नहीं पथ से कभी विपदा पड़े चाहें बड़ी॥
करना शिवा हम पर दया करते सदा हम वंदना।
कर शीश प्रभु अपना रखो कहती सुधी हठ पर अड़ी॥
©®अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
Monday, July 4, 2022
जीवन नैया
Tuesday, June 28, 2022
वेदना
नहीं सत्य का कोई अनुरागी
हरी दरस का मन अनुरागी। फिरता मंदिर बन वैरागी॥ हरी नाम की माला फेरे। हर लो अवगुण प्रभु तुम मेरे॥ देख झूठ की बढ़ती माया। चाहे मन बस तेरी छाया॥...
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चल हट जा ना झूठे सुन तेरी बातें हम तुझसे ही रूठे यह झूठ बहाना है कर प्यारी बातें अब घर भी जाना है क्या बोलूँ मैं छलिए ...
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1-अग्नि अग्नि जलाए पेट की,करे मनुज तब कर्म। अंत भस्म हो अग्नि में,मिट जाता तन चर्म॥ 2-जल बिन जल के जीवन नहीं,नर तड़पे यूँ मीन। जल उपयोगी मान...
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पिता के वचनों को पूरा करने के लिए वनवास जाने से पहले श्री राम भाई लक्ष्मण और सीता जी के साथ महाराज दशरथ से आज्ञा लेते हुए उन्हें धीरज रखने...





