1-अग्नि
अग्नि जलाए पेट की,करे मनुज तब कर्म।
अंत भस्म हो अग्नि में,मिट जाता तन चर्म॥
2-जल
बिन जल के जीवन नहीं,नर तड़पे यूँ मीन।
जल उपयोगी मानते,भूप संत अरु दीन॥
3-वायु
श्वास अटकती वायु बिन,यह जीवन का सार।
जीवन में बहुमूल्य है,प्राण वायु उपहार॥
4-पृथ्वी
पृथ्वी जीवनदायिनी, देती फल अरु फूल।
नर,वन अरु हर जीव के,यह जीवन का मूल॥
5-आकाश
सूर्य चमकता व्योम में,चंद्र दमकता रात।
मेघ घिरे आकाश में,होती फिर बरसात।
6-नदी
माता सा धीरज लिए,कल कल बहती धार।
नदी धरा को सींचती,कर मानव उद्धार।
7-झरना
शैल शीश से गर्व से, गिरकर गाए गीत।
जाकर नदिया से मिले, बनकर झरना मीत॥
8-वृक्ष
पौध धरा पर रोपकर,सींचो अपने हाथ।
बड़े हुए वृक्ष झूमते,फल लेकर फिर साथ॥
9-वन
उपयोगी वन संपदा,मानव रहा उजाड़।
जलती धरती क्रोध से,देख ठूंठ से झाड़॥
10-मिट्टी
माथे पर मिट्टी लगा,पूज रहे हैं लोग।
वीरों के लहु से सनी,सहती वीर वियोग॥
11-पाषाण
छैनी ले पाषाण में,गढते दिव्य स्वरूप।
देख उसे फिर पूजते,सभी रंक अरु भूप॥
12- मेघ
शीतलता अंतस लिए,उमड़े संग समीर।
गरजे बरसें मेघ जब,भींगे तन मन नीर॥
13- पपीहा
प्यास पपीहा की बुझे,मेघ झरे जब नीर।
व्याकुल होकर देखता,अम्बर रखकर धीर॥
14- हंस
पक्षी प्रतीक प्रेम का,हंस देख नर मुग्ध।
मोती सागर से चुने,नीर निकाले दुग्ध॥
15-तितली
रंग-बिरंगी तितलियाँ,उड़ती वन अरु बाग।
पुष्प पुष्प पर बैठकर,पी रही रस पराग॥
16- बया
छोटी-सी चिड़िया बया, बुनकर जैसा काम।
बुनती सुंदर घोंसला,तिनके लिए तमाम॥
17- सारस
आँख मूँद जल में खड़ा,रख जोगी सा ध्यान।
लंबी गर्दन देखकर,सारस पक्षी जान॥
18- उलूक
सेवन मांसाहार का,करता उलूक नित्य।
पकड़े शिकार रात को,छुपे देख आदित्य॥
19- कागा
कागा प्रतीक देव पितृ,कहते हैं सब संत ।
श्राद्ध पक्ष भोजन करा, मिलता पुण्य अनंत॥
20- मोर
सुन मेघों की गर्जना,नाचे वन में मोर।
रैन ढले दिखता नहीं,उड़े डाल पर भोर॥
21-काकपाली
कंठ काकपाली मधुर,काली जैसे काक।
अमराई पर बैठकर,देखे फल को ताक॥
22- कपोत
खाए ज्वारी बाजरा,डाल रहे जो लोग।
पुण्य कमाने की जगह,मिले दमा का रोग॥
23- बुलबुल
काली सी बुलबुल भली,छेड़े सुंदर राग।
शहरों में दिखती नहीं,उड़ती है वन बाग॥
24- टिटहरी
कर्कश सुर से टिटहरी,चीखे देखे धूप।
अंडे देती भूमि पर, हल्का भूरा रूप॥
25-गिद्ध
जीव मरा जब देखता,करता उसपर वार।
झुंड बनाकर टूटते, करते जीव शिकार॥
26-बाज़
बिजली सी तेजी लिए,करता बाज शिकार।
छोटे पक्षी नाग सब,बल से जाते हार॥
27-नीलकंठ
नीलकंठ को पूजते,मानव शंभू जान।
दर्शन इसके जो करे,मिलता उसको मान॥
28-चकवा
चकवा चकवी घूमते,दिन भर बनकर जोड़।
रैन ढले होते अलग,साथ दूसरे छोड़॥
29-पीलक
दिखता लघु आकार में,रंग सुनहरा पीत।
पीलक पक्षी देखना,बड़े भाग्य की रीत॥
30-तीतर
भाती इसको झाडियाँ,कीड़े खाना काम।
मुर्गी से छोटा दिखे,तीतर इसका नाम॥
31-सूर्यपक्षी
सूर्य पक्षी किलोल कर,झूमे सेमल डाल।
रंग बदलता धूप में,कलरव बड़ा कमाल॥
32-तोता
हरित रंग सुंदर लगे, चोंच रंग है लाल।
नकल करे इंसान की,बोले जैसे बाल॥
33-बगुला
शांत रूप बगुला खड़ा,लगा रहा है ध्यान।
झपटे पल में मीन को, प्रिय भोजन यह जान॥
34-गौरेया
गौरेया अब मिट रही,मानव करनी देख।
कभी चहकती आँगना,दिखती कागज लेख॥
35-चील
गोल गोल अम्बर उड़े,उड़े झपट्टा मार।
कर्कश स्वर में चीखती,करती झपट शिकार॥
36-मुर्गा
सुबह-सवेरे बाँग दे,देख लालिमा भोर।
मानव उठता नींद से,जागें पक्षी मोर॥
37-बतख
दिखती हर क्षण ताल में,खाती कीड़े बीन।
झुंड बनाकर तैरती, पकड़े झट से मीन॥
38-मैना
मैना समझे बात को, रहकर मानव पास।
भूख लगे तो चीखती,ले दाने की आस॥
39-फुदकी
रहे फुदकती डाल पर,फुदकी इसका नाम।
मकड़जाल के तार से,बुने घोंसला आम॥
40-कठफोड़वा
रहे ठोकता चोंच यह,करे पेड़ पर वार।
कहते हैं कठफोड़वा,दीमक कीट शिकार॥
41- चीता
आगे सबसे दौड़ में,चीता इतना तेज।
कर शिकार संख्या मिटी,रखते अभी सहेज॥
42-हाथी
भारी-भरकम सूंड से,करता है जब वार।
भागे भय से शेर भी,हाथी बल से हार॥
43-जिराफ
लंबी गर्दन तन बड़ा,चकते बने शरीर।
खाएं फल अरु पत्तियाँ, रखकर मन में धीर॥
44-शेर
झबरीले गलहार से,गर्दन पर हैं बाल।।
सुन दहाड़ वन शेर की,जीव बदलते चाल॥
45-लोमड़ी
चतुर बड़ी यह लोमड़ी,चलती पीछे शेर।
दिखती है यह श्वान सी,घूमे आँख तरेर॥
46-हिरण
भरे कुलांचे दौड़ता,हिरण सुनहरा रूप।
सुंदरता मन मोहती,नर हो या फिर भूप॥
47-नीलगाय
नीलगाय वन खेत में,घूम भरे यह पेट।
सुंदर सी काया लिए,चलती झुंड समेट॥
48-भालू
काला काला रूप से,चले भयंकर चाल।
सुने मदारी डुगडुगी,करतब करे कमाल॥
49-बंदर
बड़ा चुलबुला जीव यह,खाए फल अरु कंद।
डाल डाल पर झूलता,रहता न कभी बंद॥
50-खरहा
दिखता यह खरगोश सा,भाए इसको कंद।
सरपट जब यह दौड़ता, कोई करे न बंद॥
51-छेरी
हरी घास और पत्तियाँ,छेरी खाए नित्य।
देती मीठा दुग्ध यह,उठे संग आदित्य॥
52-मेषी
देती हमको ऊन यह, और साथ में दुग्ध।
मेषी काली श्वेत सी,देख हुए सब मुग्ध॥
53-ऊंट
कहते जहाज रेत का,पीता है कम नीर।
गर्मी हो कितनी कड़ी,ऊंट चले धर धीर॥
54-गिलहरी
प्यारी सी यह गिलहरी,खाती फल अरु बीज।
तन सुंदर सी धारियाँ,बैठी बड़ी तमीज॥
55-बिल्ली
मौसी कहते शेर की,करती बड़े शिकार।
घर से चूहे भागते,करती बिल्ली वार॥
56-नेवला
सर्प शत्रु है नेवला,मारे उसको खींच।
सर्प भले हो कोबरा,रखे नेवला भींच॥
57-साँप
देख सभी तब काँपते,दिखे साँप का वंश।
मानव जीवन हारता,मारे जब यह दंश॥
58-कछुआ
करे शत्रु जब वार तो, छुपता कठोर खोल
प्राणी सीधा शांत सा,कछुआ यह अनमोल॥
59-गर्दभ
सहता भारी बोझ को,चलता गर्दभ मौन।
अपनी जिद जब यह अड़े,बोझ टाँगता कौन॥
60-अश्व
चिकनी सुंदर देह का,अश्व बड़ा यह तेज।
राजाओं के राज में,रखते इसे सहेज॥
61-मोगरा
पुष्प खिलें यह श्वेत से,महक उड़े यह दूर।
बालों में गजरा सजे, लिए सुगंध भरपूर॥
62-नीलकुरिंजी
नीलकुरिंजी के खिले, पुष्प बारहवें वर्ष।
देख भरी फिर डालियाँ,मन में होता हर्ष॥
63-ब्रह्मकमल
ब्रह्मकमल खिलता वहीं,होती जमकर शीत।
करो समर्पित शंभु को,होगी जीवन जीत॥
64-अमलतास
अमलतास के पेड़ में, औषधि गुण भरपूर।
दाद खाज खुजली मिटे, फोड़े-फुंसी दूर॥
65-रातरानी
पुष्प रातरानी खिले,होती गहरी रैन।
औषधीय गुण से भरा,महक भरे मन चैन॥
66-सूर्यमुखी
खिले पुष्प यह भोर में,बनता इसका तेल।
जीवन सत्वो से भरा,सुंदरता बेमेल॥
67-कुमुदनी
दिखे कमल छोटा जरा,सुगंध पुष्प कमाल।
चंद्रोदय के साथ में,खिलता है यह ताल॥
68-चम्पा
मूत्र रोग में कारगर,करता पथरी दूर।
चम्पा की भीनी महक,गुण इसमें भरपूर॥
69-चमेली
पुष्प चमेली श्वेत सा, बनता इसका तेल।
इत्र सुगंध मन मोहती,गुण इसमें बेमेल॥
70-गेंदा
सोने सी चादर लगे,देख खिले यह फूल।
गेंदा गुण भरपूर है,मानो औषधि मूल॥
71-कन्दपुष्प
खिलता पुष्प बसंत में,लेकर मोहक रंग।
कन्दपुष्प को देखकर,रह जाते सब दंग॥
72- अबोली
पौधा सदाबहार का, सुंदर इसके फूल।
नाम अबोली बोलते,रंग लाल पीला मूल॥
73- मोरशिखा
मोरशिखा घर में लगा,ऊर्जा शुभ भरपूर।
माँ लक्ष्मी की हो कृपा,दोष नजर हों दूर॥
74- मधुमालती
सर्दी ज़ुकाम की दवा, सुंदर इसके फूल।
औषधीय गुण से भरी,पत्ते बेल समूल।
75- रोहेड़ा
रोहेड़ा की छाल का,करने से उपयोग।
यकृत,कर्ण,प्लीहा सभी,दूर रहेंगे रोग॥
76- चंद्रमल्लिका
सुंदरता में यह प्रथम, पित्त , कब्ज हो दूर।
चंद्रमल्लिका पुष्प में,औषधि गुण भरपूर॥
77- बनफूल
बंजर सी भू पर खिले, सुंदर सा यह फूल।
देखभाल बिन मानवी, खिलते पुष्प समूल॥
78- कनेर
मन को रखता शांत यह, सुंदर पुष्प कनेर।
माँ लक्ष्मी को प्रिय बड़ा,कृपा करें बिन देर॥
79- सर्वज्जय
लाल गुलाबी पीत से, सर्वज्जय के फूल।
केले जैसे रूप में,दिखती पौध समूल॥
80-अपराजिता
विष्णु प्रिया अपराजिता,करे कलह का नाश।
नील वर्ण अरु श्वेत सा,खिलता सूर्य प्रकाश॥
81- सूर्य
सूर्य उदय से हो सदा,ऊर्जा संचार।
जीवन उठकर बैठता,करता नित आभार॥
82- चंद्र
सुंदरता मन मोहती,देख चंद्र आकाश।
धवल श्वेत सी चाँदनी,फैला रही प्रकाश॥
83- तारे
रात अँधेरी देखकर,तारे चमकें नित्य।
टिम-टिम करते रात भर,छुपता जब आदित्य॥
84- सागर
लहराता जब वेग से, सागर लेता लील।
बाहर लाकर फेंकता,समझ वस्तु सब खील॥
85- तुहिन कण
सुबह-सवेरे पुष्प पर,सजे मुकुट हो भूप।
मोती जैसे कण तुहिन,मिटे देखते धूप॥
86- रक्त
मानव हो या जीव का,रक्त एक सा लाल।
जात धर्म के नाम सब,लड़ते बनकर काल॥
87- श्वास
जीवन तन तब तक रहे,जब तक चलती श्वास।
श्वास रुकी जीवन मिटा,मिट जाती हर आस॥
89- पशु
पशु उपयोगी जीव है,आता सबके काम।
खेती हो या बोझ हो,करता काम तमाम॥
90- कीट
कीट पतंगों की सदा,होती छोटी आयु।
मानव डरता देखकर,उड़ते जैसे वायु॥
91-वर्षा
वर्षा की ऋतु में दिखे, हरियाली चहुँओर।
गरजे बरसे जोर जब,दादुर करता शोर॥
92- ग्रीष्म
बहे पसीना देह से, ऋतु आए जब ग्रीष्म।
पंखा कूलर हारते,तपन बढ़े जब भीष्म॥
93- शरद
देख कुहासा फैलते,चलती शीत समीर।
शरद ऋतु दर पर खड़ी,ऊनी वस्त्र शरीर॥
94- हेमंत
जोर पकड़ती ठंड जब,ऋतु हेमंत की द्वार।
छाए गहरा कोहरा,नहीं धूप आसार॥
95- शिशिर
धूप गुनगुनी सी लगे,सेंक रहे अंगार।
दुबली पतली देह पर,लदा वस्त्र का भार॥
96- बसंत
बौर महकते आम पर,कोयल कूके बाग।
नवपल्लव को देखकर, छेड़ रही है राग॥
97- कोयला
काला दिखता कोयला,काला सोना नाम।
बन ऊर्जा का स्रोत यह,आए ईंधन काम॥
98- स्वर्ण
स्वर्ण बड़ा बहुमूल्य है,कहता फिरे सुनार।
आभूषण नाना बने,कंगन, झुमके हार॥
99- रत्न
राजाओं के सिर मुकुट,हीरा सुंदर साज।
रत्न जड़े ही कीमती,मोती अरु पुखराज॥
100- खनिज
सुंदर जीवन के लिए, सुविधाओं का भोग।
लेकर धरती से खनिज,नर करता उपयोग॥
*अनुराधा चौहान'सुधी'*