Tuesday, November 3, 2020

जीवन पानी बूँद सा(दोहे)


 माया की छाया बुरी,भूले प्रभु का नाम।

मीठे सुर कैंची चला,करते काम तमाम।


लालच धोखा वासना,दिखे यही हर ओर।

गोरखधंधे बढ़ रहे,प्रीत टूटती डोर। 


माया देखो झूठ की,करती सच पे वार।

झूठ पसारे पाँव नित, होती सच की हार।


काल कुठारी ले खड़ा,मूँदे सबने नयन।

संकट आके सिर खड़ा,कैसे करते शयन।


आलस से मिलता नहीं,सुख वैभव आराम।

जीवन जीने के लिए,करना अच्छे काम।


मानवता को छोड़ के,फिरते हैं बेकार।

दीन हीन की पीठ पे,पीछे करते वार।


माया के बस में रहे, रिश्ते बैठे तोड़।

अब पछताते बैठ के,कैसे हो फिर जोड़।


लाया क्या जो साथ में,रोता जो दिन रात।

करनी का फल भोगता,करता झूठी बात।


जीवन पानी बूँद सा,कब पल में मिट जाय।

करले अच्छे काम कुछ, भूले नहीं भुलाय।


*©®अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*

चित्र गूगल से साभार


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हरी दरस का मन अनुरागी। फिरता मंदिर बन वैरागी॥ हरी नाम की माला फेरे। हर लो अवगुण प्रभु तुम मेरे॥ देख झूठ की बढ़ती माया। चाहे मन बस तेरी छाया॥...