हरी दरस का मन अनुरागी।
फिरता मंदिर बन वैरागी॥
हरी नाम की माला फेरे।
हर लो अवगुण प्रभु तुम मेरे॥
देख झूठ की बढ़ती माया।
चाहे मन बस तेरी छाया॥
धर्म-कर्म अब घटता जाए।
लूट-पाट कर नर चिल्लाए॥
देख हँसे सब पीर पराई।
ऐसी जग ने रीत बनाई॥
नहीं सत्य का कोई अनुरागी।
भोग वासना घर-घर जागी ॥
तेरा मेरा बंधन तोड़े।
अपनेपन से सब मुख मोड़े॥
देख यही मैं हरी को मानूँ।
हरी नाम ही सच्चा जानूँ॥
अनुराधा चौहान'सुधी'
चित्र गूगल से साभार
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