Friday, June 25, 2021

गंगोदक सवैया


गंगोदक सवैया को लक्षी सवैया भी कहा जाता है। गंगोदक या लक्षी सवैया आठ रगणों से छन्द बनता है। केशव, दास, द्विजदत्त द्विजेन्द्र ने इसका प्रयोग किया है। दास ने इसका नाम 'लक्षी' दिया है, 'केशव' ने 'मत्तमातंगलीलाकर'।
212 212 212 212, 212 212 212 212

*राधा की पुकार*
श्याम राधा पुकारे चले आइए,देख काला अँधेरा डराता बड़ा।
भागती दौड़ती बाँसुरी जो सुनी,लाज आती मुरारी कहाँ है खड़ा।
छेड़तीं हैं सखी ढूँढती जो तुझे,माथ बेंदा गिरा खो गया वो पड़ा।
सूखती है कली भी अभी आस मेंनाथ आओ बता बात क्यों तू अड़ा।
*मोहना रूप*
खोलती आँख में देखती हूँ तुम्हें,दूसरा श्याम जैसा सखा है कहाँ।
साँवरे गोपियों को करे बावरा,झूमती नाचती भाग आती यहाँ।
छेड़ दे तान मीठी लगे बाँसुरी,देख लो बैठती हैं सखी भी वहाँ।
मोहना रूप तेरा मुझे मोहता,ढूँढती हूँ वहाँ बैठता तू जहाँ।
 लालसा
दंभ छोड़ो सभी छोड़के कामना,लालसा लीलती प्रेम की रीति को।
भोर होती नहीं लोभ की देखिए,कालिमा सी घनी घेरती प्रीति को।
खोलिए बंधनों को जरा प्रेम से,खेलने दो सदा भोर सी नीति को
हो उजाले घरों में अभी बंद हैं,द्वार जो खोल दो भूल के भीति को।
*अनुराधा चौहान'सुधी'*
चित्र गूगल से साभार

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