211 211 211 211, 211 211 211 211
*१-सावन*
देख घने घनघोर घिरे घन,जोर गिरे मनभावन सावन।
दादुर मोर पयोधर पादप,आज दिखे सब ही मनभावन।
बूँद छमाछम शोर करे जब, छेड़ रहा मन राग सुहावन।
काँवर लेकर लोग चलें जब, सावन मास लगे अति पावन।
*२-माधव*
माधव मोहन टेर सुनो मन,मानव जीवन संकट में जब।
काल खड़ा सिर नाच रहा जग,जीवन से सुख छीन रहा अब।
देख रहे चुप होकर क्यों सब,मंदिर के पट बंद हुए तब।
आँगन हो सुख की अब बारिश,मानव की विपदा हरके सब।
*३--रघुनाथ कृपा*
चंदन वंदन हे रघुनंदन,आज करो सबके मन पावन।
मैल मिटे हर दोष हटे फिर,जीवन हो फिर आज सुहावन।
नीरव बीत रही रजनी अब,साज बजे बरसे रस सावन।
आज कृपा फिर से करदो प्रभु,दीप जले सबके घर भावन।
४-तोरण
द्वार सजे अब तोरण रंगत,नाच करे नर भूल सभी जग।
आँगन हो शुभ राज सदा फिर,बाँध लिए गठरी सुख के नग।
दीन दुखी दुख भूल हँसे तब,देख विवाद नहीं मचले डग।
राघव हाथ रखें सबके सिर,लालच देख नहीं भटके पग।
*अनुराधा चौहान'सुधी'✍️*
बहुत सुन्दर अनुराधा जी!
ReplyDelete'बारिश बंद करो --' का मतलब तो कुछ और है लेकिन हम दिल्ली-एनसीआर वाले आपकी प्रार्थना से भयभीत हो गए हैं. यहाँ तो अर्से से एक बूँद पानी गिरा ही नहीं है.
हमारे अनुरोध पर इस बिनती के शब्दों को थोड़ा बदल दीजिए और भगवान से प्रार्थना कीजिए कि हमारे यहाँ भी बारिश की बूंदे भेजने की कृपा करें.
बहुत सुन्दर अनुराधा जी।
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