Tuesday, June 22, 2021

चन्द्रमणि छंद-१


1. 
गणेश जी को समर्पित
गजमुख लम्बोदर प्रभो,
भवसागर से तारना।
गौरीसुत करते नमन,
पूरी करना कामना।

2. 
माँ शारदे को समर्पित
माँ वीणा वरदायनी ,
विद्या का तू दान दे।
अँधियारा जग से मिटे,
ऐसा माँ वरदान दे।

3. 
भगवान राम जी को समर्पित
रघुकुल राजा राम की,
महिमा अपरम्पार है।
मन से रामायण पढ़ो,
मिटता दुख का भार है।

4. 
गुरूजनों को समर्पित
गुरुवर अनुपम ज्ञान से,
खाली गागर नित भरें।
अनुभव देके फिर नए,
छंदों की बारिश करें।

5. 
छंदशाला परिवार को समर्पित
शाला रचना कर रही ,
छंदो के संसार की।
नवगीतों का हो सृजन,
कोई कमी न प्यार की।

6. बगिया
खिलती बगिया पुष्प की,
माली खुश हो रीझता।
गर्मी से जब सूखते,
मन ही मन में खीझता।

7-संग्रह
सदगुण मन संग्रह करो,
खोटी बातें कर मना
अवगुण अपने दूर कर,
जीवन को सुखमय बना।

*8. मानक*
मानव करनी टालके,
बदले सब स्वरूप ही।
जीवन उसके दुख बढ़े,
मानक के अनुरूप ही।

*9-व्याकुल*
कैसे डसता जा रहा,
संकट इस संसार को।
मानव व्याकुल हो सहे, 
बीमारी की भार को।

*10. दुविधा*
दुविधा मन बढ़ती रहे,
अनचाहे इस रोग से।
चलना संभल कर सभी,
उल्टे सीधे भोग से। 

*11. दोहन*
कानन सारे काट के,
धरती का दोहन किया।
जीवन साधन को मिटा,
जीना मुश्किल कर लिया।

*12. पालन*
ममता देती माँ सदा,
कटु वचनों को भूल कर।
पालन करता है पिता,
सारे कष्टों को भूल के।

*13. महती*
माता की महती बड़ी,
करते हम सब आरती।
इच्छा करती पूर्ण माँ,
कष्टों से है तारती।

*14. क्षमता*
क्षमता अपनी पहचान के,
करना उत्तम काम है।
यश वैभव घर में बढ़े,
होता जग में नाम है।

*15. श्यामल*
श्यामल बदली देख कर,
नाचे वन में मोर है।
बूँदों की टिप टिप सुने,
बचपन करता शोर है।


*16.लतिका*
जीवन में सुख चाहिए,
करना अच्छे काम भी।
वैभव की लतिका बढ़े,
जग में गूँजे नाम भी।

*17.पशुता*
मानवता मरती दिखे,
पशुता पाँव पसारती।
सच्चाई जग से मिटी,
रोती है माँ भारती।

*18.लोचन*
कौरव के दरबार में,
भर के लोचन नीर से।
केशव से विनती करे,
आहत मन की पीर से।

*19.दानव*
मानव दानव रूप में,
करता काले काम को।
कालिख मन में पोत के,
काला करता नाम को।

*20.शाला*
शाला से हमको मिले,
अच्छाई का ज्ञान है।
जीवन के भटकाव का,
गुरुवर रखते ध्यान है।

*खिड़की* 
सच्चाई को देखना,
खिड़की मन की खोल के।
रखना सबको खुश सदा,
मीठी बातें बोल के।

*22. डोली*
डोली जीवन की उठी,
रोता यह संसार है।
टुकड़े-टुकड़े टूटता,
मन पर लेकर भार है।

*23. बाली (पौधे की)*
सूरज की किरणें खिली,
जैसे तपती रेत में।
पकती बाली यूँ लगे,
सोना बिखरा खेत में।

*24. बुझना*
दीपक बुझना आस का,
मानव मन को तोड़ता।
आहत होकर फिर तभी,
सपने पीछे छोड़ता।

*25.नाटक*
जीवन इक नाटक बना,
ईश्वर रचनाकार है। 
उसकी इच्छा से चले,
यह सारा संसार है।

*रजनी*
रजनी दुख की जब ढले,
आए सुंदर भोर है।
चहुँदिश फैले लालिमा,
वन में नाचे मोर है।

*27. आदर*
माता का आदर करो,
देकर उनको प्यार भी।
जीवन के पालक पिता,
हल्का करते भार भी।

*28. गिनती*
गिनती की साँसें मिली,
करलो उत्तम काम ही।
माटी की काया ढही,
रह जाता है नाम ही।

*29. पहली*
पहली गुरु माँ मानिए,
देती उत्तम ज्ञान हैं।
संस्कार सदा मन भरे,
बढ़ता फिर सम्मान है।

*30.सबकी*
सबकी बातें मान के,
आदर गुरुवर का करें।
जीवन में फिर ज्ञान की
खाली गागर नित भरें।
 
*31. लाघव*
लाघव होने से कभी,
घटता है सम्मान कब।
करके अच्छे कर्म ही,
गूँजे जग में नाम तब।

*32. सीधी*
उल्टी सीधी बात से,
बिगड़े सबके काम हैं।
मन को भी मिलता नहीं,
जीवन भर आराम हैं।

*33. शबरी*
शबरी रखती प्रेम से,
चुन-चुन मीठे बेर को।
मन ही मन में पूजती,
सुबह-शाम दोपहर को।

*34. प्रहरी*
प्रहरी सीमा पर डटे,
सहते तन पे वार हैं।
कैसी भी हो आपदा,
नहीं मानते हार हैं।

*35. भूधर*
मेघों की छाया नहीं,
बारिश की अब आस ले।
भूधर बैठा खेत में,
व्याकुल मन की प्यास ले।

*36. नीरव*
नीरव सी गलियाँ पड़ी,
सूने दिखते बाग है।
कोरोना जग फैलता,
जैसे दहकी आग है।

*37. मलयज*
मलयज से लेकर महक,
शीतल पुरवाई चली।
महकाती आँगन भवन,
महकी सूनी हर गली।

*38. चितवन*
चिंतित चितवन मात की,
चाहे सुख संतान का।
सच्चाई के पथ चले।
डर लगता है मान का।

*39. कंपित*
कंपित होती जब धरा,
क्रोधित होकर डोलती।
मानव मानवता बचा,
झटके देती बोलती।

*40. सौरभ*
सौरभ अच्छे कर्म का,
फैले चारों ओर है।
चलना उन्नत पथ सभी,
मिलती उजली भोर है।

*41.. झीना*
झीना परदा लाज का,
नारी माथे पे रखे।
ममता की मूरत बनी,
जीवन का हर रस चखे।

*42. गौरव*
सैनिक गौरव देश के,
हम सबका अभिमान हैं।
उनके मन हरदम बसे,
भारत का सम्मान है।

*43. पीड़ा*
पीड़ा सह माता पिता,
बच्चों का लालन करें।
इच्छा अपनी मारते 
बच्चों की झोली भरें।

*44. गरिमा*
गरिमा बढ़ती है सदा,
हरदम उत्तम काम से।
बढ़ती है पहचान भी,
फिर अपने ही नाम से।

*45. रंजित*
किंशुक की चादर बिछी,
रंजित कानन भी हुआ।
बासंती पुरवा चली,
पुष्पों ने यौवन छुआ।

 *46. जातक*
जातक सा भोला हृदय,
जातक सा हो प्यार भी।
जातक सा ही मन रखो,
सुंदर फिर संसार भी।

*47. मंदिर*
घर को मंदिर मानकर,
माँ देवी सम जानिए।
पूजन पालक का करो,
मिलता सुख सच मानिए।

*48. अभिनय*
करते अभिनय हम सभी,
जीवन लिखता पटकथा।
थोड़ी खुशियाँ झूमती,
दिखती थोड़ी सी व्यथा।

*49. अभिनव*
अभिनव आभा से भरी,
आएगी शुभ भोर है।
बदली आशा की घिरे,
मन में नाचे मोर है।

*50. संगति*
बिन माँगे मिलते सदा,
अवगुण भरके भीख में।
संगति संतों की करो,
सद्गुण देते सीख में।

*अनुराधा चौहान'सुधी'
चित्र गूगल से साभार

6 comments:

  1. गुरूजनों को समर्पित
    गुरुवर अनुपम ज्ञान से,
    खाली गागर नित भरें।
    अनुभव देके फिर नए,
    छंदों की बारिश करें।--बहुत अच्छा प्रयास है आपका अनुराधा जी...। ये पंक्तियां मुझे बहुत अच्छी लगीं।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

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  2. खिलती बगिया पुष्प की,

    माली खुश हो रीझता।

    गर्मी से जब सूखते,

    मन ही मन में खीझता।

    बहुत सुंदर

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  3. अपने आप में परिपूर्ण सुंदर छंदों का सृजन,बहुत शुभकामनाएँ।

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    Replies
    1. हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।

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