Wednesday, June 23, 2021

दुर्मिल सवैया



112 112 112 112, 112 112 112 112
*1* 
महारानी लक्ष्मीबाई (मनु)
तलवार उठाकर दौड़ पड़ी,वह काल बनी रिपु भाग खड़ा।
मनु वीर बड़ी रणकौशल में,चुनती पथ पे हर शूल पड़ा।
रिपु काँप उठे छल रोज करें,फिर हार रहा पथ आन अड़ा।
सुत पीठ लिए रणभूमि लड़े, बिजली बनके मुख क्रोध झड़ा।

*2*
अनुशासन
मन दीप जलाकर ज्ञान जगा,तम घोर मिटे घर आँगन से।
उजली किरणें उपमा बनके,रस भाव भरे मनभावन से।
सब मैल हटा कर दूर करो ,मनसे कुविचार विभाजन से।
सब एक समान बने रहते,प्रतिपालन हो अनुशासन से।

*3*
*नव अंकुर*
खिलती कलियाँ जब भोर हुई,बगिया महकी चिड़िया चहकी।
तब आँगन पायल बोल उठी,लकड़ी चटकी फिर से दहकी।
तरु शाख सजी नव अंकुर से,पुरवा चलती लगती बहकी।
हर भोर सुगंधित सी खिलती,मनभावन पावनता महकी।

*4*
*यश*
यश जीवन में मिलता उनको,करते मनसे लिखना पढ़ना।
बढ़ते पथ छोड़ सभी दुखड़े,तब दोष कहीं न पड़े मढ़ना।
सपने अपने सजते श्रम से,फिर रूप सभी मन से गढ़ना।
मिलती खुशियाँ इतनी सबको,फिर शैल सदा सच की चढ़ना।

*अनुराधा चौहान'सुधी'✍️*

6 comments:

  1. झाँसी की रानी की शान और अनुशासन की प्रेरणा देते सुंदर सवैया।

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    1. आत्मीय आभार जिज्ञासा जी।

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  2. आज के भागते दौर में कविता में इतना ठहराव और ऐसे तल्ख़ माहौल में इतनी मिठास !
    वाह अनुराधा जी !

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

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  3. वाह! बहुत सुंदर। बधाई और आभार।

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