Friday, July 16, 2021

चन्द्रमणि छंद



*1.भूपति*
भूपति मन के बन सदा,
जीतो सबकी प्रीत को।
जीवन उसका ही भला,
समझे सच्ची रीत को।

*2.कलरव*
कलरव चिड़ियों का सुना,
मन बालक बन झाँकता।
कौतुक आँखों में भरा,
खोले मूँदे ढाँकता।

*3. आलस
आलस खुशियाँ छीनकर,
धूमिल करता आस है।
बहती नदिया देख कर
बुझती न कभी प्यास है।

*4. सदगुण*
ज्यादा की ले लालसा,
अवगुण मन बोना नहीं
बसना है सबके हृदय,
सदगुण को खोना नहीं।

*5. नूपुर*
छुप-छुप चलती गोपियाँ,
नूपुर खनके जोर से।
कान्हा मटकी फोड़ते,
सुन पायल के शोर से।

*6. संचय*
संचय सुंदर भावना,
सदगुण ही मन में रखो।
पूरन होती कामना,
सुख के सारे फल चखो।

*7. निर्मल*
सच्ची निर्मल भावना,
सबके ही मन में जगे।
जीवन फिर संगीत सा,
सबको ही प्यारा लगे।

*8. सेवक*
संकट में मानव घिरा,
केशव अब पीड़ा हरो।
सेवक अपना जान के,
प्राणों की रक्षा करो।

*9. इच्छा*
इच्छा मन की राह पर,
टेढ़ी-मेढ़ी भागती।
मिलती है खुशियाँ उसे,
जिस मन आशा जागती।

*10. सच्चाई*
सच्चाई की राह पर,
कंटक मिलते लाख हैं।
दृढ़ निश्चय करके चलो,
हो जाते फिर राख हैं।

*11.पगड़ी*
पगड़ी बाबुल की सदा,
होती कुल का मान है।
इसकी रक्षा सब करो,
जग बढ़ता सम्मान है।

*12.बाहर*
बाहर फैले रोग से,
मचता हाहाकार है।
थोड़ी सी भी चूक से,
करता यह संहार है।

*13.तंदुल*
मित्र हाथ तंदुल लिए,
अपने मुख कान्हा भरें।
मन में डरती रुक्मिणी,
लीला लीलाधर करें।

*14.पगली*
पगली पागल प्यार में,
पलकें पोंछे पोर से।
पिघली मन की पीर जब,
पल्लू पकड़े जोर से ।

*15.बीजक*
बीजक सद्गुण रोप लो,
अंकुर सच के फिर खिले।
सच के फल मीठे लगे,
जीवन में हर सुख मिले।

*16.. साधन*
साधन सुख के चाहिए,
करना होगा काम भी।
आलस चादर ओढ़ के,
बिगड़े हरदम नाम भी।

*17. साझा*
छोटी-छोटी बात पे,
अनबन कोई मत करो।
सुख-दुख साझा कर सदा,
रिश्तों में जीवन भरो।

*18. आशा*
संकट में सब ध्यान से,
नियमों का पालन करो।
मिट जाएगा रोग ये,
आशा यह मन में भरो।

*19. छतरी*
छतरी बन पालक सदा,
मुश्किल से रक्षा करें।
दुख की बारिश को बचा,
जीवन में खुशियाँ भरें।

*20. कीड़ा* 
लालच का कीड़ा बुरा,
अंतस दीमक सा लगे।
रिश्तों में कर दूरियाँ
शंका सबके मन जगे।

*21.विकसित*
सपने विकसित सोच से,
ऊँचे अम्बर को छुए।
यश वैभव फिर पास में,
दुख सारे ओझल हुए।

*22.सुविधा*
सुविधा पढ़ने की मिले,
सुंदर सपनों को गढ़ो।
उत्तम शिक्षा ज्ञान से,
जीवन में आगे बढ़ो।

*23.नामक*
लालच नामक रोग ने,
जीना मुश्किल कर दिया।
मानव का ही काल बन,
मानव ने व्यापार किया।

*24.पालन*
सुंदर जीवन चाहिए,
नियमों का पालन करो।
पीपल बरगद नीम से,
धरती का आँगन भरो। 

*25.अबला*
अबला नारी बन सदा
क्यों सहती हो क्लेश को।
सबला बन आगे बढ़ो,
त्यागो कटु आदेश को

*26.. शैली*
शब्दों के संसार को,
सुंदर शैली के रचें।
झगड़े रखकर दूर ही,
कटुता से हरदम बचें।

*27. शाखा*
अम्बर छाई लालिमा,
पुरवा बहती मंद है।
शाखा पुष्पों से सजी,
मन देती आनंद है,

*28. करतल*
बढ़ता मन फिर हौसला,
होती निश्चित जीत तब।
मिलती सच्ची फिर खुशी,
करतल की हो गूँज जब।

*29. निंदा*
करते जो निंदा सदा,
रहते उनसे दूर सब।
कितना भी फिर सच कहें,
झूठी लगती बात तब।

*30. धारा*
छोड़ो झूठी शान को,
सच की धारा में बहो।
धुल जाता है मैल सब,
बातें सबसे सच कहो।

*31.. सरसिज*
सरसिज सरसी में खिलें, 
मारुत महकी मंद है।
मधुकर मधु की प्रीत से,
अंदर होता बंद है।

*32. पंकज*
पुष्कर पंकज से सजा,
सौरभ मन मोहित करें।
झाँकी सुंदर सुमन की,
सबके मन खुशियाँ भरें।

*33. नीरज*
नीरज से खिलना सदा,
सच्ची मन आशा लिए।
जीवन अच्छे कर्म से,
उन्नति पथ जलते दिए।

*34. शतदल*
शतदल खिल सुंदर लगे,
वैसे हो मन भाव भी।
तुमसे ही हर रंग फिर,
मोहक ही स्वभाव भी।

*35. अंबुज*
अंबुज अंबा पर चढ़ा,
माता से विनती करें।
हरके सारे क्लेश को,
मन में फिर आशा भरें।

*36.सूचक*
छाया जब काली बढ़े,
सारे जग को क्लेश दे।
सौरभ सूचक बन बहे,
शुभता का संदेश दे।

*37. निशिचर*
निशिचर नीरव रात में,
मानव की खुशियाँ डसें।
होते काले कर्म फिर,
पीड़ा के बंधन कसें।

*38. दशरथ*
रघुवर जाते वन तभी,
दशरथ रोएं पीर से।
धूमिल नयनों से हुई,
प्रभु मूरत फिर नीर से।

*39. बरगद*
पालक बरगद से सदा,
देते छाया ज्ञान की।
बदले में उनको मिले,
खुशियाँ भी सम्मान की।

*40. अवसर*
अवसर मुश्किल से मिले,
जीवन में शुभ काम के।
खोना इनको मत कभी,
बदले में कुछ नाम के।

*41.. सहचर*
सहचर प्यारा मीत सा,
सुख-दुख सब मिलके सहे।
खुशियों की बारिश सदा,
गीतों की सरिता बहे।

*42. आसव*
आसव का प्रेमी बना,
मानव भूला प्रीत को।
झूठी बातें कर सदा,
भूला सच की रीत को।

*43. रंगत*
रंगत संगत हो भली,
ऐसी हर संगत करो।
सज्जन लोगों से सदा,
जीवन में रंगत भरो।

*44. लंबन*
लंबन कजरी तीज पर,
सखियाँ गाती गीत है।
पावन सुंदर पर्व यह,
पावन पवित्र रीत है।

*45. हिमपति*
ऋषि मुनियों के हृदय,
हिमपति का सम्मान है।
गौरव सदियों से बना,
भारत की यह शान है।

*46.. दोहा*
तेरह ग्यारह मापनी,
दोहा सुंदर छंद है।
चौकल से करके शुरू,
लघु पर होता बंद है।

*47. रोला*
ग्यारह तेरह मापनी,
उल्टा दोहा रूप है।
रोला की अनुपम विधा,
छंदों का ही रूप है

*48. कुंडल*
नववधु बैठी पालकी,
जाती साजन द्वार है।
कानन में कुंडल सजे,
कुंदन का गलहार है।

*49. मुक्तक*
मन के कोमल भाव से,
सुंदर मुक्तक बोलते।
भावों की पुरवा चले,
छंदो में फिर डोलते।

*50. चौपाई*
सोलह मात्रा रूप ले,
सुंदर चौपाई रचा।
हनुमत का फिर नाम ले,
मनको हर डर से बचा
©®अनुराधा चौहान'सुधी'✍️
चित्र गूगल से साभार

13 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१७-०७-२०२१) को
    'भाव शून्य'(चर्चा अंक-४१२८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बहुत खूबसूरती से लिखे सारे भाव ।
    शायद इस छंद में 13 मात्राओं का विधान है । अंत में लघु और गुरु ।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया।
      इस छंद में १३/१३ मात्राओं का विधान है।अंत लघु गुरु।

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  3. बहुत सुंदर सखी मन मोहित हो गया शिल्प और भावों का सुंदर तारतम्य लिए अभिनव छंद ।
    सस्नेह।

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  4. बहुत सुंदर सृजन

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

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  5. आसव का प्रेमी बना,
    मानव भूला प्रीत को।
    झूठी बातें कर सदा,
    भूला सच की रीत को।
    *नीरज*
    नीरज से खिलना सदा,
    सच्ची मन आशा लिए।
    जीवन अच्छे कर्म से,
    उन्नति पथ जलते दिए।
    बहुत ही बेहतरीन!
    आपके छंदों को ऐसा लगता है जैसे किसी महान कवि के छंद पढ़ रहें हैं!

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    1. आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।

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  6. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

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  7. रंगत संगत हो भली,
    ऐसी हर संगत करो।
    सज्जन लोगों से सदा,
    जीवन में रंगत भरो।---जी बहुत ही शानदार लेखन।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

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श्रेष्ठ प्राकृतिक बिम्ब यह (दोहे)

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