Sunday, August 15, 2021

मेघनाद के तंज


 सुने विभीषण वचन जो,उपजा घोर विवाद।

क्रोधित होकर कह रहे,कटु वचन मेघनाद॥

वानर के भय काँपते,काका कैसे वीर।
छोटी देखी आपदा,खो बैठे तुम धीर॥

कैसे तुम कायर बने,बजा रहे क्यों गाल।
वीरों के इस वंश का,करते काला भाल॥

सुन मामा मारीच से,छुप बैठो किस ठौर।
धूनी संतों सी रमा,वही तुम्हारा दौर॥

गुण गाते हो राम का,बन लंका का शाप।
कुल घातक मोहे लगो,काका श्री अब आप॥

बालक मुझको तुम कहो,देवों का मैं काल।
क्षमता मेरी जान के, फिर भी करो बवाल॥

ज्ञान सिखाते तुम मुझे,कहते अनुभव हीन।
कायरता तुम में भरी,लगते हो तुम दीन॥

देव सभी भय काँपते,मैं हूँ इंद्रजीत।
वनवासी उस राम से, तनिक नहीं भयभीत॥

आप कलंकित कुल करो,लेकर उसका नाम।
वासी लंका के बने,रटते हो मुख राम॥
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार

10 comments:

  1. जय श्री राम, जय श्री राम

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    1. हार्दिक आभार वंदना जी।

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  2. बहुत सुन्दर और सार्थक रचना।
    जय श्री राम

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    1. आपको बहुत दिनों बाद अपने ब्लॉग पर देख बेहद खुशी हुई।
      आपका हार्दिक आभार आदरणीय।

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  3. वाह, अद्भुत। सुन्दर सृजन।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

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  4. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया संगीता जी।

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  5. सुंदर सार्थक रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं अनुराधा जी

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    1. हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।

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