सुने विभीषण वचन जो,उपजा घोर विवाद।
क्रोधित होकर कह रहे,कटु वचन मेघनाद॥
वानर के भय काँपते,काका कैसे वीर।
छोटी देखी आपदा,खो बैठे तुम धीर॥
कैसे तुम कायर बने,बजा रहे क्यों गाल।
वीरों के इस वंश का,करते काला भाल॥
सुन मामा मारीच से,छुप बैठो किस ठौर।
धूनी संतों सी रमा,वही तुम्हारा दौर॥
गुण गाते हो राम का,बन लंका का शाप।
कुल घातक मोहे लगो,काका श्री अब आप॥
बालक मुझको तुम कहो,देवों का मैं काल।
क्षमता मेरी जान के, फिर भी करो बवाल॥
ज्ञान सिखाते तुम मुझे,कहते अनुभव हीन।
कायरता तुम में भरी,लगते हो तुम दीन॥
देव सभी भय काँपते,मैं हूँ इंद्रजीत।
वनवासी उस राम से, तनिक नहीं भयभीत॥
आप कलंकित कुल करो,लेकर उसका नाम।
वासी लंका के बने,रटते हो मुख राम॥
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार
जय श्री राम, जय श्री राम
ReplyDeleteहार्दिक आभार वंदना जी।
Deleteबहुत सुन्दर और सार्थक रचना।
ReplyDeleteजय श्री राम
आपको बहुत दिनों बाद अपने ब्लॉग पर देख बेहद खुशी हुई।
Deleteआपका हार्दिक आभार आदरणीय।
वाह, अद्भुत। सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteबहुत सुंदर 👌👌👌👌👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया संगीता जी।
Deleteसुंदर सार्थक रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं अनुराधा जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार जिज्ञासा जी।
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