सागर तट पर ध्यान लगाए
प्रभु करते शंकर सेवा।
हाथों से शिवलिंग रचा फिर,
भोग चढ़ा कदली मेवा।
बेलपत्री शिवलिंग चढ़ाते,
मंत्र बोले ऋषि सारे।
नाथ त्रिलोकी करते पूजन,
बैठ सागर के किनारे।
ऋषि मुनि प्रभु के पास विराजे,
हाथ जोड़ते त्रिपुरारी।
सभी देवगण उमड़ पड़े जब,
स्तुति गाएं अवध बिहारी।
सभी कार्य निर्बाध चले प्रभु,
सेवा का शुभ फल देना।
एक नाम करता हूँ अर्पण,
स्वीकार आप कर लेना।
नामकरण शिवलिंग करूँ में,
ईश्वर इसे स्वीकारों।
मेरे ईश्वर रामेश्वर,
नाम दिशा गूँजे चारों।
श्री राम प्रभु की भक्ति देखी,
शिव शंकर प्रभु मुस्काए।
यह स्वामी शिव शंकर के है,
मुझको कैसे भरमाए।
स्वीकार करूँ यह वंदन मैं,
यशगाथा यह जग गाए।
नाश अधर्म का करने प्रभो,
रामेश्वर नाथ आए।
सफल मनोरथ सारे होंगे,
तीन लोक के तुम स्वामी।
वरदान नाथ को मेरा यह,
चलता बन जो अनुगामी।
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार
जय श्री राम, जय जय श्री राम।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteभगवान श्रीराम को समर्पित बहुत सुंदर रचना,
ReplyDeleteहार्दिक आभार जिज्ञासा जी।
Delete