आजा शरण श्री राम की,
सुन ओ अभिमानी।
लंका का विनाश होगा,
बात जो न मानी।
बंधुओं को साथ ले,
दाँत तृण दबाए।
माता सीता साथ लिए,
चल शीश नवाए।
होगा फिर उद्धार तेरा,
सुनो ओ अज्ञानी।
आजा शरण...
मुझ पर दया भाव के अब,
सभी विचार छोड़।
श्री राम की भक्ति करके,
लोभ मन के तोड़।
जीवन का फिर दान मिले,
नाथ बड़े दानी।
आजा शरण...
दबाए घूमे छः मास,
काँख पिता बाली।
महानता अभी बता के,
सोचे क्या खाली।
जग के नाथ हैं जगन्नाथ,
विधि के हैं ज्ञानी।
आजा शरण...
माता को सम्मान सहित,
ले चलो प्रभु पास।
प्रभु से जीतने की सभी,
छोड़ दो अब आस।
भयानक फिर होगी हार,
मिले नहीं पानी।
आजा शरण.....
जब जीवन का दान मिले,
वंश साथ चलते,
मिटते जो सारे सुख फिर,
रहो हाथ मलते।
छोड़ दो अंहकार अभी,
हठ जो यह ठानी।
आजा शरण....
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन के में" आज शनिवार 28 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया।
Deleteअंगद की समुचित सलाह...सुन्दर कविता।
ReplyDeleteहार्दिक आभार प्रवीण जी।
Deleteवाह!👌👌💐💐👍👍
ReplyDeleteहार्दिक आभार दीपिका।
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ReplyDeleteमुझ पर दया भाव के अब,
सभी विचार छोड़।
श्री राम की भक्ति करके,
लोभ मन के तोड़।
जीवन का फिर दान मिले,
नाथ बड़े दानी।
आजा शरण...अंगद के सुंदर वचन । सुन्दर रचना ।
बहुत शानदार 👏👏👏👏
ReplyDeleteमाता को सम्मान सहित,
ReplyDeleteले चलो प्रभु पास।
प्रभु से जीतने की सभी,
छोड़ दो अब आस।
भयानक फिर होगी हार,
मिले नहीं पानी।
आजा शरण.....
वाह!!!
लाजवाब सृजन।
हार्दिक आभार सखी।
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