Friday, October 22, 2021

इंद्र का दिव्य रथ


 इंद्र ने देखी रावण माया,कपटी पर बड़ा क्रोध है आया।
पल में ऊपर पल में नीचे,मायावी ने खेल दिखाया।


प्रभु भूमि पर पैदल लड़ते,देख दुखी हो देवगण सारे।
मातलि को आदेश दिया फिर,दिव्य रथ कहो प्रभु स्वीकारें।

होगी हमको खुशी बहुत फिर,धर्म युद्ध कुछ काम जो आए।
जाओ शीघ्र प्रभु से कहना,देवलोक से संदेश हो लाए।

संदेह दिखाया लक्ष्मण ने फिर,बोले माया का अंदेशा।
धूर्त दशानन चलता चालें,भेजा है झूठा संदेशा।

शीश झुकाए मातलि फिर ,दिव्य गुणों का भेद बताया।
बोले ब्रम्हा जी ने इंद्र से,अद्भुत अनुपम रथ भिजवाया।

छल नहीं यह सेवा प्रभु जी,युद्ध करो अब रथ पर चढ़कर।
रावण की माया भी हारे,माया नहीं कहीं इससे बढ़कर।

मंद-मंद मुस्काते रघुवर,दिव्य रथ स्वीकार किया फिर।
देख रहा आश्चर्य से रावण, क्रोधित होकर देवों को फिर।

अनुराधा चौहान'सुधी'✍️

श्रेष्ठ प्राकृतिक बिम्ब यह (दोहे)

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