दो-दो कुल को तारती,नारी बड़ी महान।
ममता की मूरत बनी, देती जीवन दान।
नारी जग की तारिणी,करो सदा सम्मान।
नारी बिन जीवन नहीं,रखती ये अभिमान।
झोली में इसके भरा, ममता,प्यार, दुलार।
देवी सम पूजा करो,नारी जग आधार।
बहना माता संगिनी,नारी के ये रूप।
ढल जाती हर हाल में,वो घर के अनुरूप।
बंधन में ना बाँधना,नारी मन के तार।
नारी तो चाहे सदा,बस थोड़ा अधिकार।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार
बहुत ही अच्छी कविता है यह तो अनुराधा जी । निस्सन्देह श्रेष्ठ ! ढल जाती हर हाल में,वो घर के अनुरूप । कितनी सच्ची बात कह दी है आपने । काश इसका मोल आधुनिक युग के पुरुष एवं नारी दोनों ही समझें !
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
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