खुशियाँ भरती है घर साजन॥
पत्नी बेटी जननी बहना।
ईश्वर का अनुपम यह गहना॥
सहनशीलता की यह मूरत।
बड़ी सुकोमल इसकी सूरत॥
न्योछावर करती सुख सारा।
तप के इसके यह जग हारा॥
मन में रहती है आस यही।
आए हिस्से कुछ प्यार सही॥
जीवन अपना अर्पण करती।
खुशियाँ से घर आँगन भरती॥
संकट बच्चों पर जब आता।
बन जाती यह काली माता॥
शक्ति रूप लिए बनती ढाल।
ठहर सके फिर कोई न काल॥
बनके रहती शीतल छाया।
दुष्टों पर ज्वाला सी माया॥
नारी तुम कमजोर नहीं हो।
काली दुर्गा रूप रही हो॥
बंद करो अब छुप छुप रोना।
सुंदर सपनों का मत खोना॥
अपनी क्षमता फिर पहचानो।
कोमल नहीं शक्ति हो मानो॥
जीना सीखो सबला बनकर।
अधिकार मिले जग से बढ़कर॥
जीवन रण है यह सच मानो।
सत्य जगत का अब पहचानो॥
©® अनुराधा चौहान स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार
बहुत सुन्दर और हृदय स्पर्शी रचना।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता, नमन, हार्दिक आभार
ReplyDeleteमंत्रमुग्ध करती रचना - - बहुत सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबंद करो अब छुप छुप रोना।
ReplyDeleteसुंदर सपनों का मत खोना॥
अपनी क्षमता फिर पहचानो।
कोमल नहीं शक्ति हो मानो॥
बहुत खूब,सादर नमन आपको
हार्दिक आभार सखी
Deleteनारी गुणों कि खान है . लेकिन आज भी बहुतायत से इस बात को नहीं मानते .
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से लिखा है .
हार्दिक आभार आदरणीया
Deleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteबहुत सुंदर नवगीत सखी कभी आह्वान करता कभी ओज भरता कभी समर्पित भाव।
ReplyDeleteसुंदर।
हार्दिक आभार सखी
Deleteधन्यवाद आदरणीय
ReplyDeleteआपकी छंदबद्ध कविता बहुत अच्छी है अनुराधा जी । कहीं-कहीं भाषा संबंधी अशुद्धियां हैं । एक बार पुनरावलोकन कर लीजिएगा ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबहुत ही सुन्दर सृजन - - साधुवाद सह।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
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