Tuesday, May 11, 2021

भरत का प्रण


 पितु वचनों के सम्मान में
भूले सुख की प्रीत को।
मैं अनुगामी बन कर प्रभो,
मानूँ रघुकुल रीत को।

हीरे मोती माटी लगें,
सूना तुम बिन महल भी।
सूने गलियारे भी पड़े,
मिटती अब हर चहल भी।

पालक बनकर मैं अवध का,
पालन में हरपल करूँ।
छाया बनकर प्रभु आपकी,
सबके मन खुशियाँ भरूँ।

थाती तो है बस आपकी,
मैं तो केवल दास हूँ।
तुम परमात्मा मेरे प्रभो,
मैं छोटी सी आस हूँ।

दे दो अब अपनी पादुका,
इनको अपने सिर रखूँ।
पूजन करके जगदीश का,
सेवा का हर सुख चखूँ।

रघुकुल की रखकर शान में,
भाई वापस जाऊँगा।
सुमिरन करके दिन रात में,
मन में तुमको पाऊँगा।

श्री राम से चरण पादुका लेने के बाद भरत श्री राम जी से कहते हैं कि "हे प्रभु वनवास की अवधि बीतने के बाद आने में एक दिन की भी देर मत करना..!"

नहीं कुछ और चाहूँ मैं,मुझे वरदान दो इतना।
रखूँगा मान रघुकुल का,समय वनवास के जितना।
बरस चौदह अवधि प्रभु बस,नहीं दिन एक बढ़ पाए।
तजूँगा प्राण पल भर में,सहूँगा पीर मैं कितना।

*अनुराधा चौहान'सुधी'*
चित्र गूगल से साभार

15 comments:

  1. पालक बनकर मैं अवध का,
    पालन में हरपल करूँ।
    छाया बनकर प्रभु आपकी,
    सबके मन खुशियाँ भरूँ।

    बहुत ही सुंदर प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार मनोज जी।

      Delete
  2. बहुत सुंदर सृजन सखी ।
    मर्मस्पर्शी हैं भरत जी का संवाद।

    ReplyDelete
  3. Replies
    1. हार्दिक आभार शिवम् जी

      Delete

  4. नहीं कुछ और चाहूँ मैं,मुझे वरदान दो इतना।
    रखूँगा मान रघुकुल का,समय वनवास के जितना।
    बरस चौदह अवधि प्रभु बस,नहीं दिन एक बढ़ पाए।
    तजूँगा प्राण पल भर में,सहूँगा पीर मैं कितना।..वाह !रघुकुल के त्याग और बलिदान की गाथा को दर्शाती सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार जिज्ञासा जी

      Delete
  5. बहुत ही भावप्रधान कविता।हार्दिक शुभकामनाएं

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

      Delete
  6. बहुत सुंदर 👌

    ReplyDelete
  7. बड़ी मोहक रचना!!! सादर नमन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

      Delete

रामबाण औषधि(दोहे) -2

  11-आँवला गुणकारी है आँवला,रच मुरब्बा अचार। बीमारी फटके नहीं,करलो इससे प्यार॥ 12-हल्दी पीड़ा हरती यह सभी,रोके बहता रक्त। हल्दी बिन पूजा नही...