अभिलाषा धन संपदा,
मन उपजाये क्लेश,
अपनों से ही कर रहा
मानव अब विद्वेष।
(२)
प्यार और विश्वास से,
रख रिश्तों की नींव।
अभिलाषा मन में यही,
सुखी रहें सब जीव।
(३)
सुखमय इस संसार में,
भांति-भांति के लोग।
पालें मन में आरज़ू,
प्रभु से हुआ वियोग।
(४)
मिठास मन में घोलिए,
भूलकर घृणा भाव।
आरजू सब मिले रहें,
हृदय में प्रीत भाव।
***अनुराधा चौहान***
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