कैसा आया विकट जमाना,
भूल गए नारी सम्माना।
हैवानियत ने हदें तोड़ी,
संवेदना रहे दम तोड़ी।
प्रजातंत्र रहा मौन साधे,
न्याय आँख पे पट्टी बाँधे।
इंसानियत है मौन होती,
बेटी कोने में छुप रोती।
खुले आम घूमे हुड़दंगी,
खुशी बेटियों की बेरंगी।
कब तक चलता दौर रहेगा ,
चौराहे पर शोर मचेगा।
रोज नयी है खबरें छपती,
प्रजातंत्र की आँख न खुलती।
अब तलवार साध लो बेटी,
क्यों निर्दोष जले यह लेटी।
बन जाओ फिर से तुम काली,
रूप दिखा रणचण्डी वाली।
कोई नहीं तेरा रखवाला,
करो जागृत दिल में ज्वाला।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (09-12-2019) को "नारी-सम्मान पर डाका ?"(चर्चा अंक-3544) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
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रवीन्द्र सिंह यादव
जी हार्दिक आभार आदरणीय
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