Thursday, December 12, 2019

बेकार है मोहमाया(मनहरण घनाक्षरी)

क्या साथ लेकर आए,
साथ क्या ले जाएंगे जी,
बेकार है मोहमाया,
उलझ न जाइए।1।

तेरा मेरा करने में,
मन में द्वेष पाल के,
अनमोल समय को,
यूँ ही न गंवाइए।2।

सीखकर गीता ज्ञान,
कर्म गति पहचान,
समाज की भलाई के,
कदम उठाइए।3।

लिया कुछ यहाँ से जो,
रह जाए पीछे वह,
कर्म गति न तेज की,
फिर पछताइए।4।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

6 comments:

  1. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१४-१२-२०१९ ) को " पूस की ठिठुरती रात "(चर्चा अंक-३५४९) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  2. बहुत सुंदर छंद सृजन सखी ।
    मनभावन।

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