Friday, December 27, 2019

जीवन शैली

कैसी है यह जीवनशैली,
मिलावट से होती विषैली।
हर तरफ है धूल और धुआँ, 
खेले हैं जिंदगी संग जुआ।

भागदौड़ औ शोर-शराबा,
बीत रहा है जीवन आधा।
रिश्तेदारी बोझ  लग रही,
अपनों की बातें खटक रही।

सब चले उस राह पे ऐसे,
सही बताएं किसको कैसे।
अपने में ही खोए रहते,
सच से सदा भागते रहते।

इंटरनेट जाल में उलझे,
हँसी मज़ाक सभी हैं भूले।
विकास की जब होड़ मची हो,
तब सही ग़लत समझ किसे हो।

काट रहे हम जंगल सारे,
छुपे फिर प्रदूषण के मारे।
हवाओं में भी जहर घुलता,
पानी भी अब दूषित मिलता।

बदलना है ढंग जीने का,
घटता है पानी पीने का।
पर्यावरण को है बचाना,
जीवन शैली उत्तम बनाना।।
***अनुराधा चौहान***

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