आज जीने के लिए,
इक शिखण्डी चाहिए।
काल को जो ग्रास ले,
शक्ति चण्डी चाहिए।
प्रीत की मूरत बनी,
पीती रही है गरल।
अँधेरों में डूबती,
रोती रहती अविरल।
भस्म सारा दर्द हो,
लौ अखण्डी चाहिए।
काल को जो ग्रास ले,
शक्ति चण्डी चाहिए।
खंड-खंड बिखरी सदा,
दिखा न कोई रास्ता।
पग-पग पे बबूल-थे,
मार्ग कँटक से भरा।
काट इन्हें फेंक दें,
महा चण्डी चाहिए।
काल को जो ग्रास ले,
शक्ति चण्डी चाहिए।
दाँव पे हरदम लगी,
लाज नारी की सदा।
बैठे आँख मूँद के,
भीष्म से सभी यहाँ।
वार इन पे कर सके,
वो शिखण्डी चाहिए।
काल को जो ग्रास ले,
शक्ति चण्डी चाहिए।
चीर हरण की पुकार,
कौन सुनता है भला।
आँख कान बंद करे,
मौन कान्हा ने धरा।
पाप को जो मार दे,
वो त्रिखण्डी चाहिए।
काल को जो ग्रास ले,
शक्ति चण्डी चाहिए।
*अनुराधा चौहान*
चित्र गूगल से साभार
चित्र गूगल से साभार
बहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय 🙏
Deleteआज के समय की सच्चाई तो यही हे
ReplyDeleteरचना के लिए बधाई
प्रेरणादायक पंक्तियाँ
Deleteधन्यवाद आदरणीया
Deleteदाँव पे हरदम लगी,
ReplyDeleteलाज नारी की सदा।
बैठे आँख मूँद के,
भीष्म से सभी यहाँ।
वार इन पे कर सके,
वो शिखण्डी चाहिए।
वाह!!!
लाजवाब नवगीत...
धन्यवाद सखी
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