आशाओं के दीपक से भी,
मन का अँधेरा दूर होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।
क्या रो-रोकर कभी किसी ने,
सुख का जीवन जी पाया है।
कभी नहीं सोचा जीवन में,
मिला कभी वो ही खोया है।
आना-जाना खोना-पाना,
हर काम समय से ही होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।
आशाओं के दीपक से भी,
मन का अँधेरा दूर होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।
अच्छे कर्मों को सिंचित करके,
मन के आँगन में बो लेना।
बुराई को जड़ से मिटाकर,
जीवन उजियारा कर लेना।
बैठे-बैठे कभी न होगा,
श्रम से ही सब संभव होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।
आशाओं के दीपक से भी,
मन का अँधेरा दूर होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
Nice post....
ReplyDeleteWelcome to my blog
जी हार्दिक आभार
Deleteaachii rchnaa baandhi he aapne ...
ReplyDeleteअच्छे कर्मों को सिंचित करके,
मन के आँगन में बो लेना।
बुराई को जड़ से मिटाकर,
जीवन उजियारा कर लेना।
aas bhri soch
achhi rchna ke liye bdhaayi
हार्दिक आभार आदरणीया
Deleteआशा ही जीवन को ऊर्जावान बनाये रखती हैं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
नमस्ते.....
ReplyDeleteआप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की ये रचना लिंक की गयी है......
दिनांक 15/05/2022 को.......
पांच लिंकों का आनंद पर....
आप भी अवश्य पधारें....