Friday, February 28, 2020

आशा का दीपक (नवगीत)

आशाओं के दीपक से भी,
मन का अँधेरा दूर होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।

क्या रो-रोकर कभी किसी ने,
सुख का जीवन जी पाया है।
कभी नहीं सोचा जीवन में,
 मिला कभी वो ही खोया है।
आना-जाना खोना-पाना,
हर काम समय से ही होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।

आशाओं के दीपक से भी,
मन का अँधेरा दूर होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।

अच्छे कर्मों को सिंचित करके,
मन के आँगन में बो लेना।
बुराई को जड़ से मिटाकर,
जीवन उजियारा कर लेना।
बैठे-बैठे कभी न होगा,
श्रम से ही सब संभव होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।

आशाओं के दीपक से भी,
मन का अँधेरा दूर होता।
मुश्किल से घबराकर कोई,
यूँ कोई होश नहीं खोता।।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

6 comments:

  1. Nice post....
    Welcome to my blog

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  2. aachii rchnaa baandhi he aapne ...

    अच्छे कर्मों को सिंचित करके,
    मन के आँगन में बो लेना।
    बुराई को जड़ से मिटाकर,
    जीवन उजियारा कर लेना।

    aas bhri soch

    achhi rchna ke liye bdhaayi

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया

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  3. आशा ही जीवन को ऊर्जावान बनाये रखती हैं
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  4. नमस्ते.....
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की ये रचना लिंक की गयी है......
    दिनांक 15/05/2022 को.......
    पांच लिंकों का आनंद पर....
    आप भी अवश्य पधारें....

    ReplyDelete

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