भोर हुई चिड़िया चहके
पुष्प डालियों पर महके
पुरवाई हौले से डोल रही
पेड़ों पे कोयल बोल रही
अंतर्मन में उल्लास लिए
मन खुशियों की आस लिए
सोच रहा है दिन-रात यही
लौटेगा चैन जो छुपा कहीं
भोर कोई खुशियाँ ले आए
प्रकृति फिर से खिलखिलाए
मन ही मन मुरझाया-सा
मानव है कुम्हलाया-सा
कैसा जग को रोग लगा
किन कर्मो को भोग रहा
हर डगर पे बिखरे हैं काँटे
बुरा वक़्त है मिलकर काटे
आज भले ही विपदा भोगी
जीत हमारी एक दिन होगी
यह संकट भी टल जाएगा
उजियारा जग में छाएगा
अनुराधा चौहान'सुधी'
चित्र गूगल से साभार
धन्यवाद आदरणीय
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