Friday, May 1, 2020

गर्मी (दोहे)

नीला अम्बर देख के,बढ़ी धरा की पीर।
तपन मिटाने के लिए,बदरा लाओ नीर।

गर्मी से धरती तपी, सूखे नदियाँ ताल।
पेड़ों की छाया नहीं,होते सब बेहाल।

सूखी धरती देख के,हुआ किसान अधीर।
राह ताकते मेघ की,नयना बरसे नीर

कैसी ये विपदा पड़ी,हुई दुकाने बंद।
कूलर भी चलते नहीं,बने न कोई छंद।

गर्मी है भीषण बड़ी,लू का तीखा वार।
बदरा बरसो जोर से,सही न जाए  मार।

*अनुराधा चौहान'सुधी'*
चित्र गूगल से साभार

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