जीवन संकट में पड़ा,भाग रहे हैं लोग।
सारा जग बेहाल हैं,बड़ा विकट ये रोग।
रोजी-रोटी छिन गई,चलते पैदल गाँव।
मिला न कोई आसरा,बैठे पीपल छाँव।
खाने के लाले पड़े,और समय की मार
पैरों में छाले लिए,चले सभी लाचार।
सूखी रोटी हाथ में,नयन बहाते नीर।
बालक आँचल में छुपा,मात बँधाए धीर।
नन्हे-मुन्ने साथ में,मात-पिता बेहाल।
पैदल घर को भागते,डरा रहा है काल।
साधन कोई है नहीं,बहुत दूर है गाँव।
घर जाने की चाह में, चलते नंगे पाँव।
डिब्बे में आटा नही,पास नहीं है दाम।
कैसी ये विपदा पड़ी, बंद हुआ सब काम।
जीवन ठहरा सा लगे, बुरा लगे आराम।
राजा होते रंक अब,खाली सब गोदाम।
डिब्बे में आटा नही,पास नहीं है दाम।
कैसी ये विपदा पड़ी, बंद हुआ सब काम।
जीवन ठहरा सा लगे, बुरा लगे आराम।
राजा होते रंक अब,खाली सब गोदाम।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार
व र्तमान के हालात को दर्शाते सुन्दर दोहे।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04 मई 2020) को 'गरमी में जीना हुआ मुहाल' (चर्चा अंक 3705) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
धन्यवाद आदरणीय
Deleteसंशोधन-
Deleteआमंत्रण की सूचना में पिछले सोमवार की तारीख़ उल्लेखित है। कृपया ध्यान रहे यह सूचना आज यानी 18 मई 2020 के लिए है।
असुविधा के लिए खेद है।
-रवीन्द्र सिंह यादव
जी
Deleteसामयिक और सटीक दोहे
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
DeleteI am really happy to say it’s an interesting post to read Sandeep Maheshwari Quotes Hindi
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteवाह !बेहतरीन दोहे बहना.
ReplyDeleteसादर
सहृदय आभार सखी
Deleteनन्हे-मुन्ने साथ में,मात-पिता बेहाल।
ReplyDeleteपैदल घर को भागते,डरा रहा है काल।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
धन्यवाद बहना
Deleteइस समय की विडम्बनाओं को उजागर करते प्रभावी दोहे
ReplyDeleteपढ़े-- लौट रहें हैं अपने गांव
धन्यवाद आदरणीय
Deleteयथार्थ, मर्म स्पर्शी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
DeleteI Really Like Your Article Man Thanks For Sharing Sandeep Maheshwari Quotation in Hindi
ReplyDeleteजी आभार
Deleteहकीकत बयान करती हुई ,हृदस्पर्शी रचना ,
ReplyDeleteजी आभार
Delete