रोला छंद
१
नाचे सिर पर काल,नहीं कुछ समझे मानव।
कानन रहा उजाड़,बना यह कैसा दानव।
रोका नहीं विनाश,बैठ फिर पछताएगा।
जीवन का आधार,मिटाकर मिट जाएगा।
२
धरती धूमिल आज,नहीं है तरुवर छाया।
करदी आज उजाड़,यही मानव की माया।
समय करे ये माँग,रखो हरियाली धरती।
बढ़ता धन औ धान,सभी के संकट हरती।
३
प्रभू लगाओ पार,जरा भी चैन न पड़ता।
कभी भूकंप बाढ़,धरा का पारा चढ़ता।
खुशहाली भरपूर,यही मन करता चाहत।
मिलती शीतल छाँव,ताप न करता आहत।
प्रभू लगाओ पार,जरा भी चैन न पड़ता।
कभी भूकंप बाढ़,धरा का पारा चढ़ता।
खुशहाली भरपूर,यही मन करता चाहत।
मिलती शीतल छाँव,ताप न करता आहत।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार
वाह
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
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