Sunday, July 19, 2020

रखो हरियाली धरती

रोला छंद
नाचे सिर पर काल,नहीं कुछ समझे मानव।
कानन रहा उजाड़,बना यह कैसा दानव।
रोका नहीं विनाश,बैठ फिर पछताएगा।
जीवन का आधार,मिटाकर मिट जाएगा।
धरती धूमिल आज,नहीं है तरुवर  छाया।
करदी आज उजाड़,यही मानव की माया।
समय करे ये माँग,रखो हरियाली धरती।
बढ़ता धन औ धान,सभी के संकट हरती।

प्रभू लगाओ पार,जरा भी चैन न पड़ता।
कभी भूकंप बाढ़,धरा का पारा चढ़ता।
खुशहाली भरपूर,यही मन करता चाहत।
मिलती शीतल छाँव,ताप न करता आहत।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

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