हरे-भरे पेड़ काट,
कर वनों को सपाट,
हरियाली धरती की,
व्यर्थ न गँवाइए।१।
वृक्ष हरे-भरे घने,
छाया देते रहें तने,
वृक्ष नये लगाने की,
आदत बनाइए।२।
पर्यावरण की क्षति,
कर रहे मूढ़ मति,
प्रकृति के स्वरूप को,
यूँ हीं न गंवाइए।३।
प्रण करें सब आज,
कर कुछ नये काज,
हरियाली को बचा के,
धरा को बचाइए।४।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteउपयोगी घनाक्षरी।
धन्यवाद आदरणीय
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