Thursday, July 9, 2020

सावन झूम उठा

घिरके घनघोर घटा गरजी,
बरसी बदली वसुधा महकी।
मनभावन सावन झूम उठा,
चिड़िया तरु पे उड़ती चहकी।
भँवरे बगिया पर गूँज करें,
कलियाँ खिलती लगती बहकी।
घन देख सभी मन झूम रहे,
तरु शाख झुकी बिजली लहकी।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***

5 comments:

  1. बहुत सुंदर कविता अनुराधा जी ! गागर में सागर सरीखी 1

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