Thursday, July 9, 2020
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श्रेष्ठ प्राकृतिक बिम्ब यह (दोहे)
1-अग्नि अग्नि जलाए पेट की,करे मनुज तब कर्म। अंत भस्म हो अग्नि में,मिट जाता तन चर्म॥ 2-जल बिन जल के जीवन नहीं,नर तड़पे यूँ मीन। जल उपयोगी मान...
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चल हट जा ना झूठे सुन तेरी बातें हम तुझसे ही रूठे यह झूठ बहाना है कर प्यारी बातें अब घर भी जाना है क्या बोलूँ मैं छलिए ...
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जीवन संकट में पड़ा,भाग रहे हैं लोग। सारा जग बेहाल हैं,बड़ा विकट ये रोग। रोजी-रोटी छिन गई,चलते पैदल गाँव। मिला न कोई आसरा,बैठे ...
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1-अग्नि अग्नि जलाए पेट की,करे मनुज तब कर्म। अंत भस्म हो अग्नि में,मिट जाता तन चर्म॥ 2-जल बिन जल के जीवन नहीं,नर तड़पे यूँ मीन। जल उपयोगी मान...
आशा का संचार करती सुन्दर रचना।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (११-०७-२०२०) को 'बुद्धिजीवी' (चर्चा अंक- ३५६९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
हार्दिक आभार सखी
Deleteसुंदर और सार्थक संदेश।
ReplyDeleteहार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteसार्थक संदेश।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteधैर्य और विश्वास पर सार्थक मुक्तक सखी।
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